ahnsahnghong.com is provided in English. Would you like to change to English?

वाचा का महत्व: पुराने नियम के माध्यम से यहोवा परमेश्वर के उद्धार के कार्य का इतिहास

8497 읽음
Contents

परमेश्वर मानवजाति के उद्धार के लिए अपने छुटकारे के कार्य का संचालन करते हैं। पुराने नियम में, यहोवा परमेश्वर ने अपने चुनाव और अपनी वाचा के माध्यम से इस कार्य की नींव डाली।‌ उन्होंने इस्राएलियों को चुना, उनके साथ पुरानी वाचा स्थापित की, और उसका पालन करने वालों को बचाया। पुराने नियम के द्वारा, हम परमेश्वर के उद्धार के कार्य का सामान्य प्रवाह देख सकते हैं।

यहोवा परमेश्वर के उद्धार के कार्य का इतिहासः भाग I सृष्टि से पितृसत्तात्मक युग तक

अदन की वाटिका से आदम और हव्वा का निष्कासन

शुरुआत में, यहोवा परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की। उन्होंने मनुष्यों को भूमि की मिट्टी और जीवन के श्वास से बनाया और उन्हें अदन की वाटिका में रहने दिया। वाटिका में, आदम और हव्वा जीवन के वृक्ष में से खा सकते थे, जो उन्हें सदा तक जीने की अनुमति देता है। सर्प के भरमाने के कारण, उन्होंने पाप किया और भले और बुरे के वृक्ष में से खाया। इस कारण, उन्हें अदन से निकाल दिया गया और वे अब और जीवन के वृक्ष के पास नहीं जा सकते थे।

परमेश्वर ने आदम को वह सत्य दिखाया जो जीवन के वृक्ष को पुनःस्थापित कर सकता है और इस बारे में आदम ने कैन और हाबिल को गवाही दी। कैन ने इस सत्य को स्वीकार नहीं किया जबकि हाबिल ने उसे ग्रहण किया। कैन ने अपनी इच्छा अनुसार भूमि की उपज में से परमेश्वर को भेंट चढ़ाई। लेकिन हाबिल ने आज्ञाकारिता से मेम्ने का बलिदान किया, और परमेश्वर ने हाबिल के भेंट को ग्रहण किया(उत 4:1-4)। लहू बहाने के द्वरा किया गए इस बलिदान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी, यहाँ तक कि मूसा का समय में भी पहुचाया गया(उत 8:20–21; 12:7; 15:9)।

नूह को परमेश्वर ने चुना

जबकि आदम के कुछ वंशज, जैसे हाबिल और हनोक, परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीते थे, लेकिन उनमें से अधिकांश ने ऐसा नहीं किया। जल्द ही, संसार दुष्टता से भर गया और यहोवा परमेश्वर ने कहा कि वह उन्हें नष्ट कर देंगे। परमेश्वर के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही, और उसने जहाज के द्वारा उद्धार प्राप्त किया; बाकी दुनिया बाढ़ से नष्ट हो गई।

जलप्रलय के बाद, नूह के वंशजों ने परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध जाकर बेबीलोन के गुम्मट का निर्माण किया। दण्ड के रूप में, परमेश्वर ने उनकी भाषा में गड़बड़ी डाली ताकि वे एक-दूसरे को न समझ सकें, और उन्हें सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।

अब्राहम के साथ स्थापित वाचा

परमेश्वर ने अब्राहम को बुलाया और उसे कनान देश और बहुत से वंशज देने का वादा किया। अब्राहम, जो उस समय कसदियों के ऊर में रहता था, ने परमेश्वर के वचन का पालन किया और कनान की ओर चल दिया। जब अब्राहम निन्यानबे वर्ष का हो गया, तब परमेश्वर ने उसके साथ अपनी वाचा स्थापित की। अगले वर्ष परमेश्वर ने उसे संतान दी, और उनके परमेश्वर होने की प्रतिज्ञा की, और ‘खतना’ को वाचा का चिन्ह बनाया(उत 17:1-14)।

इसहाक, याकूब और इस्राएल

जब अब्राहम एक सौ वर्ष का हो गया तब परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार सारा के द्वारा इसहाक का जन्म हुआ। इसहाक अब्राहम का वारिस बना और उसके जुड़वां बेटे थे, याकूब और एसाव। परमेश्वर ने उसके छोटे बेटे याकूब को उसके जन्म से पहले जन्मसिद्ध अधिकार और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए चुना। याकूब ने परमेश्वर की आशीष प्राप्त करने के लिए सभी कठिनाइयों को सहन किया और बाद इस्राएल नाम प्राप्त किया।

कनान देश में भयंकर सूखा पड़ा था। परमेश्वर ने याकूब के परिवार को याकूब के ग्यारहवें पुत्र यूसुफ के द्वारा मिस्र ले जाने के द्वारा बचाया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, याकूब के बारह पुत्रों ने इस्राएल के बारह गोत्र बनाए। मिस्र में, इस्राएल ने एक महान राष्ट्र का गठन किया, लेकिन वे मिस्र के राजा फिरौन के अत्याचार से पीड़ित थे, और धीरे-धीरे गुलामी बन गए।

यहोवा परमेश्वर के उद्धार के कार्य का इतिहास: भाग II निर्गमन से संयुक्त राजशाही तक

इस्राएल के साथ वाचा और कनान की यात्रा

यहोवा परमेश्वर ने मिस्र की गुलामी से इस्राएलियों को छुड़ाने के लिए नबी मूसा को भेजा। गुलामी से मुक्त होने के बाद, सीनै पर्वत पर परमेश्वर ने दस आज्ञाओं की घोषणा की और उनके साथ एक वाचा स्थापित की। यह “पुरानी वाचा” या “मूसा की व्यवस्था” कहलाती है। परिणामस्वरूप, लहू बहाने के द्वारा बलिदान करने की व्यवस्था को, जिसे आदम के समय से पारित किया गया, स्थापित किया गया। परमेश्वर ने घोषणा की कि उनके लोग वे हैं जो उनकी वाचा और व्यवस्था का पालन करते हैं।

जैसा कि अब्राहम से वादा किया गया, परमेश्वर इस्राएलियों को कनान में ले गए। कनान के रास्ते में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को अपनी वाचा और व्यवस्था के बारे में सिखाया ताकि वे इसे मना सकें और आशीष प्राप्त कर सकें। परमेश्वर ने जंगल के चालीस साल की यात्रा के दौरान इस्राएलियों के विश्वास और आज्ञाकारिता का परीक्षण किया(व्य 8:1-16)। पहली पीढ़ी में से अधिकांश लोग उस परिक्षण में सफल नहीं हुए और मार्ग में ही नष्ट हो गए। यहोशू, कालेब और इस्राएलियों की दूसरी पीढ़ी ही थी जिन्होंने विश्राम पाया और कनान देश में प्रवेश किया।

वाचा को भूलना और मूर्तियों की सेवा करना

जंगल में चालीस वर्ष बिताने के बाद, इस्राएली कनान पहुँचे और बहुत युद्ध करने के बाद कनान देश को जीत लिया; तो भी, वे वाचा को भूल गए और परमेश्वर के वचन का पूरी तरह से पालन नहीं किया कि “उस देश के निवासियों को उनके देश से निकाल देना।” परिणामस्वरूप, उन्होंने कनानियों का अनुसरण किया और मूर्तिपूजा की। इस पाप के कारण इस्राएलियों का उनके शत्रुओं द्वारा दुर्व्यवहार और उत्पीड़ित किया गया। जब भी लोग परमेश्वर से अपने कष्टों को दूर करने के लिए कहते, परमेश्वर उन्हें उनके शत्रुओं से बचाने के लिए न्यायी ठहराते थे। लेकिन, जब भी उन्हें शांति मिलती, वे परमेश्वर की अनुग्रह भूल जाते और फिर से पाप करते थे। न्यायियों के पूरे युग में, पाप करने का यह दुष्चक्र दोहराया गया।

इस युग के अंत में, इस्राएलियों ने परमेश्वर से अपने चारों ओर के राष्ट्रों के समान एक राजा नियुक्त करने के लिए कहा। परमेश्वर ने उन्हें राजशाही की बुराइयों के बारे में चेतावनी दी, लेकिन उन्होंने सुनने से इनकार कर दिया। परमेश्वर ने शाऊल को इस्राएल का पहला राजा के रूप में नियुक्त किया और सयुक्त राजशाही का युग शुरू हुआ। बाद में, परमेश्वर ने शाऊल को उसकी अवज्ञा के कारण राजा के रूप में अस्वीकार कर दिया और दाऊद को नियुक्त किया। दाऊद ने सिय्योन को जीत लिया, और यरूशलेम को अपनी नई राजधानी बनाई, और वहाँ वाचा का सन्दूक ले आया। चूँकि दाऊद ने ईमानदारी से परमेश्वर की वाचा और नियमों का पालन किया था, इसलिए परमेश्वर ने उसे अपने मन के अनुकूल व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया। दाऊद के शासन के दौरान इस्राएल समृद्ध हुआ।

यहोवा परमेश्वर के उद्धार के कार्य का इतिहास: भाग III विभाजित राज्यों के युग से बंधुआई से वापसी तक

सुलैमान की मूर्तिपूजा और इस्राएल का विभाजन

दाऊद के पुत्र सुलैमान के समय में, यरूशलेम मंदिर के निर्माण का ऐतिहासिक कार्य पूरा किया गया और इस्राएल ने परमेश्वर से बहुतायत से आशीष प्राप्त की। परन्तु, राजा सुलैमान ने अपने शासन काल के अंत में, परमेश्वर की वाचा और विधियों को त्याग दिया और मूर्ति जैसे अशतारोत और मिल्कोम की उपासना करनी शुरू कर दी। परिणामस्वरूप, सुलैमान की मृत्यु के बाद राज्य दो भाग में विभाजित हो गयाः उत्तर इस्राएल और दक्षिण यहूदा।

शुरुआत में, उत्तर इस्राएल ने परमेश्वर की वाचा को तोड़ दी और सोने के बछड़ों की पूजा करके परमेश्वर से दूर हो गए। अपने पूरे इतिहास में, उन्होंने मूर्तिपूजा करना जारी रखा और बाल और अशेरा जैसे अन्य देवताओं की उपासना की, जो परमेश्वर की दृष्टि में घृणित था। उनके घोर पापों के कारण, परमेश्वर ने उनकी रक्षा नहीं की और वे अश्शूर साम्राज्य के द्वारा 721 ई.पू. में नष्ट कर दिए गए।

कभी-कभी, दक्षिण यहूदा परमेश्वर की ईमानदारी से सेवा किया करता था और वे विदेशी आक्रमणों से बचाए गए। उदहारण के लिए, यहूदा का राजा यहोशापात ने परमेश्वर की व्यवस्था मानने के द्वारा दाऊद के पदचिन्ह का पालन किया और मोआब और अम्मोन के आक्रमण से बचा लिया गया। राजा हिजकिय्याह के शासनकाल के दौरान, यहूदा को लंबे समय तक न मनाये गए फसह को मानने के द्वारा अश्शूर के आक्रमण से बचाया गया था।

वाचा को त्याग देने के द्वारा बेबीलोन में बंदी बने

दक्षिण यहूदा ने फसह मनाया और 586 ई.पू. में बेबीलोन के आक्रमण से पहले तक परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त की। यह त्रासदी इसलिए हुई क्योंकि उनके वंशजों ने परमेश्वर की वाचा को त्याग दिया; इस्राएलियों को बंदी बना लिया गया और यरूशलेम एक उजाड़ देश बन गया(2रा 24:14)।

यिर्मयाह नबी के माध्यम से, परमेश्वर ने भविष्यवाणी की थी कि यहूदा के लोग सत्तर वर्षों की कैद के बाद अपने स्वदेश लौट आएंगे(यिर्म 25:11)। सत्तर साल बाद, जिन्होंने भविष्यवाणी पर विश्वास करते हुए धीरज रखा, वे खुशी और आनंद के साथ अपने स्वदेश लौट आए। सामरी लोगों की बाधा सहित कई कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने यरूशलेम मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए हर संभव प्रयास किया। लोगों ने महसूस किया कि उन पर इसलिए विदेश द्वारा हमला किया गया था और अपना देश खो दिया था, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की वाचा को त्याग दिया था। इसके बाद, उन्होंने मूसा की व्यवस्था का पालन करने के लिए ईमानदार प्रयास किए; वे यीशु के पहले आगमन तक व्यवस्था का पालन करते रहे।

यहोवा परमेश्वर का उद्धार का कार्य और वाचा का महत्व

पुराने नियम में यहोवा परमेश्वर के द्वारा अगुवाई किए गए उद्धार के कार्य का मूल, वाचा थी। परमेश्वर के लोग वे थे जिन्होंने बलिदान के द्वारा उनके साथ वाचा बाँधी थी(भजन 50:4-5)। यह दिखाता है कि परमेश्वर और उनके लोग व्यवस्था और वाचा से एक साथ बंधे हैं। परमेश्वर ने हमेशा उन्हें आशीष दी जिन्होंने वाचा का पालन किया और उनको नष्ट किया जिन्होंने उसे रद्द किया या उसे त्याग दिया(यिर्म 11:6-11)।

उदाहरण के लिए, राजा हिजकिय्याह ने अपने शासनकाल के दौरान मंदिर को पवित्र किया और फसह मनाया। उसने फसह मनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए उत्तर इस्राएल के पास दूत भेजे, परन्तु लोगों ने उनका तिरस्कार किया और उनका उपहास किया(2इत 30:1-10)। परिणामस्वरूप, उत्तर इस्राएल को अश्शूर द्वारा नष्ट कर दिया गया था। लेकिन, दक्षिण यहूदा की परमेश्वर के द्वारा सुरक्षा की गई, क्योंकि लोगों ने वाचा का पालन किया था(2रा 18:9-12; 19:30-34)।

यह इतिहास राजा योशिय्याह के दिनों में दोहराया गया। राजा योशिय्याह जिसने वाचा के अनुसार फसह मनाया, उसे परमेश्वर द्वारा कहा गया कि उसने अपने पूरे मन, प्राण और शक्ति के साथ उनकी व्यवस्था का पालन किया(2रा 23:21-25)। लेकिन, योशिय्याह की मृत्यु के बाद, यहूदा ने परमेश्वर की वाचा को त्याग दिया और बेबीलोन द्वारा आक्रमण किया गया और नष्ट हो गया। यिर्मयाह नबी के माध्यम से, परमेश्वर ने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया कि उन पर विपत्ति क्यों आई।

“क्या उसने उसको स्मरण न किया? इसलिये जब यहोवा तुम्हारे बुरे और सब घृणित कामों को और अधिक न सह सका, तब तुम्हारा देश उजड़कर, निर्जन और सुनसान हो गया, यहाँ तक कि लोग उसकी उपमा देकर शाप दिया करते हैं, जैसे कि आज होता है। क्योंकि तुम धूप जलाकर यहोवा के विरुद्ध पाप करते और उसकी नहीं सुनते थे, और उसकी व्यवस्था और विधियों और चितौनियों के अनुसार नहीं चले, इस कारण यह विपत्ति तुम पर आ पड़ी है, जैसे कि आज है।” यिर्म 44:22-23

यहोवा परमेश्वर ने कहा कि वह नई वाचा की स्थापना करेंगे

जिस कारण यहोवा परमेश्वर ने भौतिक इस्राएलियों को चुना, उनके साथ पुरानी वाचा को स्थापित किया और उनका नेतृत्व किया, वह यह था कि आत्मिक इस्राएलियों को, जो बचाए जाएंगे, शिक्षा दी जाए(रो 5:14)। जो लोग पुरानी वाचा का ईमानदारी से पालन करते थे, वे आशीषित हुए। इसी तरह, जो लोग इस समय में परमेश्वर की वाचा को संजोते और मानते हैं, उन्हें उद्धार की आशीष प्राप्त होगी।

“फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बाँधूँगा। वह उस वाचा के समान न होगी जो मैं ने उनके पुरखाओं से उस समय बाँधी थी जब मैं उनका हाथ पकड़कर उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया, क्योंकि यद्यपि मैं उनका पति था, तौभी उन्होंने मेरी वह वाचा तोड़ डाली… मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊँगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूँगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूँगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, यहोवा की यह वाणी है। यिर्म 31:31-33

यहोवा परमेश्वर ने भविष्यवाणी की थी कि वह नई वाचा को स्थापित करेंगे। उन्होंने यह भी वादा किया कि जो लोग नई वाचा की व्यवस्था का पालन करेंगे, वे उनके लोग होंगे और वह उनके परमेश्वर होंगे। यह भविष्यवाणी नए नियम में पूरी हुई जब यीशु ने अपने चेलों के साथ मरकुस के ऊपरी कक्ष में फसह मनाया और नई वाचा की स्थापना की(लूक 22:19-20)। पुराने नियम में, परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों के साथ वाचा और व्यवस्था की स्थापना की और उन पर अनुग्रह दिखाया जिन्होंने उनकी आज्ञा का पालन किया। नए नियम के समय में, उन्होंने चुने हुओं के लिए नई वाचा और मसीह की व्यवस्था को स्थापित किया और इसे मनाने वालों को उद्धार और अनन्त जीवन देते हैं।

संबंधित लेख
पिछले पेज पर जाएं

Site Map

사이트맵 전체보기