आज बहुत से लोग यीशु पर विश्वास करने का दावा करते हैं, लेकिन हम ऐसे ईसाइयों को जो नई वाचा का फसह का पर्व मनाते हैं जिसे यीशु ने अपने लहू से स्थापित किया, मुश्किल से खोज सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि 325 ई. में निकिया की परिषद में फसह को नष्ट कर दिया गया। परिषद का आयोजन सम्राट कॉन्सटेंटाइन द्वारा ईसाई चर्च की पहली विश्व परिषद के रूप में किया गया, जिसने चर्च के इतिहास और विश्व इतिहास में भी एक बड़ी छाप छोड़ी।
यीशु ने फसह को नई वाचा के रूप में यह कहते हुए स्थापित किया, “मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं,” लेकिन यह सत्य इतिहास से गायब हो गया। आइए चर्च के इतिहास की जांच करें।
नई वाचा के फसह का परिवर्तन
यीशु ने फसह पर पवित्र भोज का आयोजन किया(पवित्र कैलेंडर के अनुसार पहले महीने का 14वां दिन शाम, गुरुवार) और अगले दिन, अखमीरी रोटी के पर्व में(पवित्र कैलेंडर के अनुसार पहले महीने का 15वां दिन, शुक्रवार) क्रूस पर मर गए। अखमीरी रोटी के पर्व के बाद आने वाले सब्त के अगले दिन(रविवार) को उनका पुनरुत्थान हुआ। अखमीरी रोटी के पर्व के बाद का पहला रविवार, पुनरुत्थान का दिन फसह से पूरी तरह से अलग है जिसे यीशु ने क्रूस पर दुख उठाने से पहले मनाया(लूक 22:15)।
इसलिए प्रथम चर्च ने मसीह की इच्छा के अनुसार पवित्र कैलेंडर के अनुसार पहले महीने के 14वें दिन की शाम को मसीह की मृत्यु की स्मृति में फसह के पवित्र भोज का पालन किया(1कुर 5:7, 11:23-26)। उसके अगले दिन, 15वें दिन को, उन्होंने उपवास करने के द्वारा अखमीरी रोटी का पर्व मनाया(मर 2:19-20); और अखमीरी रोटी के पर्व के बाद पहले रविवार को, उन्होंने रोटी तोड़ने के द्वारा पुनरुत्थान का दिन मनाया(प्रे 20:6-7, लूक 24:30-31)। लेकिन, चेलों के इस दुनिया से चले जाने के बाद, नई वाचा के सत्य धीरे-धीरे करके बदल गए।
उस समय, दुनिया की राजधानी, रोम में चर्च ने अन्य चर्चों पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया क्योंकि मध्यम वर्ग के लोग और यहां तक कि कुलीन परिवार भी चर्च में प्रवेश करते थे, जिनमें से अधिकांश पहले गुलाम और निम्न वर्ग के लोग थे। लेकिन, रोम में चर्च ने मसीह की शिक्षाओं को छोड़ दिया और पथभ्रष्ट हो गए; उन्होंने फसह के दिन पवित्र भोज मनाने से इनकार किया, और फसह के बाद रविवार[पुनरुत्थान के दिन] को मनाया। पवित्र भोज मसीह की मृत्यु की स्मृति में मनाई जाने वाली एक विधि है, न कि उसके पुनरुत्थान के लिए(1कुर 11:26)। फिर भी, रोम के चर्च ने फसह और पुनरुत्थान के दिन को मिला दिया जो पूरी तरह से अलग हैं।
फसह के पर्व पर पहला विवाद
रोम पर केंद्रित पश्चिमी चर्चों का नया रिवाज, पूर्वी चर्चों के साथ टकरा गया, जो यीशु के समय से पवित्र कैलेंडर द्वारा पहले महीने के 14वें दिन की शाम को पवित्र भोज मना रहे थे। 155 ई. में, रोम में चर्च का नेता एनिसीटस और स्मुरना के चर्च के बिशप पोलिकार्प के बीच एक विवाद खड़ा हुआ। पोलीकार्प, जिसे सीधे यूहन्ना द्वारा सिखाया गया था, ने इस बात पर जोर दिया कि फसह पर पवित्र भोज मनाना एक परंपरा थी जो यीशु द्वारा सौंपी गई, और कहा कि वह प्रतिवर्ष फसह को पवित्र कैलेंडर के अनुसार पहले महीने(निसान) के चौदहवें दिन कई प्रेरितों के साथ मनाता था। लेकिन, दोनों में समझौता नहीं हो सका।
“लेकिन पूर्व और पश्चिम के बीच कुछ अंतर उत्पन्न हुआ था। एशिया में नीसान महीने का चौदहवां दिन बहुत अहमियत रखता था… और बाद में प्रभु भोज मनाते थे। हालांकि, पश्चिम में उपवास नीसान नामक पहले महीने के चौदहवें दिन के बाद आने वाले रविवार तक जारी किया गया और उपवास के बाद ही प्रभु भोज की रीति को मनाया गया… 155 ई. में पोलिकार्प ने पोप एनिसीटस के साथ वाद विवाद किया, मगर कोई भी दूसरे को नहीं समझा सका, इसलिए वे अलग हो गए।” जे.डब्ल्यू.सी. वांड, A History of the Early Church to A.D. 500(500 ई. तक प्रथम चर्च का इतिहास), पृष्ठ 82-83
फसह के पर्व पर दूसरा विवाद
197 ई. में, फिर फसह का विवाद खड़ा हुआ। रोम के बिशप(वर्तमान समय में पोप), विक्टर ने कई चर्चों को फसह के बाद पहले रविवार[पुनरुत्थान के दिन] को पवित्र भोज मनाने के लिए मजबूर किया, न कि फसह के दिन(पवित्र कैलेंडर के अनुसार पहले महीने के 14वें दिन की शाम को), और इसे डोमिनिकल नियम[प्रभु का नियम] कहा, जिसके कारण उनमें विवाद हुआ। यद्यपि यीशु ने निसान के 14वें दिन पवित्र भोज मनाया, विक्टर ने अपनी राय का आग्रह किया कि फसह के बाद आने वाले रविवार को पवित्र भोज मनाने का रोमन रिवाज यीशु का नियम था।
197 ई. में रोम में विवाद अधिक खास चरण में पहुंचा। पोप विक्टर ने, जो एनिसीटस से अधिक सत्तात्मक स्वभाव का व्यक्ति था, सब गड़बड़ियों को रोकने का फैसला किया और सारी मण्डलियों को डॉमिनिकल नियम, यानी इस आदेश को स्वीकार करने को मजबूर किया कि रविवार को पर्व मनाया जाए। पूर्व और पश्चिम में विभिन्न जगहों में सभाएं आयोजित की गईं। सभी जगहों में पोप के इस आदेश का स्वागत किया गया; परन्तु एशिया में इस आदेश का अनुमोदन नहीं किया गया। इस पर पोप विक्टर ने अपनी सत्ता का उपयोग किया और उन समस्त मसीही मण्डलियों को मसीही संगति से निकाल दिया जिन्होंने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। फिर, इस तरह विरोध भड़क उठा। जे.डब्ल्यू.सी. वांड, A History of the Early Church to A.D. 500(500 ई. तक प्रथम चर्च का इतिहास), पृष्ठ 83
पश्चिम के चर्चों ने रोम के चर्च के निर्णय का पालन करने के लिए सहमति दिखाई, लेकिन एशिया के चर्चों ने, जो प्रेरितों के युग से लेकर पहले महीने के 14वें दिन को फसह का पवित्र भोज मनाते आए थे, उस निर्णय को स्वीकार नहीं किया। इफिसुस के बिशप, पोलिक्रेट्स ने विक्टर को एक पत्र लिखा। उस पत्र में, उसने कड़ाई से इस बात पर जोर दिया कि फसह का पर्व उसके सही समय पर मनाया जाना चाहिए। उसने कहा कि प्रेरित फिलिप्पुस, प्रेरित यूहन्ना और बहुत से शहीदों ने पहले महीने के 14वें दिन को फसह का पर्व मनाया था, और वह स्वयं भी, जो आठवां बिशप था परम्परा के अनुसार 14वें दिन को फसह का पर्व मनाता था। विक्टर ने अपरंपरागत नियमों का पालन करने के आरोप के तहत एशिया के चर्चों को बहिष्कृत करने की कोशिश की, लेकिन चर्च के बहुत से नेताओं के समझाने के कारण उसे अपनी कार्यवाही को रोकना पड़ा।
एशिया के बिशप इस परम्परा को, जो अपने पूर्वजों से सौंपी गई, मानते थे, जिसका नेतृत्व पोलिक्रेट्स के द्वारा किया गया। वास्तव में, उसने यह परम्परा कहते हुए जो अपने पूर्वजों से सौंपी गई, विक्टर और रोम के चर्च को पत्र भेजा:
“हम सच्चे पर्व को मनाते हैं; न कुछ इसमें बढ़ाते और न घटाते। क्योंकि एशिया में महान रोशनियां सो गई हैं… बारह चेलों में से एक फिलिप्पुस जो हीरापोलिस में सो गया, और उसकी दो कुंवारी बेटियां… इसके अलावा, यूहन्ना… एक शहीद और शिक्षक दोनों। उसे इफिसुस में दफनाया गया। … ये सभी भटक कर, सुसमाचार के अनुसार चौदहवें दिन को फसह मनाते हैं। और मैं, पोलिक्रेट्स जो तुम सब में से छोटा हूं, फिर भी मैं अपने पहले अध्यक्षों की परम्परा का पालन करता हूं…”
… इस पर, विक्टर, रोम के चर्च के बिशप ने तुरन्त एशिया के सारे चर्च और उसके पड़ोसी चर्च को विधर्मी के रूप में साधारण चर्च से निकाल देने की कोशिश की। और उसने दूर तक पत्र भेजे और घोषणा की कि उन्हें पूरी तरह से बहिष्कृत किया गया। मगर सब बिशप इससे सहमत नहीं थे।
युसेबिअस पाम्पिलुस, Eusebius’ Ecclesiastical History(युसेबिअस का चर्च संबंधी इतिहास), अध्याय 24, पृष्ठ 208-209
निकिया की परिषद में फसह के पर्व का मिटाया जाना
एनिसेटस और विक्टर जैस रोमन पोप ने फसह को मिटाने के लिए निरन्तर कोशिश की, लेकिन वे विफल रहे। 4थी शताब्दी में फिर एक बार फसह के पर्व को लेकर विवाद हुआ। शैतान ने आखिरकार रोम के सम्राट कॉन्सटेंटाइन के द्वारा आयोजित की गई निकिया की परिषद में जीवन के सत्य को मिटा दिया। 325 ई. में निकिया में आयोजित की गई इस धार्मिक परिषद के द्वारा फसह के पर्व को मिटा दिया गया और यह निर्धारित किया गया कि पुनरुत्थान के दिन में पवित्र भोज मनाया जाए जिसे रोम के चर्च ने चाहा।
पुनरुत्थान के दिन की तारीख वसंत विषुव के पूर्ण चंद्र के बाद आने वाले रविवार के रूप में नियुक्त की गई। चूंकि बाइबल के निर्धारित दिन – फसह का पर्व और अखमीरी रोटी का पर्व मिटा दिया गया, उन्होंने वसंत विषुव को स्वीकार किया जो बाइबल में नहीं है, और उसके बाद आने वाले रविवार को पुनरुत्थान के दिन के रूप में नियुक्त किया।
3. दूसरी शताब्दी में ईस्टर का विवाद इस प्रश्न पर उठ खड़ा हुआ कि ईस्टर मनाने की उचित तिथि कब है। पूर्व के चर्च ने राय दी कि ईस्टर को यहूदियों के कैलेंडर के अनुसार फसह के पर्व की तिथि, यानी नीसान महीने के चौदहवें दिन को मनाया जाना चाहिए, चाहे वह सप्ताह का कोई भी दिन क्यों न हो। इस दृष्टिकोण में रोमन बिशप एनिसेटस के द्वारा एशिया के पोलीकार्प का विरोध किया गया, जिसने विश्वास किया कि ईस्टर को चौदह निसान के बाद आने वाले रविवार को मनाया जाना चाहिए। पूर्व एवं पश्चिम के चर्च 325 ईसवी में निकिया परिषद आयोजित होने तक किसी भी सहमति पर न आ सके, जिसमें पश्चिमी चर्च की दृष्टिकोण को स्वीकार किया गया। अर्ल ई. केर्न्स, Christianity Through the Centuries (शताब्दियों में ईसाई धर्म), पृष्ठ 112
उसके बाद, जो चर्च रोम के चर्च के अधिकार को वश न होकर, पहले महीने के 14वें दिन फसह का पर्व मनाते थे, उन्हें विधर्मी माना गया और सताया गया। जो संत परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीना चाहते थे, उन्हें जंगल, पहाड़ और गुफाओं में फसह का पर्व मनाना पड़ता था[A History of the Early Church to A.D. 500(500 ई. तक प्रथम चर्च का इतिहास), पृष्ठ 193 देखिए]
इस तरह से, नई वाचा का फसह का पर्व इतिहास से गायब हो गया। जैसे परमेश्वर ने भविष्यवाणी की थी, शैतान ने परमेश्वर के नियुक्त समयों और नियमों को बदल दिया, और संतों पर एक क्षणिक विजय प्राप्त कर ली(दान 7:25)। बाद में, झूठे सिद्धांत और मूर्तियां, जो बाइबल में नहीं हैं, को लगातार चर्च में लाया गया और जीवन का सत्य जिसे यीशु ने सिखाया और जिसे चेलों ने पालन किया, अंधकार युग के दौरान पूरी तरह से गायब हो गया।