भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष और सुसमाचार

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सारांश

बाइबल गवाही देती है कि मानवजाति की मृत्यु अदन में आदम और हव्वा के व्यवस्था के उल्लंघन करने के पाप से उत्पन्न हुई: “भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना।” मसीह आन सांग होंग ने इस पुस्तक के माध्यम से अपने छुटकारे के प्रबंध में अदन के इतिहास का सही अर्थ प्रकट किया। उन्होंने यह भी प्रचार किया कि मानवजाति स्वर्गदूत हैं जिन्होंने स्वर्ग में पाप किया था। यह पुस्तक दिखाती है कि नई वाचा वह सुसमाचार है जिसे मसीह ने मानवजाति के स्वर्ग वापस लौटने के लिए प्रचार किया, और सुसमाचार का प्रमुख सत्य फसह है।

प्रस्तावना

इस पुस्तक का उद्देश्य इन सवालों का स्पष्ट जवाब देना है कि परमेश्वर ने आदम और हव्वा को क्यों रचा और उनसे क्यों पाप करवाया? परमेश्वर ने उद्धार की योजना क्यों स्थापित की? परमेश्वर ने पुराने नियम में शरण नगर को क्यों बसाया? उस शरण नगर की भविष्यवाणी नए नियम में किससे पूरी हुई? नए नियम का सुसमाचार क्या है और उस सुसमाचार का पालन करने का तरीका क्या है? मलिकिसिदक की रीति क्या है? और वह चिन्ह क्या है जिससे हम निस्संदेह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? क्योंकि इस संसार में बहुत सारे झूठे सिद्धान्त हैं। बाइबल कहती है कि जो झूठ के द्वारा भरमाए जाते हैं, वे भी नष्ट होंगे।

उद्धार विश्वास के द्वारा होता है, लेकिन झूठा विश्वास भी है। तब वह विश्वास क्या है जिसके द्वारा उद्धार होता है? यदि आप विश्वास रखते हैं, तो आपको अनन्त जीवन में प्रवेश करने के लिए अपने पास सत्य और सही विश्वास रखना चाहिए।

विषय सूची

  • अध्याय 1 अदन की वाटिका में क्यों भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष रखा?
  • अध्याय 2 व्यवस्था स्थापित की गई ताकि अपराध बढ़ जाए
  • अध्याय 3 सब्त का दिन और एक हजार वर्षों का सब्त
  • अध्याय 4 सम्पूर्ण और अपूर्ण
  • अध्याय 5 स्वर्ग से निकाला जाना
  • अध्याय 6 मिट्टी का मनुष्य और स्वर्गीय मनुष्य
  • अध्याय 7 क्यों परमेश्वर ने हमें स्वर्गदूतों की दुनिया में पाप करवाया?
  • अध्याय 8 परमेश्वर ने शरणनगर को क्यों स्थापित किया?
  • अध्याय 9 नई वाचा का सुसमाचार क्या है?
  • अध्याय 10 सुसमाचार का सेवक नई वाचा का सेवक है
  • अध्याय 11 पुरानी वाचा नई वाचा में बदल गई है
  • अध्याय 12 हारून की रीति और मलिकिसिदक की रीति
  • अध्याय 13 फसह का पवित्र भोज
  • अध्याय 14 फसह के पर्व का रहस्य
  • अध्याय 15 झोपड़ियों के पर्व के बारे में

अध्याय 1 अदन की वाटिका में क्यों भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष रखा?

जब परमेश्वर ने अदन की वाटिका में भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष लगाया, तब क्या परमेश्वर जानता था कि आदम और हव्वा इसे तोड़ कर खाएंगे, या नहीं जानता था?

हम यह नहीं कह सकते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जो अन्त की बात आदि से बताता आया है, इसे न जाना(यश 46:10 संदर्भ)। अगर परमेश्वर पहले से जानता था, तो यह नि:सन्देह है कि उसने आदम और हव्वा को पाप करवाने की योजना बनाई; क्योंकि दोहरा फन्दा लगाने के लिए परमेश्वर ने भरमाने वाला सर्प भी बनाया। जैसा कि लिखा है:

उत 3:1-5 『यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था…』

इसके अतिरिक्त इस्राएलियों ने मिस्र में राजा फ़िरौन से कठोर दुख पाया, लेकिन जिसने उन्हें दुख दिलाया, वह भी परमेश्वर था। जैसा कि लिखा है:

निर्ग 9:15-16; रो 9:17-18 『… परन्तु सचमुच मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है कि तुझे अपनी सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं।』

परमेश्वर ने इसलिए भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष रखा कि आदम और हव्वा इसे तोड़कर खाने के द्वारा पाप करें, मगर जहां पाप बढ़ा वहां अनुग्रह भी कहीं अधिक हुआ। आदम और हव्वा के लिए भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष एक आज्ञा बना। जहां व्यवस्था नहीं होती वहां पाप भी नहीं होता(रो 5:13 संदर्भ)।

अध्याय 2 व्यवस्था स्थापित की गई ताकि अपराध बढ़ जाए

तब भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष लगाकर परमेश्वर ने आदम और हव्वा को उसे खाकर पाप करने क्यों दिया? यह पाप से छुटकारा देकर उन्हें अनन्त महिमा में प्रवेश कराने के लिए था। अदन की वाटिका में अनन्त जीवन निश्चित नहीं था, परन्तु यह शर्त के साथ पाया जाता था। लेकिन जो अपराधी यीशु के लहू के द्वारा छुटकारा पाता है उसके लिए अनन्त जीवन पूरी तरह से नियुक्त किया जाता है, न कि शर्त के साथ। जैसा कि लिखा है:

प्रक 21:4 『“वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं।”』

अदन की वाटिका में या सीनै पर्वत पर स्थापित की गई व्यवस्था से मनुष्य का मर जाना निश्चित था। अदन की वाटिका में भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष व्यवस्था था, और सीनै पर्वत पर दस आज्ञाएं व्यवस्था थीं। यह लिखा है कि परमेश्वर ने इसलिए व्यवस्था स्थापित की कि वे पाप करें।

रो 5:20-21 『व्यवस्था बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहां पाप बहुत हुआ वहां अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ, कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे।』

दूसरे शब्दों में जब हम मृत्यु से यीशु के लहू के द्वारा छुटकारा पाते हैं, तब हमारे लिए अनन्त जीवन पूर्णत: निश्चित होता है। मुख्य बात यही है, यीशु का लहू। यीशु के लहू के बिना संपूर्णता नहीं हो सकती। प्रेरित पौलुस ने आज्ञा के बारे में इस प्रकार लिखा है:

रो 7:10-11 『और वही आज्ञा जो जीवन के लिये थी, मेरे लिये मृत्यु का कारण ठहरी। क्योंकि पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझे बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला।』

अदन की वाटिका से शैतान अवसरों का इन्तजार करते हुए बहकाने का काम निरन्तर करता आया है। जब आदम नहीं था, शैतान ने अवसर पाकर हव्वा को बहकाया कि वह भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष तोड़कर खाए, और हव्वा ने उसे आदम को दिया, और आदम ने उसे खाया, अत: उन दोनों को मृत्यु आई(उत 3:1-5 संदर्भ)।

इसलिए अदन की वाटिका में भी सम्पूर्ण सृष्टि नहीं हुई और सीनै पर्वत पर भी सम्पूर्ण व्यवस्था नहीं थी। परमेश्वर अब तक सम्पूर्ण चीजों को बनाने के लिए सृष्टि का कार्य कर रहा है। जैसा कि लिखा है:

यूह 5:17 『इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं।”』

यीशु ने यह वचन इसलिए कहा कि यहूदियों ने यीशु की निन्दा की जो सब्त के दिन भी मनुष्य की सम्पूर्ण सृष्टि करता था।

तब सम्पूर्ण सृष्टि के कार्य का अन्त कब होगा? उत्पत्ति के 1 अध्याय में लिखा है कि परमेश्वर ने छ: दिनों तक सृष्टि का कार्य किया और उसके बाद आराम किया। इसके बारे में प्रेरित पौलुस ने व्याख्या की जैसा कि अगले अध्याय में लिखा है।

अध्याय 3 सब्त का दिन और एक हजार वर्षों का सब्त

इब्र 4:3-6 『… यद्यपि जगत की उत्पत्ति के समय से उसके काम पूरे हो चुके थे। क्योंकि सातवें दिन के विषय में उसने कहीं यों कहा है, “परमेश्वर ने सातवें दिन अपने सब कामों को निपटा करके विश्राम किया।” और इस जगह फिर यह कहता है, “वे मेरे विश्राम में प्रवेश न करने पाएंगे।” तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्राम में प्रवेश करें…』

“ ‘परमेश्‍वर ने सातवें दिन अपने सब कामों को निपटा करके विश्राम किया,’ और इस जगह फिर यह कहता है, ‘वे मेरे विश्राम में प्रवेश न करने पाएंगे।’ तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्राम में प्रवेश करें” यहां प्रेरित पौलुस व्याख्या कर रहा है कि मानव जाति के इतिहास के 6 हज़ार वर्ष खत्म होते समय हम अनन्त विश्राम में प्रवेश करेंगे।

6 दिनों के बाद आने वाले विश्रामदिन और 6 वर्षों के बाद आने वाले विश्रामवर्ष का अध्ययन करें तो हम जान सकते हैं कि ये आने वाली बातों की भविष्यवाणी हैं। बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार 1 दिन 1 वर्ष है(गिन 14:34; यहेज 4:6 संदर्भ), और 1 दिन 1 हज़ार वर्ष है।

2पत 3:8 『… यह बात तुम से छिपी न रहे कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर है।』

भविष्यवाणी के अनुसार विश्रामदिन(हर सातवां दिन) और विश्रामवर्ष(हर सातवां वर्ष) यह दिखाते हैं कि जब मनुष्य के इतिहास के 6 हज़ार वर्ष बीत जाएंगे, तब पृथ्वी पर 1 हज़ार वर्षों का विश्राम आएगा। प्रकाशितवाक्य में लिखा है कि शैतान एक हजार वर्ष तक अथाह-कुंड में डालकर बन्द कर दिया जाएगा और संत एक हजार वर्ष तक राज्य(विश्राम) करेंगे(प्रक 20:1-6 संदर्भ)। इसलिए परमेश्वर का 6 दिनों की सृष्टि के बाद विश्राम करना प्रत्यक्ष करता है कि परमेश्वर 6 हज़ार वर्षों की सम्पूर्ण सृष्टि का कार्य समाप्त करने के बाद अनन्त विश्राम में प्रवेश करेगा, और संत जो छुड़ाए हुए हैं वे भी उसके साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे।

“और इस जगह फिर यह कहता है, ‘वे मेरे विश्राम में प्रवेश न करने पाएंगे।’ तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्राम में प्रवेश करें।” उस विश्राम में प्रवेश करने के बारे में प्रेरित यूहन्ना ने व्यक्त किया कि वे एक हज़ार वर्ष तक राज्य करेंगे। इसलिए आदम और हव्वा सम्पूर्ण नहीं, पर अपूर्ण थे। वे सिर्फ सम्पूर्ण बनाने का नमूना थे। क्योंकि आदम और हव्वा पाप भी कर सकते थे और मर भी सकते थे। प्रेरित पौलुस ने सम्पूर्ण और अपूर्ण मनुष्य के बारे में इस प्रकार लिखा:

1कुर 15:44-53 『स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है : जबकि स्वाभाविक देह है, तो आत्मिक देह भी है। ऐसा ही लिखा भी है, कि “प्रथम मनुष्य, अर्थात् आदम जीवित प्राणी बना” और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्मा बना। परन्तु पहले आत्मिक न था पर स्वाभाविक था, इसके बाद आत्मिक हुआ। प्रथम मनुष्य(आदम) धरती से अर्थात् मिट्टी का था; दूसरा मनुष्य(यीशु) स्वर्गीय है। जैसा वह मिट्टी का था, वैसे ही वे भी हैं जो मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही वे भी हैं जो स्वर्गीय हैं। और जैसे हम ने उसका रूप धारण किया जो मिट्टी का था वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे…』

दूसरे शब्दों में आदम आत्मिक, यानी सम्पूर्ण वाला नहीं था। वह स्वाभाविक, यानी अपूर्ण मनुष्य था जो भूमि की मिट्टी से सृजा गया था। यह दिखाता है कि मिट्टी के अपूर्ण मनुष्य को स्वर्ग के आत्मिक और सम्पूर्ण व्यक्ति में बदल जाना चाहिए।

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