स्वर्गदूतों की दुनिया से आए मेहमान

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सारांश

बहुत से लोग केवल मृत्यु के बाद के अपने जीवन के बारे में ध्यान देते हैं और वे इसके बारे में गहराई से नहीं सोचते कि वे इस पृथ्वी पर आने से पहले कहां थे। इस पुस्तक में, मसीह आन सांग होंग ने इसकी विस्तार में व्याख्या की है। मानवजाति जो इस पृथ्वी पर एक छोटा और व्यर्थ जीवन जीती हैं मूल रूप से स्वर्गदूत थे जो स्वर्ग में महिमा के साथ रहते थे, लेकिन उन्होंने पाप किया और वे इस पृथ्वी पर निकाल दिए गए। उन्होंने इसे बाइबल में विभिन्न अभिलेखों के माध्यम से जानने दिया। उन्होंने इसे प्रमाणित किया कि शरीर की मृत्यु के बाद भी आत्मा मौजूद रहती है, और हमें पुनरुत्थान और स्वर्ग की महिमा के बारे में जानने देकर जो परमेश्वर के लोग प्राप्त करेंगे आत्मिक आशा दी है।

प्रस्तावना

यह पुस्तक अच्छे समाचार के बारे में है कि स्वर्गीय दुनिया में असंख्य स्वर्गदूत जो स्वर्ग में पाप करके इस पापमय दुनिया में मनुष्य बनकर पैदा हुए हैं, वे अपने पाप के दण्ड से मुक्त हो जाएंगे और स्वर्गदूतों की दुनिया में वापस जाएंगे।

इस पृथ्वी पर पैदा हुए सभी लोग स्वर्गदूतों की दुनिया से आए मेहमान हैं। मनुष्य की आत्मा दुनिया भर में अधिक चर्चित धर्मशास्त्रीय विषय बन गया है। ईसाइयों के अलावा बहुत से धार्मिक लोग भी आत्मा के विषय पर अध्ययन कर रहे हैं, फिर भी वे एक निश्चित मत पर नहीं पहुंच पाते और उसे अपनी अपनी रीति से सिखाते हैं और चर्चा करते हैं। बाइबल के विद्वान भी आत्मा के मूलभूत सिद्धांत के बारे में नहीं जानते। इसलिए इस विषय में आप ने कभी स्पष्ट और विश्वासयोग्य उत्तर अथवा उपदेश नहीं सुना होगा।

यदि आप इसके बारे में पूर्ण रूप से महसूस करेंगे कि सभी स्वर्गदूत, परमेश्वर के पुत्र और मनुष्यों की आत्माएं परमेश्वर के द्वारा कैसे सृजी गई हैं, तो आप आत्मा के विषय में, अर्थात् उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य के विषय में पूरी तरह से समझ जाएंगे।

यह पुस्तक इसका अध्ययन करने में आपकी मदद करेगी कि स्वर्गदूत और मनुष्यों की आत्माएं कैसे सृजी गई हैं, और यह आपको स्वर्गदूतों की दुनिया, मनुष्यों की दुनिया और अगली दुनिया के विषय में पूरा ज्ञान देगी, और यह स्पष्ट रूप से आपको दिखाएगी कि मनुष्यों की आत्माएं कहां से आईं और कहां वापस जाएंगी।

यदि कोई इसे जाने बिना उपदेश देता है कि मनुष्यों की आत्माएं कहां से आईं और कहां वापस जाएंगी, तो वह ऐसा उपदेशक है जिसे अपने उपदेश पर विश्वास नहीं है। बिना यह जाने कि आप कहां से आए हैं, आप कैसे कह सकेंगे कि आप जानते हैं कि आप कहां वापस जाएंगे? परन्तु यदि आप इस पुस्तक को पढ़ें, तो आप महसूस कर सकेंगे कि आपके इस पृथ्वी पर आने से पहले स्वर्ग के राज्य में परमेश्वर के पुत्र और स्वर्गदूत आपके नजदीकी मित्र थे, और आप इस पर भी विश्वास कर सकेंगे कि स्वर्गदूत और परमेश्वर के पुत्र जिन्होंने पाप नहीं किया है, वे आपका पापों से पश्चाताप करने और स्वर्ग के राज्य में वापस आने का इंतजार कर रहे हैं।

यद्यपि हम पाप का पर्दा पहनने के कारण यह सब स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते और नहीं समझ सकते, परन्तु यदि हम सिर्फ आत्मा के बारे में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करेंगे, तो हम आशा और आनंद के साथ उनसे फिर से मिलने के इंतजार में रहेंगे। यह पुस्तक बाइबल के आधार पर आत्मा के विषय में असंदिग्ध सत्य को प्रकट करती है। कृपया गंभीरता से इस पुस्तक को पढ़िए।

विषय सूची

  • अध्याय 1 मरणशील मनुष्य के लिए अनन्त जीवन का रास्ता
  • अध्याय 2 जगत की उत्पत्ति से पूर्व मसीह में हमारा चुन लिया जाना
  • अध्याय 3 स्वर्गदूतों की दुनिया में जीवन और कार्य
  • अध्याय 4 स्वर्गदूतों के बारे में
  • अध्याय 5 खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने आना
  • अध्याय 6 व्यवस्था स्थापित की गई ताकि अपराध बढ़ जाए
  • अध्याय 7 आत्मा के विषय को पढ़ने में
  • अध्याय 8 आत्मा को अस्वीकार करने वालों का हठ
  • अध्याय 9 आत्मा जो पाप करती है, अवश्य मर जाएगी
  • अध्याय 10 मनुष्य की आत्मा कहां से आई?
  • अध्याय 11 यीशु की आत्मा और हमारी आत्मा
  • अध्याय 12 परमेश्वर के भ्रष्ट पुत्र और शरण-नगर
  • अध्याय 13 पहला आदम और अन्तिम आदम
  • अध्याय 14 मनुष्य क्यों मरता है?
  • अध्याय 15 हमारा स्वदेश कहां है जहां हम लौट जाएंगे?
  • अध्याय 16 हमारा स्वदेश स्वर्गदूतों की दुनिया है
  • अध्याय 17 क्यों मनुष्य अपने पिछले जीवन को याद नहीं कर सकता?
  • अध्याय 18 परमेश्वर ने जीवन के श्वास से आत्माओं को बनाया
  • अध्याय 19 हमारा शरीर हमारी आत्मा का बन्दीगृह है
  • अध्याय 20 मनुष्य की आत्मा मृत्यु के बाद भी जीवित रहती है
  • अध्याय 21 मृतकों को भी सुसमाचार का प्रचार करना
  • अध्याय 22 पुनरुत्थान होने पर हमारी देह का क्या होगा?

अध्याय 1 मरणशील मनुष्य के लिए अनन्त जीवन का रास्ता

मनुष्य संसार में पैदा होता है, परन्तु वह मृत्यु से नहीं बच सकता। मनुष्य संसार में पैदा होता है और मर जाता है, और फिर दूसरा मनुष्य पैदा होता और मर जाता है। तब, उत्पत्ति से लेकर अभी तक कितने लोग पैदा हुए हैं और मर गए हैं? यद्यपि मनुष्य को सारी सृष्टि का स्वामी कहा जाता है, परन्तु अंत में वह सारी सृष्टि का स्वामी नहीं, बल्कि सिर्फ मृत्यु का दास है। सारी सृष्टि का स्वामी क्यों मृत्यु का दास बन गया है?

चाहे मनुष्य दस वर्ष जीता हो या फिर एक सौ वर्ष जीता हो, वह अंत में मृत्यु के अधीन होगा। तो मानव का जीवन कितना निरर्थक है! मानव का जीवन एक छोटी यात्रा के समान है; कोई भी सदा सर्वदा नहीं जी सकता। वास्तव में मृत्यु होने तक मनुष्य को मृत्यु के भय के मारे शैतान के दासत्व में फंसकर जीवन बिताना पड़ता है। मृत्यु से कोई नहीं बच सकता। मनुष्य का जीवन कितना दयनीय है!

भजन संहिता के लेखक ने मनुष्य के जीवन की निरर्थकता के बारे में इस प्रकार लिखा:

भज 90:9-10 『क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं, हम अपने वर्ष शब्द के समान बिताते हैं। हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएं, तौभी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है; वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं।』

भले ही हमारी आयु के वर्ष सत्तर या अस्सी होते हैं, फिर भी यदि वे बीत जाएं, तो हमारा जीवन सिर्फ रात के सपने के समान होता है और सुबह को उगती घास के समान होता है। ऐसा कहना उचित है कि जीवन बस एक सपने के जैसा निरर्थक है। यशायाह नबी ने कहा:

यश 40:6-7 『… सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है। जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्झा जाता है; नि:सन्देह प्रजा घास है।』

तब, इस व्यर्थ और कष्टमय दुनिया में हम क्यों पैदा हुए? और किसने इस व्यर्थ दुनिया को बनाया? प्रेरित पौलुस ने लिखा:

रो 5:12 『इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया।』

जब हम ऊपर के वचन पर गहराई से विचार करते हैं, तो एक मनुष्य, यानी आदम के द्वारा सैकड़ों अरबों मनुष्यों को मरना पड़ता है। यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है। क्यों सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आदम और हव्वा को पाप करने दिया? कुछ लोग इस सवाल का ऐसा जवाब देते हैं, “परमेश्वर आदम और हव्वा को पाप करने से रोक सकते थे, परन्तु यदि परमेश्वर ने ऐसा किया होता, तो आदम और हव्वा संपूर्ण स्वतंत्रता नहीं पा सकते थे। इसलिए परमेश्वर ने उन्हें चुनने की स्वतंत्रता दी, और उन्होंने पाप करने का चुनाव किया।” क्या आपको लगता है कि यह सही जवाब है?

यदि यह सही जवाब है, तो वे अगले सवाल का जवाब कैसे देंगे? जैसा कि लिखा है:

प्रक 21:4 『वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी…』

यहां, क्यों परमेश्वर चुनने की संपूर्ण स्वतंत्रता नहीं देता, परन्तु मृत्यु को हटाता है? यदि हमें स्वर्ग में संपूर्ण स्वतंत्रता मिलती है, तो क्या हमारे पास मृत्यु या अनन्त जीवन को चुनने की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए? वे इस सवाल का जवाब कैसे देंगे?

जब हम इस विषय पर विस्तार से अध्ययन करें, तो हम जानेंगे कि आदम और हव्वा के लिए अनन्त जीवन निश्चित नहीं था। परमेश्वर ने उनसे केवल यही कहा कि “फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ।”(उत 1:27-28) उनके लिए अनन्त जीवन एक शर्त के अधीन था। जैसा कि लिखा है:

उत 2:16-17 『और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, “तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।”』

शर्त यह थी कि यदि वे भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष में से खाएंगे, तो वे मर जाएंगे, और यदि वे नहीं खाएंगे, तो वे जीवित रहेंगे। परन्तु जो यीशु मसीह के द्वारा छुटकारा पाते हैं, उनके लिए अनन्त जीवन निश्चित है। जैसा कि लिखा है:

प्रक 21:4 『“वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं।”』

अध्याय 2 जगत की उत्पत्ति से पूर्व मसीह में हमारा चुन लिया जाना

दूसरा प्रश्न यह है: “जब परमेश्वर ने अदन की वाटिका में भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष लगाया, तब क्या परमेश्वर यह जानता था कि आदम और हव्वा इसे तोड़ कर खाएंगे, या फिर वह इसे नहीं जानता था?”

हम यह नहीं कह सकते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो अन्त की बात आदि से बताता आया है, इसे नहीं जानता था(यश 46:10)। यदि परमेश्वर पहले से जानता था, तो यह नि:सन्देह है कि उसने आदम और हव्वा को पाप करवाने की योजना बनाई होगी। परमेश्वर ने उस सर्प को भी, जिसने हव्वा को भरमाया, बनाया(उत 3:1-5)। यह परमेश्वर की योजना थी कि उस सर्प के द्वारा आदम और हव्वा भरमाए जाएं और भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष में से खाएं।

वास्तव में, जगत की उत्पत्ति से पहले मसीह में इन सब की योजना बनाई गई थी(इफ 1:3-9)। कुछ लोग सोचते हैं कि आदम के पाप करने के बाद परमेश्वर ने उद्धार की योजना बनाई। परन्तु उद्धार की योजना आकाश और पृथ्वी की सृष्टि करने से पहले ही बनाई गई थी। जैसा कि लिखा है:

इफ 1:4-9 『जैसा उसने हमें जगत की उत्पत्ति से पहले उसमें चुन लिया कि हम उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों। और अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया… हम को उसमें उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात् अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है…』

यदि हम इस तथ्य पर ध्यान दें कि परमेश्वर ने अपने उद्धार पानेवालों को जगत की उत्पत्ति से पहले मसीह में चुन लिया, तो यह निश्चित है कि आदम के लिए मरना पहले से नियुक्त किया गया था।

हमें पाप के मूल के विषय में टुकड़ों में नहीं पढ़ना चाहिए। जब हम आदम के इतिहास के बारे में उत्पत्ति का दूसरा और तीसरा अध्याय पढ़ते हैं, तब हमें उन्हें यशायाह 14:12-14 और यहेजकेल 28:11-17 के साथ जोड़कर पढ़ना चाहिए। तब हम भ्रष्ट स्वर्गदूतों और मनुष्यों के बीच के संबंध को ठीक से जानेंगे।

आदम का पाप अच्छी तरह से बताया गया है कि इंसान उसे आसानी से समझ सकें। और यशायाह और यहेजकेल की पुस्तकें हमें सिखाती हैं कि कैसे स्वर्गदूत भ्रष्ट हो गए और कैसे उन्होंने पाप किया। वास्तव में उनके पाप आदम के पाप के समान हैं। यशायाह की पुस्तक प्रथम पापी के परमेश्वर का विरोध करने का कारण और उसकी मानसिक प्रक्रिया के बारे में बताती है, और यहेजकेल की पुस्तक प्रथम पापी के मूल स्वभाव और पद के बारे में बताती है।

यहेजकेल की पुस्तक में हम देख सकते हैं कि सोर के राजा ने स्वर्ग में कैसे पाप किया: वह छानेवाला अभिषिक्त करूब था और वह परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर आग सरीखे चमकनेवाले मणियों के बीच चलता फिरता था, परन्तु महिमा की बहुतायत के कारण उसका मन घमण्डी हो गया, अत: वह पाप करके भूमि पर पटक दिया गया। जैसा कि लिखा है:

यहेज 28:11-17 『फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा : “हे मनुष्य के सन्तान, सोर के राजा के विषय में विलाप का गीत बनाकर उससे कह; परमेश्वर यहोवा यों कहता है : तू तो उत्तम से भी उत्तम है; तू बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर है। तू परमेश्वर की अदन नामक बारी में था; तेरे पास आभूषण, माणिक, पद्यराग, हीरा, फीरोज़ा, सुलैमानी मणि, यशब, नीलमणि, मरकद, और लाल सब भांति के मणि और सोने के पहिरावे थे; तेरे डफ और बांसुलियां तुझी में बनाई गई थीं; जिस दिन तू सिरजा गया था, उस दिन वे भी तैयार की गई थीं। तू छानेवाला अभिषिक्त करूब था, मैंने तुझे ऐसा ठहराया कि तू परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर रहता था; तू आग सरीखे चमकनेवाले मणियों के बीच चलता फिरता था… सुन्दरता के कारण तेरा मन फूल उठा था; और वैभव के कारण तेरी बुद्धि बिगड़ गई थी। मैं ने तुझे भूमि पर पटक दिया; और राजाओं के सामने तुझे रखा कि वे तुझ को देखें।”』

यशायाह की पुस्तक उस कार्य को प्रकट करती है जो बेबीलोन के राजा ने स्वर्ग में किया: वह भोर के चमकनेवाले तारे के महिमामय पद पर था, पर वह अहंकारी होने लगा और उसने परमेश्वर के तारों से भी कहीं ऊपर अपना सिंहासन ऊंचा करना तथा परमेश्वर के तुल्य बनना चाहा, अत: वह पापमय भूमि पर गिरा दिया गया।

यश 14:4-15 『उस दिन तू बेबीलोन के राजा पर ताना मारकर कहेगा… “हे भोर के चमकनेवाले तारे, तू कैसे आकाश से गिर पड़ा है? तू जो जाति जाति को हरा देता था, तू अब कैसे काटकर भूमि पर गिराया गया है? तू मन में कहता तो था, ‘मैं स्वर्ग पर चढ़ूंगा; मैं अपने सिंहासन को ईश्वर के तारागण से अधिक ऊंचा करूंगा; और उत्तर दिशा की छोर पर सभा के पर्वत पर विराजूंगा, मैं मेघों से भी ऊंचे ऊंचे स्थानों के ऊपर चढ़ूंगा, मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊंगा।’ परन्तु तू अधोलोक में उस गड़हे की तह तक उतारा जाएगा।”』

ये दो आयतें एक साथ पढ़ते हुए, हम पाप के मूल के बारे में आधारभूत ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इन दो आयतों के द्वारा जो हम समझ सकते हैं, वह यह है कि ये दोनों घटनाएं सभी लोगों का प्रतिनिधिक उदाहरण हैं, और हम इसे भी समझ सकते हैं कि असंख्य स्वर्गदूतों ने पाप किया। जैसा कि लिखा है:

प्रक 12:9 『तब वह बड़ा अजगर, अर्थात् वही पुराना सांप जो इब्लीस और शैतान कहलाता है और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया, और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए।』

शैतान परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करके असंख्य स्वर्गदूतों के साथ नीचे गिरा दिए जाने के बाद भी, पृथ्वी के प्रतिनिधि के रूप में स्वर्ग के पहिलौठों की महासभा में शामिल होता था(अय 1:6-7; 2:1-2; इब्र 12:23 तुलना)। परन्तु ज्यों ही यीशु मसीह क्रूस के द्वारा उस पर विजयी हुआ, शैतान स्वर्ग के पहिलौठों की महासभा से पूरी तरह से बाहर निकाल दिया गया(लूक 10:18; प्रक 12:9 तुलना)।

अध्याय 3 स्वर्गदूतों की दुनिया में जीवन और कार्य

स्वर्गदूतों की दुनिया में गति की कोई सीमा नहीं है, इसलिए हम सिर्फ एक घंटे के अन्दर सारे अंतरिक्ष को देख सकते हैं। दानिय्येल की पुस्तक में दिन के तीन बजे(सांझ के बलिदान के समय) जैसे ही दानिय्येल प्रार्थना करने लगा, जिब्राएल तुरन्त दानिय्येल के पास आ पहुंचा, और उसने उसे परमेश्वर का संदेश सौंपा।

खगोलज्ञों के अनुसार हमारी आकाशगंगा का व्यास 1 लाख प्रकाशवर्ष है, और इस आकाशगंगा में करीब 200 अरब सूरज के जैसे तारे हैं, और अंतरिक्ष में 200 अरब आकाशगंगाएं हैं। उस अंतरिक्ष के केंद्र में जहां 200 अरब आकाशगंगाएं हैं, “जीवते परमेश्वर का नगर स्वर्गीय यरूशलेम” है(इब्र 12:22-23), और इस यरूशलेम नगर में केंद्रीय महल स्थित है जहां परमेश्वर का सिंहासन होता है। जब परमेश्वर ने दानिय्येल की प्रार्थना सुनी और सैकड़ों करोड़ प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित अंतरिक्ष के केंद्र में परमेश्वर के सिंहासन से जिब्राएल को उसके पास भेजा, और जिब्राएल परमेश्वर का संदेश लेकर उसके पास पहुंचा, तब भी दानिय्येल की प्रार्थना खत्म नहीं हुई(दान 9:20-24)।

स्वर्गदूतों की दुनिया में हजारों डिग्री तापमान की आग भी स्वर्गदूतों या धर्मियों को हानि नहीं पहुंचा सकती। इसके लिए पर्याप्त प्रमाण है: शद्रक, मेशक और अबेदनगो, जो दानिय्येल के तीन मित्र थे, उस धधकते हुए भट्ठे में डाल दिए गए थे जिसे साधारण से सात गुणा अधिक धधका दिया गया था, फिर भी उनकी देह को कुछ भी हानि नहीं पहुंची(दान 3:19-27 संदर्भ)। और स्वर्गदूतों की दुनिया में परमेश्वर के अलावा कोई भी स्वर्गदूतों या धर्मियों की आत्माओं को नहीं मार सकता; न तो बन्दीगृह और न ही जंजीरें या बेड़ियां उन्हें बांध सकती हैं। जब प्रेरित पतरस बन्दीगृह में रखा गया था, भले ही उसे चार-चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा गया था, परन्तु स्वर्गदूतों ने स्वतंत्रता से बन्दीगृह में प्रवेश किया और यहां तक कि उसकी बेड़ियां और जंजीरें खुल कर गिर पड़ीं और बन्दीगृह का फाटक अपने आप खुल गया। इसलिए पतरस सुरक्षित रूप से बचाया गया(प्रे 12:1-10)।

और स्वर्गदूतों की दुनिया में वे अदृश्य भोजन खाते हैं और पेय पीते हैं। जैसा कि प्रेरित यूहन्ना ने लिखा:

प्रक 22:1-2 『फिर उसने मुझे बिल्लौर की सी झलकती हुई, जीवन के जल की नदी दिखाई, जो परमेश्वर और मेम्ने के सिंहासन से निकलकर उस नगर की सड़क के बीचों बीच बहती थी। नदी के इस पार और उस पार जीवन का वृक्ष था; उसमें बारह प्रकार के फल लगते थे, और वह हर महीने फलता था; और उस वृक्ष के पत्तों से जाति-जाति के लोग चंगे होते थे।』

उपर्युक्त जीवन के वृक्ष का फल और जीवन का जल दृश्य वस्तु नहीं हैं, परन्तु परमेश्वर के वचन के द्वारा बनाए गए रहस्यमय भोजन हैं। जीवन के जल की नदी परमेश्वर और मेमने के सिंहासन से निकलती है, और नदी के दोनों किनारों पर जीवन का वृक्ष है। ये सब परमेश्वर के वचन के द्वारा बनाए गए रहस्यमय जीवन के भोजन हैं। इसलिए कोई भी मनुष्य अपने ज्ञान और बुद्धि के द्वारा स्वर्गदूतों की दुनिया की महिमा का दस हजारवां अंश भी शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता।

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