आज, बहुत से लोग नहीं जानते कि उनकी आत्माएं कहां से आई हैं, वे इस पृथ्वी पर क्यों जी रहे हैं, और मरने के बाद वे कहां जाएंगे।आत्मा के सृष्टिकर्ता, परमेश्वर के वचनों के माध्यम से, हम इन सवालों के जवाब पा सकते हैं जो लंबे समय से हल नहीं हुए हैं। बाइबल हमें बताती है कि आत्मा निश्चित रूप से मौजूद है और हमारी आत्मा का घर स्वर्ग है।
1. आत्मा का शरीर से स्वतंत्र रूप से अस्तित्व है
अधिकांश ईसाई और अन्य धार्मिक लोग मानते हैं कि शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा का अस्तित्व होता है। यदि ऐसा है, तब, हमारी आत्माओं का अस्तित्व कब शुरू हुआ?
यदि शरीर की सृष्टि के समय से आत्मा का अस्तित्व शुरू हुआ, तो शरीर के मरने पर आत्मा को भी गायब होना चाहिए। यदि शरीर के जन्म के साथ ही आत्मा का अस्तित्व शुरू होता है, तो इसका अर्थ है कि आत्मा शरीर के अधीन है; लेकिन, बाइबल कहती है कि शरीर की मृत्यु के बाद भी, आत्मा का अस्तित्व बना रहता है।
जब उसने पांचवीं मुहर खोली, तो मैं ने वेदी के नीचे उनके प्राणों को देखा जो परमेश्वर के वचन के कारण और उस गवाही के कारण जो उन्होंने दी थी वध किए गए थे। उन्होंने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे स्वामी, हे पवित्र और सत्य; तू कब तक न्याय न करेगा? और पृथ्वी के रहनेवालों से हमारे लहू का बदला कब तक न लेगा?” प्रक 6:9-10
“वध किए गए लोगों के प्राण(आत्माएं),” यह वाक्यांश दिखाता है कि उनके शरीर पहले ही मर चुके थे। लेकिन, उनकी आत्माएं जीवित हैं और परमेश्वर से बात कर रही हैं। इसलिए, आत्मा शरीर की मृत्यु से स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में है और शरीर के जन्म से पहले उसका अस्तित्व होना चाहिए।
2. आत्मा शरीर के जन्म से पहले ही अस्तित्व में थी
हम यीशु मसीह के माध्यम से पुष्टि कर सकते हैं कि शरीर के जन्म से पहले मनुष्य की आत्मा का अस्तित्व था।यीशु का जन्म सामान्य लोगों के समान ही हुआ था।आसपास के लोग यीशु और अपने बीच में कोई अन्तर नहीं पा सकते थे। और नासरत के यहूदियों ने, जिन्होंने यीशु को उनके बचपन से देखा था अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार नहीं किया।
और अपने नगर में आकर उनके आराधनालय में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा कि वे चकित होकर कहने लगे, “इसको यह ज्ञान और सामर्थ्य के काम कहां से मिले? क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम और इसके भाइयों के नाम याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं? और क्या इसकी सब बहिनें हमारे बीच में नहीं रहतीं? फिर इसको यह सब कहां से मिला?” इस प्रकार उन्होंने उसके कारण ठोकर खाई… मत 13:54-57
जब हम यीशु के शारीरिक जीवन को देखते हैं, तो हम देख सकते हैं कि यह सामान्य मानव जीवन से अलग नहीं था। जब हमारे आत्मिक जीवन की बात आती है, तो हमें यह भी समझना चाहिए कि पद के अलावा, यीशु और हमारे बीच कोई अंतर नहीं है। यदि यीशु और हमारी आत्मिक स्थिति अलग होती, तो हम पुनरुत्थान की आशा नहीं कर सकते और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते; इसलिए, हमारी आत्मिक स्थिति यीशु मसीह की आत्मिक स्थिति के समान है।
जिस प्रकार यीशु का पुनरुत्थान वह प्रमाण है जो हमारे पुनरुत्थान को महसूस करने में हमारी मदद करता है(1कुर 15:12-22), उसी प्रकार यीशु का पिछला जीवन वह प्रमाण है जो हमें हमारा पिछला जीवन दिखाता है। यदि हम जानते हैं कि यीशु इस पृथ्वी पर शरीर में आने से पहले कहां थे, तो हम अपनी आत्माओं के अतीत को जान सकते हैं।
बाइबल कहती है कि यीशु की आत्मा शरीर में जन्म लेने से पहले स्वर्ग में मौजूद थी(यूह 1:1, 14; 6:38)। इसका मतलब है कि मानव आत्माएं इस पृथ्वी पर शरीर में पैदा होने से पहले ही स्वर्ग में मौजूद थीं।
3. स्वर्ग हमारी आत्माओं का घर है
इस पृथ्वी पर आने से पहले हमारी आत्माएं मूल रूप से स्वर्ग में थीं। इसका मतलब है कि स्वर्ग हमारी आत्माओं का घर है। विश्वास के पूर्वजों ने भी इसी बात की गवाही दी।
तब फ़िरौन ने याक़ूब से पूछा, “तेरी आयु कितने दिन की हुई है?” याक़ूब ने फ़िरौन से कहा, “मैं एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बिता चुका हूं; मेरे जीवन के दिन थोड़े और दु:ख से भरे हुए भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का मैं अभी नहीं हुआ।” उत 47:8-9
जब फिरौन ने याकूब से पूछा कि वह कितने वर्ष का है, तब याकूब ने उसको उत्तर दिया, “मैं तो परदेशी होकर एक सौ तीस वर्ष का हूं।” और उसने कहा कि उसके बाप दादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे वह उतने दिन का अभी नहीं हुआ।उसने इस पृथ्वी पर अपने और अपने पूर्वजों के वर्षों की तुलना परदेशी के रूप में की।
विश्वास ही से हाबिल ने… विश्वास ही से नूह ने… विश्वास ही से अब्राहम… ये सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाईं, पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं। जो ऐसी बातें कहते हैं, वे प्रगट करते हैं कि स्वदेश की खोज में हैं। और जिस देश से वे निकल आए थे, यदि उस की सुधि करते तो उन्हें लौट जाने का अवसर था। पर वे एक उत्तम अर्थात् स्वर्गीय देश के अभिलाषी हैं… इब्र 11:4-9, 13-16
इब्रानियों के लेखक ने भी लिखा है कि हाबिल, नूह और अब्राहम जैसे विश्वास के पूर्वजों ने परदेशी का जीवन जिया।इसके अलावा, उन्होंने कहा कि वे एक उत्तम देश, एक स्वर्गीय देश की लालसा कर रहे थे।यह दिखाता है कि पृथ्वी पर सभी लोग परदेशी और बाहरी के रूप में जी रहे हैं, और हमारे शरीर का घर इस पृथ्वी पर कहीं है, लेकिन हमारी आत्मा का घर स्वर्ग है।
4. मानवजाति अपने पापों के कारण इस पृथ्वी पर पैदा हुई
मानवजाति स्वर्ग में उनके आत्मिक घर को छोड़कर इस पृथ्वी पर क्यों रहती है? यह सुराग़ यहेजकेल की पुस्तक में दर्ज किए गए सोर के राजा के मामले में खोज सकता है।
“हे मनुष्य के सन्तान, सोर के राजा के विषय में विलाप का गीत बनाकर उससे कह; परमेश्वर यहोवा यों कहता है : तू तो उत्तम से भी उत्तम है ; तू बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर है। तू परमेश्वर की अदन नामक बारी में था; तेरे पास आभूषण, माणिक… सोने के पहिरावे थे… तू छानेवाला अभिषिक्त करूब था, मैं ने तुझे ऐसा ठहराया कि तू परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर रहता था; तू आग सरीखे चमकनेवाले मणियों के बीच चलता फिरता था। यहेज 28:11-14
सोर का राजा बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर था, और वह नाना प्रकार के मणियों से सुशोभित था, और एक करूब भी था, जो आग सरीखे चमकनेवाले मणियों के मध्य चलता था सोर का राजा एक स्वर्गदूत था जो पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में जन्म लेने से पहले स्वर्ग में परमेश्वर के साथ रहा था। दुर्भाग्य से, वह स्वर्ग में नहीं रह सका क्योंकि उसे इस पृथ्वी पर निकाल दिया गया था।
जिस दिन से तू सिरजा गया, और जिस दिन तक तुझ में कुटिलता न पाई गई, उस समय तक तू अपनी सारी चालचलन में निर्दोष रहा। परन्तु लेन–देन की बहुतायत के कारण तू उपद्रव से भरकर पापी हो गया; इसी से मैं ने तुझे अपवित्र जानकर परमेश्वर के पर्वत पर से उतारा, और हे छानेवाले करूब मैं ने तुझे आग सरीखे चमकनेवाले मणियों के बीच से नष्ट किया है।” यहेज 28:15-16
सोर के राजा को स्वर्ग में पाप करने के कारण इस पृथ्वी पर निकाल दिया गया। यह सोर के राजा के समान शरीर में रहने वाली सभी मानवजाति के पिछले जीवन को दिखाता है। सभी लोगों ने स्वर्ग में पाप किया और उन्हें इस पृथ्वी पर गिरा दिया गया, और अब वे पृथ्वी पर परदेशी के रूप में जी रहे हैं। यीशु, जो मानव जाति को बचाने के लिए इस पृथ्वी पर आए थे, ने मानव जाति को “खोए हुए” या “पापी” कहा(लूक 19:10; मत 9:13)। अपने पापों के कारण, सारी मानवजाति स्वर्ग से खो गई है।
5. स्वर्ग के राज्य में लौटने का मार्ग नई वाचा फसह के माध्यम से है
परदेशी और बाहरी उन लोगों को दर्शाते हैं जो अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में रहते हैं। मानवजाति, जो पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी के रूप में जी रही है, को मृत्यु के बाद अपने आत्मिक घर लौटने का अवसर मिलेगा(सभ 12:7)। बहुत से लोग मानते हैं कि यदि वे एक सदाचारी जीवन जीएंगे, तो वे स्वर्ग के राज्य में जाएंगे; लेकिन, कोई भी पापों की क्षमा प्राप्त किए बिना स्वर्ग नहीं लौट सकता। यीशु हमें पापों की क्षमा देने के लिए पृथ्वी पर आए। उन्होंने अपने लहू के द्वारा हमारे लिए पापों की क्षमा प्राप्त करने का मार्ग खोल दिया।
हम को उसमें उसके(यीशु) लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात् अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है। इफ 1:7
कुछ लोग मानते हैं कि वे केवल यीशु के बलिदान पर विश्वास करते हुए जिन्होंने क्रूस पर अपना लहू बहाया, अपने पापों की क्षमा प्राप्त करेंगे; लेकिन, यीशु ने नई वाचा के फसह के माध्यम से पापों की क्षमा प्राप्त करने के सत्य की स्थापना की।
अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन… अत: चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी और फसह तैयार किया… जब वे खा रहे थे तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष मांगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, “तुम सब इसमें से पीओ, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।” मत 26:17-19, 26-28
यीशु ने अपने चेलों के साथ फसह का पर्व मनाया और कहा कि फसह का दाखमधु उनका लहू है जो पापों की क्षमा के लिए बहाया जाता है। इसलिए, यीशु के लहू के द्वारा पापों की क्षमा प्राप्त करने के लिए, हमें न केवल क्रूस पर उनके बलिदान के बारे में सोचना चाहिए बल्कि नई वाचा का फसह भी मनाना चाहिए। नई वाचा का फसह वह बहुमूल्य सत्य है जो हमें स्वर्ग के राज्य, हमारी आत्माओं के घर की ओर ले जाता है।