सब्त एक पवित्र दिन है जिसे परमेश्वर ने हमें “स्मरण रखने और पवित्र मानने” की आज्ञा दी है। आज अधिकांश चर्च रविवार की आराधना करते हैं, लेकिन बाइबल शनिवार, सातवें दिन सब्त को आराधना के सही दिन के रूप में उल्लिखित करती है। कुछ लोग सोचते हैं कि सब्त केवल पुराने नियम की नष्ट की गई व्यवस्था है। लेकिन, नए नियम में यीशु और प्रेरितों के सब्त का पालन करने का अभिलेख है। इसका अर्थ है कि हमें इस युग में भी बिना परिवर्तन के सब्त मनाना चाहिए।
यदि हम परमेश्वर के लोग हैं, तो परमेश्वर की आराधना के दिन को सही तरह से जानना चाहिए और उसे पवित्र रखना चाहिए। आइए सब्त के बारे में जानें, जो सृष्टिकर्ता की शक्ति को स्मरण कराता है और पवित्र आशीषों का वादा करता है।
सब्त की शुरुआत
पहले दिन से लेकर छठे दिन तक, परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की, और सातवें दिन विश्राम किया।
… और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया, और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया। और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया… उत 2:1-3
परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीषित और पवित्र किया, और इसे सब्त बनाया, और हमारे लिए इसे स्मरण रखने और पवित्र रखने के लिए दस आज्ञाओं में से चौथी आज्ञा के रूप में नियुक्त किया।
“तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना… सातवाँ दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है… क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश, और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उनमें हैं, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रामदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया। निर्ग 20:8-11
क्या सब्त का पालन नहीं करना ठीक है, जिसे परमेश्वर ने विशेष रूप से हमें मनाने की आज्ञा दी है? परमेश्वर ने कहा कि जब हम परमेश्वर के वचनों में एक भी चीज जोड़ते या घटाते हैं तो हम बचाए नहीं जा सकते। सब्त एक महत्वपूर्ण आज्ञा है जिसका बाइबल में 100 से अधिक बार उल्लेख किया गया है।
सप्ताह का कौन सा दिन सब्त है?
बाइबल हमें बताती है कि सप्ताह का कौन सा दिन सातवाँ दिन सब्त है।
सप्ताह के पहले दिन भोर होते ही वह जी उठ कर… मर 16:9
यीशु का पुनरुत्थान “सप्ताह के पहले दिन” यानी सब्त के अगले दिन हुआ था। उसी अध्याय की शुरुआत में लिखा है, “जब सब्त का दिन बीत गया।” जिस दिन यीशु जी उठे थे वह रविवाद का दिन है। यह कैथोलिक और प्रोटेस्टेंटे दोनों द्वारा स्वीकृत किया जाता है, और टुडे अंग्रेजी संस्करण बाइबल में यह दर्ज किया गया है कि रविवार को यीशु का पुनरुत्थान हुआ था।
वह रविवार की भोर को जी उठ कर… मर 16:9 TEV
सब्त के बाद का दिन रविवार है, इसलिए सब्त शनिवार है, जो रविवार से एक दिन पहले आता है। सब्त जिसे परमेश्वर ने मनाने की आज्ञा दी वह शनिवार है। चूंकि ईसाई धर्म यूरोप में लंबे समय से प्रचलित है, इसलिए अक्सर यह पाया जाता है कि सावतां दिन जिस दिन परमेश्वर ने विश्राम किया, उसका अनुवाद बाइबल में शनिवार के रूप में किया गया है। उदाहरण के लिए, निर्गमन 20:8 में इस प्रकार लिखा गया है; “शनिवार को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना।” इस तरह के अनुवाद ग्रीक, पुर्तगाली, इतालवी, रूसी, यूक्रेनी, स्लोवाक, बल्गेरियाई और क्रोएशियाई जैसी कई भाषाओं में पाए जाते हैं।
रविवार, जिसे दुनिया के कई चर्च मनाते हैं, वह सब्त नहीं है जिसे परमेश्वर ने मनाने की आज्ञा दी, बल्कि सब्त के बाद आने वाला पहला दिन है, यानी सब्त के बाद का दिन है। यहां तक कि आज रविवार की आराधना करने वाले चर्च भी इसे स्वीकार करते हैं।
“कुछ और कहने की आवश्यकता नहीं, पर क्या सारे मसीही अनावश्यक सांसारिक काम रोक कर, रविवार को आदरयोग्य दिन नहीं मानते? क्या इस नियम का पालन करना हमारा सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य नहीं? लेकिन चाहे आप बाइबल को उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य तक पढ़ें, आप एक पद भी नहीं खोज पाएंगे जहां रविवार को पवित्र मानने के लिए कहा गया हो। पवित्रशास्त्र शनिवार को पवित्र मानने के लिए कहता है, जिसे हम कभी नहीं मानते।” जेम्स कार्डिनल गिबन्स, “हमारे पिता का विश्वास,” पृष्ठ 72-73
यहां तक कि कैथोलिक चर्च, जो रविवार की आराधना को “अपने पवित्र कर्तव्यों में सबसे प्रमुख” मानता है, स्वीकार करता है कि रविवार की आराधना के लिए कोई बाइबल का आधार नहीं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वे कहते हैं, “बाइबल में सब्त का दिन शनिवार है, रविवार नहीं।” बाइबल में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि यदि हम पहले दिन रविवार को आराधना करें, तो हमें आशीष मिलेगी। यदि हम परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञा की गई पवित्र आशीषों को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें शनिवार, सातवें दिन सब्त को आराधना करनी चाहिए।
सब्त के दिन का अर्थ और महत्व
सब्त का दिन, जिसे परमेश्वर ने मनाने की आज्ञा दी थी, उन लोगों के लिए जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण आज्ञा है। परमेश्वर ने कहा कि सब्त परमेश्वर और उनके लोगों के बीच एक चिन्ह है। इसका अर्थ यह है कि जो लोग सब्त नहीं मनाते उन्हें परमेश्वर के लोगों के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
‘निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना। क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिह्न ठहरा है… जो कोई उसे अपवित्र करे वह मार डाला जाए: जो कोई उस दिन में कुछ काम-काज करे वह प्राणी अपने लोगों के बीच से नष्ट किया जाए। निर्ग 31:13-14
कड़े वचनों के अनुसार कि जो कोई सब्त को अपवित्र करे, वह अपने लोगों के बीच से नष्ट किया जाए, पुराने नियम के समय में जो लोग सब्त का उल्लंघन करते थे, उन्हें पथराव करके मार डाला गया(निर्ग 15:32-36)। पुराने नियम के समय में यदि हम सब्त का पालन न करें, तो हम मर जाते थे लेकिन इस युग में, हमारी आत्मा जीवन खो देती है और हम उद्धार से दूर हो जाते हैं।
क्या नए नियम के समय में सब्त मिटा दिया गया?
कुछ लोग हठ करते हैं कि सब्त केवल पुराने नियम की व्यवस्था थी जिसे नए नियम के समय में मिटा दिया गया था। लेकिन, यह हठ यीशु की शिक्षाओं के विरुद्ध है जो नए नियम के समय में उद्धारकर्ता के रूप में आए थे। यीशु ने स्वयं सब्त के दिन को मनाने का उदाहरण स्थापित किया।
वह[यीशु]… अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। लूक 4:16
यीशु ने “अपनी रीति के अनुसार” सब्त मनाया। यदि हम एक या दो बार कुछ करते हैं, तो यह रीति नहीं कहलाती। यीशु ने हर सप्ताह सब्त का दिन मनाया। जब यीशु से उनके दूसरे आगमन और युग के अंत के बारे में पूछा गया(मत 24:3), तो उन्होंने अपने चेलों से कहा कि उन्हें युग के अंत तक सब्त मनाना चाहिए।
प्रार्थना किया करो कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ और न कभी होगा। मत 24:20-21
चूंकि ऐसा क्लेश जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ और न कभी होगा, इसलिए यह अंतिम बड़ी विपत्ति है। यीशु ने कहा कि हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि अंतिम विपत्ति जाड़े में या सब्त के दिन न पड़े। उन्होंने ऐसा संतों के लिए कहा ताकि वे ठंड के मौसम से पीड़ित न हों, और विपत्ति के कारण सब्त को मनाने में असफल न हों। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि हमें सब्त को अंतिम दिन तक मनाना चाहिए।
यीशु की शिक्षाओं का पालन करते हुए, प्रेरित पौलुस और प्रथम चर्च के अन्य संतों ने यीशु के स्वर्गारोहण के बाद भी सब्त के दिन को पवित्रता से मनाया(प्रे 17:2-3; 18:4)।
बाइबल के अनुसार सब्त का दिन मनाने का कारण
परमेश्वर पर विश्वास करने और परमेश्वर की आराधना करने का उद्देश्य उद्धार प्राप्त करना और स्वर्ग जाना है। बाइबल हमें सिखाती है कि जो लोग परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं, अर्थात् जो सब्त के दिन का पालन करते हैं, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।
“जो मुझ से, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?’ तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।’ मत 7:21-23
परमेश्वर ने पुराने नियम के समय में और नए नियम के समय में, लगातार हमें सातवें दिन सब्त का पालन करना सिखाया। यह स्पष्ट है कि सब्त के दिन को मनाना परमेश्वर की इच्छा है, न कि रविवार की आराधना जो बाइबल में नहीं मिलती। यही कारण है कि यीशु ने सब्त के दिन को मनाने का उदाहरण स्थापित किया, और प्रेरितों और प्रथम चर्च के संतों ने भी सब्त मनाया। जो कोई परमेश्वर पर विश्वास करता है और उद्धार प्राप्त करना चाहता है और स्वर्ग जाना चाहता है, उसे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सब्त के दिन को पवित्रता से मनाना चाहिए।