मनुष्य की आत्मा पूरी दुनिया में चर्चा का एक धर्मशास्त्रीय विषय है। ईसाई धर्म सहित कई धर्म आत्मा के विषय का अध्ययन करते हैं और अपने तरीके से इसकी व्याख्या करते हैं; लेकिन, हम ने कोई शोध निबंध या उपदेश नहीं सुने जो निश्चित, आश्वस्त करने वाले और सुसंगत हो।
आत्मा का उत्तर बाइबल में पाया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बाइबल उन परमेश्वर का रिकॉर्ड है जिन्होंने मनुष्य की आत्मा को बनाया। तब, बाइबल हमें आत्मा के बारे में क्या सिखाती है? पुराना नियम, जो मसीह के इस पृथ्वी पर आने से पहले लिखा गया था, रात के अस्पष्ट चंद्रमाप्रकाश के समान, आत्मा के बारे में सत्य को दिखाता है। दूसरी ओर, नया नियम दिन के चमकते सूर्य प्रकाश के समान इसे स्पष्ट रूप से प्रकट करता है।
आत्मा शरीर का जीवन या ऊर्जा है?
कुछ लोग केवल पुराने नियम के वचनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, आत्मा को गलत समझते हैं। वे जोर देते हैं कि आत्मा शरीर का जीवन या ऊर्जा है, इसलिए जब मनुष्य की मृत्यु होती है, तो उनके सिद्धांतों के अनुसार उसकी आत्मा नष्ट हो जाती है। लेकिन, बाइबल की शिक्षाएं अलग हैं।
तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया। उत 2:7
मनुष्य मिट्टी और जीवन के श्वास, यानी शरीर और आत्मा से बनाया गया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब शरीर बनाया गया था तब आत्मा अपने आप नहीं बनी, लेकिन आत्मा, जिसे परमेश्वर ने शरीर में फूंका, अलग प्राणी है। इसलिए जब मनुष्य मरता है, तो उसका शरीर मिट्टी में मिल जाता है और उसकी आत्मा परमेश्वर के पास लौट जाती है(सभ 12:7)। क्योंकि जहां से यह दोनों आए वह अलग है, इसलिए जहां वे जाएंगे वह भी अलग है।
यदि आत्मा केवल शरीर का जीवन या ऊर्जा है, तो इसका अर्थ है कि हमारे शरीर को जीवन देने वाले हमारे शारीरिक माता-पिता ने हमारी आत्मा को भी जन्म दिया है। लेकिन, बाइबल स्पष्ट रूप से गवाही देती है कि “शारीरिक पिता” और “आत्माओं के पिता” अलग हैं।
फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे और हमने उनका आदर किया, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी अधीन न रहें जिससे हम जीवित रहें। इब्र 12:9
हमारी आत्माओं के पिता परमेश्वर को संकेत करते हैं। आत्मा परमेश्वर द्वारा बनाई गई है, जिसका शारीरिक पिता से कोई संबंध नहीं है। इसलिए, आत्मा जिसकी बाइबल गवाही देती है, वह शरीर का जीवन या ऊर्जा नहीं है, जो तब बनी जब शरीर का जन्म हुआ है। यह एक अलग वस्तु है जो मनुष्य के मरने के बाद भी जीवित रहती है।
शरीर के मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है।
यीशु ने सिखाया कि एक व्यक्ति शरीर को मार सकता है लेकिन आत्मा को नहीं।
जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है। मत 10:28
प्रेरित यूहन्ना और पतरस, जिन्हें यीशु ने सिखाया था, ने लिखा है कि शरीर के मरने के बाद भी आत्मा जीवित है।
मैं ने वेदी के नीचे उनके प्राणों को देखा जो परमेश्वर के वचन के कारण और उस गवाही के कारण जो उन्होंने दी थी वध किए गए थे। उन्होंने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “… हे स्वामी, हे पवित्र और सत्य; तू कब तक न्याय न करेगा…” प्रक 6:9-11
उसी में उसने जाकर कैदी आत्माओं को भी प्रचार किया, जिन्होंने उस बीते समय में आज्ञा न मानी, जब परमेश्वर नूह के दिनों में धीरज धरकर ठहरा रहा, और वह जहाज बन रहा था… मरे हुओं को भी सुसमाचार इसी लिये सुनाया गया। 1पत 3:19-20, 4:6
अपने दर्शन में, प्रेरित यूहन्ना ने शहीद संतों की आत्माओं को परमेश्वर के साथ बात करते हुए देखा। प्रेरित पतरस ने लिखा कि यीशु ने नूह के दिनों में मरने वालों की आत्माओं को सुसमाचार का प्रचार किया। कुछ लोग सोचते हैं कि मृतकों की आत्माएं बेहोश होती हैं, लेकिन यह भी सच नहीं है। बाइबल ने दर्ज किया कि यीशु ने मृतकों की आत्माओं को सुसमाचार का प्रचार किया। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मृत्यु के बाद मौजूद आत्मा सचेत होती है और सुसमाचार को समझ और स्वीकार कर सकती है।
आत्मा ही जीवन का सार है।
बाइबल में, शरीर की मृत्यु शरीर से आत्मा के अलगाव को संकेत करती है(सभ 12:1-7)। जब आत्मा शरीर से निकल जाती है, तो शरीर मर जाता है; इसके विपरीत, जब शरीर छोड़ने वाली आत्मा उसमें वापस आती है, तो शरीर जीवित हो जाता है। जीवन का सार आत्मा है, शरीर नहीं।
किसी ने आराधनालय के सरदार के यहाँ से आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई… उसने कहा, “रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है”… उसने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, “हे लड़की, उठ!” तब उसके प्राण लौट आए और वह तुरन्त उठ बैठी। फिर उसने आज्ञा दी कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। लूक 8:49-55
इस प्रकार, एक व्यक्ति की आत्मा या तो शरीर के अंदर या शरीर के बाहर हो सकती है। दूसरे शब्दों में, यह शरीर से स्वतंत्र रूप में मौजूद हो सकती है। प्रेरित पौलुस ने भी दो बार उल्लेख किया कि आत्मा शरीर से अलग रह सकती है(2कुर 12:2-3)। उसने संतों की मृत्यु के बारे में भी गवाही दी कि “देह से अलग होकर प्रभु के पास जाना।”
क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है। पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभादायक है तो मैं नहीं जानता कि किसको चुनूँ। क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूँ; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूँ, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है… फिलि 1:21-24
इसलिये हम ढाढ़स बाँधे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं। 2कुर 5:8
जब प्रेरित पौलुस ने “मृत्यु” और “देह में रहने के बारे में” बात की, तो उसने कहा कि मर जाना अर्थात् देह से अलग होना और मसीह के साथ रहना बेहतर है। ऐसा इसलिए था क्योंकि उसे विश्वास था कि जैसे ही उसकी आत्मा उसके शरीर को छोड़ देगी, वह स्वर्ग में मसीह के साथ होगा।
यह तथ्य कि आत्मा शरीर से अलग रह सकती है, और शरीर जिससे आत्मा निकलती है वह केवल मरा हुआ है, यह दिखाता है कि जीवन का सार आत्मा है, शरीर नहीं। इसलिए, प्रेरितों ने मानव शरीर की तुलना उस तम्बू से की, जहां आत्मा थोड़ी देर के लिए रहती है(2पत 1:13-14; 2कुर 5:1-4), और सुसमाचार के मार्ग पर चलते हुए, इस पृथ्वी पर के अस्थायी जीवन की नहीं, लेकिन स्वर्ग में अनंत जीवन की आशा की।
नए नियम के समय में, मसीह स्वयं इस पृथ्वी पर आए और स्पष्ट रूप से आत्मा के बारे में सिखाया। इस युग में भी, दूसरी बार आए मसीह आन सांग होंग ने बाइबल के माध्यम से उन लोगों को आत्मा और आत्मिक दुनिया के अस्तित्व के बारे में बताया जो पृथ्वी पर व्यर्थ जीवन जी रहे थे। जो कोई भी उनकी शिक्षाओं को सुनेगा, वह अपनी आत्मा के घर अर्थात् स्वर्ग में जा सकेगा।