यीशु मसीह का सुसमाचार क्या है?
इसका महत्व, विषय और मूल

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दुनिया में कई चर्च हैं, और प्रत्येक चर्च मसीह के सुसमाचार का प्रचार करने का दावा करता है।लेकिन, जब आप उनसे पूछते हैं कि सुसमाचार क्या है, तो वे स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाएंगे।वे यह जाने बिना कि सुसमाचार क्या है, कैसे उसका प्रचार करने का दावा कर सकते हैं?यदि कोई उद्धारकर्ता के रूप में यीशु पर विश्वास करने और उनका पालन करने का दावा करता है, तो उसे यह जानना चाहिए कि यीशु मसीह का सुसमाचार क्यों महत्वपूर्ण है और विस्तार से बताना चाहिए कि वह क्या है।

सुसमाचार का महत्व

यीशु शरीर में आए परमेश्वर हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर चाहते तो एक स्वर्गदूत या एक नबी को भेज सकते थे, लेकिन इसके बजाय, वह स्वयं पृथ्वी पर आए और सुसमाचार का प्रचार किया। इस दृष्टिकोण से, हम आसानी से समझ सकते हैं कि सुसमाचार कितना बहुमूल्य और महत्वपूर्ण है। यदि हम राज्य के सुसमाचार में निहित आशीषों को देखें, जिसका यीशु ने प्रचार किया, तो इसका महत्व और भी स्पष्ट हो जाता है।

जिससे तुम पढ़कर जान सकते हो कि मैं मसीह का वह भेद कहां तक समझता हूं। जो अन्य समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया है। अर्थात् यह कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लोग मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं। इफ 3:4-6

यह लिखा है कि सुसमाचार के द्वारा अन्यजाति भी जो परमेश्वर को नहीं जानते, मीरास में साझी, एक ही देह के और यीशु की प्रतिज्ञा के भागी बन सकते हैं। परमेश्वर की प्रतिज्ञा अनन्त जीवन है(1यूह 2:25)। जो कोई सुसमाचार को समझता है और उसका पालन करता है, वह मसीह की देह का हिस्सा और स्वर्ग के राज्य का वारिस बन जाएगा, और अनन्त जीवन प्राप्त करेगा। इसके विपरीत, सुसमाचार के बिना कोई भी अनन्त जीवन प्राप्त नहीं कर सकता और स्वर्ग के राज्य का वारिस नहीं बन सकता। सुसमाचार एक आशीषित और महत्वपूर्ण संदेश है जिसमें अनन्त जीवन और स्वर्ग के राज्य की महान आशीषें समाई हैं।

यीशु मसीह का सुसमाचार क्या है?

सुसमाचार का शाब्दिक अर्थ है शुभ समाचार। व्यापक नज़रिये से, पुराने नियम की विषय-वस्तु भी सुसमाचार है क्योंकि यह परमेश्वर के लोगों को आशीष देने के लिए दर्ज किया गया था। हालांकि, यह लिखा गया है कि नए नियम में सुसमाचार उस समय से शुरू होता है जब यीशु ने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया था(लूक 16:16; मर 1:1; मत 4:17)। यह भी लिखा है कि राज्य का सुसमाचार जो उस समय से शुरू हुआ, सिर्फ यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने तक ही नहीं, लेकिन अन्तिम दिन तक प्रचार किया जाना चाहिए।

और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा। मत 24:14

विशेष रूप से, वह सुसमाचार क्या था जिसका यीशु ने प्रचार किया?

और उसने उनसे कहा, “तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो।” मर 16:15

“इसलिये तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ…” मत 28:19-20

यीशु के पुनरुत्थान के बाद, उन्होंने अपने चेलों को “सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार का प्रचार करने” की आज्ञा दी। मत्ती ने यीशु के इन वचनों को इस प्रकार लिखा, “उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” दूसरे शब्दों में, सुसमाचार वह सब कुछ है जो यीशु ने सिखाया और आज्ञा दी थी। यह विस्तार से अध्ययन करना महत्वपूर्ण है कि यीशु ने तीन साल तक क्या उदाहरण दिखाया, और हमें उनके पदचिन्हों पर चलना चाहिए।

यीशु ने बपतिस्मा लिया(लूक 3:21), अपनी रीति के अनुसार सातवें दिन सब्त मनाया(लूक 4:16), झोपड़ियों के पर्व में प्रचार करने के लिए मंदिर में गए(यूह 7:2, 37-39), और नई वाचा के फसह की स्थापना की(मत 26:17-28; लूक 22:15-20)। इस तरह, परमेश्वर के पर्व, जिसे यीशु ने स्वयं मनाया, राज्य के सुसमाचार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यीशु ने यह कहते हुए पुष्टि की कि उन्होंने जो कुछ भी किया वह मानव जाति के उद्धार के लिए मार्गदर्शन है, “मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो”(यूह 13:15)।

सुसमाचार का मूल नई वाचा का फसह है

हम कह सकते हैं कि राज्य का सुसमाचार ही नई वाचा है।

… उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिसका प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया, और जिसका मैं, पौलुस, सेवक बना। कुल 1:23

जिसने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया… 2कुर 3:6

प्रेरित पौलुस, जिसने कुलुस्सियों और 2कुरिन्थियों की पुस्तकें लिखीं, ने अपने आप को सुसमाचार का सेवक और नई वाचा का सेवक बताया। इसका मतलब है कि सुसमाचार नई वाचा है। नई वाचा के सुसमाचार का मूल सत्य फसह है। यीशु ने अपने चेलों के साथ अंतिम फसह मनाते हुए नई वाचा की स्थापना की।

जब घड़ी आ पहुंची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं…” फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिये दी जाती है : मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” लूक 22:14-15, 19-20

नई वाचा के फसह में सुसमाचार की सभी आशीषें समाई हैं, जो इफिसियों अध्याय 3 में दर्ज है। जिस प्रकार वे जो अपने माता-पिता के लहू को विरासत में पाते हैं, उनकी संतान बन जाते हैं, उसी प्रकार जो नई वाचा के फसह के द्वारा परमेश्वर के मांस और लहू को विरासत में पाते हैं, वे परमेश्वर की संतान अर्थात् परमेश्वर के वारिस बन जाते हैं(रो 8:16-17)। और जो नई वाचा का फसह मनाते हैं, वे मसीह में एक देह हो जाते हैं(1कुर 10:16)। दूसरे शब्दों में, वे मसीह की देह के अंग बन जाते हैं। यीशु ने यह भी कहा कि जो उनका मांस खाते और उनका लहू पीते हैं, अनन्त जीवन उनके पास है(यूह 6:53-54)। इसलिए, जो नई वाचा का फसह मनाते हैं, वे अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे।

इस तरह, सुसमाचार में निहित सभी प्रकार की आशीषें नई वाचा के फसह के द्वारा दी जाती हैं।जिन प्रेरितों ने यीशु की आज्ञा का पालन करते हुए खुद को सुसमाचार के सेवकों के रूप में समर्पित किया, उन्होंने भी सुसमाचार के मूल सत्य, फसह का प्रचार किया और इस पर जोर दिया कि हमें इसे अवश्य मनाना चाहिए (1कुर 11:23-26)।उन्होंने यह भी सिखाया कि यदि हम मसीह के सुसमाचार का पालन नहीं करते या अन्य सुसमाचार को मानते हैं, तो हमें दण्ड दिया जाएगा और हम शापित होंगे(2थिस 1:7-9; गल 1:6-9)।इसलिए, यदि कोई चर्च प्रथम चर्च का पालन करने का दावा करता है जिसने मसीह के सुसमाचार का प्रचार किया था, तो उसे अन्य सुसमाचारों का पालन करने के बजाय, फसह के पर्व सहित नई वाचा के सत्य का पालन करना चाहिए जिसे यीशु ने स्वयं सिखाया था।

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