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परमेश्वर का रहस्य और जीवन के जल का स्रोत

16039 읽음

सारांश

बाइबल हमें बताती है कि परमेश्वर जो शरीर में आए हैं, केवल परमेश्वर का रहस्य ही नहीं, लेकिन वह जीवन के जल का स्रोत भी हैं(कुल 1:26-27; 2:2; यूह 4:14; 7:37-38)। इस पुस्तक में, मसीह आन सांग होंग ने आत्मा और दुल्हिन, अर्थात इस युग में परमेश्वर के रहस्य और जीवन के जल के स्रोत के बारे में गवाही दी। प्रेरितों के युग के बाद से जीवन का सत्य गायब हो गया और कोई भी बचाया नहीं जा सकता था। बाइबल ने भविष्यवाणी की कि मसीह नई वाचा के सभी सत्यों को पुनःस्थापित करने और अपने लोगों को बचाने के लिए शरीर में फिर आएंगे। मसीह आन सांग होंग ने बाइबल की इन शिक्षाओं को जानने दिया और दुल्हिन का उल्लेख किया जो दूसरी बार आनेवाले मसीह के साथ प्रकट होगी। उन्होंने नई वाचा के पर्वों और उनके भविष्यसूचक अर्थ और उन शिक्षाओं को समझाया जिन्हें परमेश्वर के लोगों को बीते इतिहास के द्वारा महसूस करना चाहिए, और त्रिएक, आत्मा, पुरानी वाचा और नई वाचा और परमेश्वर की मुहर को भी समझाया।

प्रस्तावना

यह किताब परमेश्वर के अंतिम रहस्य के बारे में है, जिसको परमेश्वर ने सिर्फ अंतिम शेष लोगों को देने के लिए छिपाया है, जैसे कि पुराने नियम की आख़िरी पुस्तक मलाकी 4:5-6 में लिखा है: “देखो, यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहले, मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूंगा। वह माता-पिता के मन को उनके पुत्रों की ओर, और पुत्रों के मन को उनके माता-पिता की ओर फेरेगा,” और आमोस 3:7 में “इसी प्रकार से प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।”

अब समय आ गया है और परमेश्वर का अनन्त राज्य निकट है। इसलिए बाइबल में सभी रहस्य जिन पर मुहर लगाई गई(यश 8:16; दान 12:4, 9-10; प्रक 10:4 संदर्भ) खोले जाने चाहिए(प्रक 10:7; 22:10 संदर्भ)। इस किताब में लिखे, ‘मलिकिसिदक की रीति क्या है’ और ‘राजा दाऊद का इतिहास किसको दर्शाता है?’ और यीशु के दुबारा आने के विषय के बारे में, ‘यीशु एक ही बार आग के साथ न्यायाधीश के रूप में आएंगे?’ या ‘गुप्त रूप से क्षणिक काल के लिए शरीर में आकर सच्चाई की साक्षी देने के बाद अंतिम न्यायाधीश के रूप में आएंगे?’ इन सभों पर सोच-विचार सरलता पूर्वक न करना चाहिए।

जो भी सच्चाई का प्यासा है, उसे यह किताब पढ़ना आवश्यक है। यह किताब केवल आम विश्वासियों के लिए नहीं, परन्तु पादरी और धर्मशास्त्रीय स्कूल के प्राध्यापक को भी एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। जैसे बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के समय और पहली बार आने वाले यीशु मसीह के समय हुआ था, वैसे ही अंतिम सच्चाई भी बड़े चर्च में नहीं, परन्तु जंगल में पुकारी जाएगी। जो भी नम्र मन से इस पुस्तक को सुन ले और पढ़ ले, वह समझ जाएगा।

अब अंत का समय है कि सारी दिशाओं से चुने हुए लोग इकट्ठे होंगे। जो कोई सच्चाई का प्यासा है, कृपया इस किताब को पढ़िए। यदि आप पूरी तरह से नहीं समझ सकते, बिना हिचके हम से मुलाकात कीजिए। मुलाकात करके अध्ययन करेंगे तो अच्छी तरह से समझ सकेंगे। मुलाकात करके अध्ययन करेंगे तो अच्छी तरह से समझ सकेंगे।

जैसे कि आप इस किताब की विषय-सूची के शीर्षक से देखते हैं, ये परमेश्वर के रहस्य हैं, जिन्हें आपने आजकल आम चर्चों और धर्मशास्त्रीय स्कूल से कभी न सुना होगा। जो भी इनका अध्ययन करेगा, वह अच्छी तरह से समझ सकेगा और महसूस कर सकेगा। जो भी परमेश्वर की इच्छा का पालन करना चाहता है, वह अवश्य जान जाएगा कि ये शिक्षाएं अंतिम सन्देश हैं जिन्हें परमेश्वर ने भेजा है(यूह 7:17)। कृपया, गंभीरता से इस पुस्तक को पढ़ लीजिए और एक बार मुलाकात कीजिएगा।

विषय सूची

  • अध्याय 1 सात गर्जनों का भेद खोलना
  • अध्याय 2 तीन बार में सात पर्व
  • अध्याय 3 जीवन का वृक्ष और दस आज्ञाएं
  • अध्याय 4 मूसा और यीशु
  • अध्याय 5 प्रतिज्ञा की सन्तान और शेष प्रजा
  • अध्याय 6 1,44,000 के बारे में
  • अध्याय 7 अन्तिम विपत्ति और न्याय
  • अध्याय 8 फसह के पर्व का रहस्य
  • अध्याय 9 बीता इतिहास आने वाली वस्तुओं की छाया है
  • अध्याय 10 परमेश्वर का रहस्य
  • अध्याय 11 यीशु के बारे में
  • अध्याय 12 त्रिएक के बारे में
  • अध्याय 13 पवित्र आत्मा के बारे में
  • अध्याय 14 पहली बार आने वाला यीशु और अंतिम यीशु
  • अध्याय 15 मनुष्य का पुत्र बादलों पर आएगा
  • अध्याय 16 झूठे मसीह का प्रकट होना
  • अध्याय 17 मलिकिसिदक की रीति
  • अध्याय 18 सिय्योन में परमेश्वर से मिलना
  • अध्याय 19 गुप्त में प्रकट होने वाला मसीह और राजा दाऊद
  • अध्याय 20 परमेश्वर सिय्योन नगर में शरीर में वास करता है
  • अध्याय 21 दस आज्ञाएं और अक्षर
  • अध्याय 22 अदन की वाटिका में क्यों भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष रखा?
  • अध्याय 23 सब्त का दिन और एक हज़ार वर्षों का सब्त
  • अध्याय 24 सम्पूर्ण और अपूर्ण
  • अध्याय 25 मनुष्य की आत्मा कहां से आई?
  • अध्याय 26 परमेश्वर ने जीवन के श्वास से आत्माओं को बनाया
  • अध्याय 27 आत्मा को अस्वीकार करने वालों की हठ
  • अध्याय 28 मिट्टी का मनुष्य और स्वर्गीय मनुष्य
  • अध्याय 29 क्यों परमेश्वर ने हमें स्वर्गदूतों की दुनिया में पाप करवाया?
  • अध्याय 30 पुरानी वाचा नई वाचा में बदल गई है
  • अध्याय 31 नई वाचा की रीति
  • अध्याय 32 फसह का पर्व और अंतिम भोज
  • अध्याय 33 परमेश्वर का महुर लगाने का कार्य
  • अध्याय 34 पिछली बरसात के पवित्र आत्मा के बारे में भविष्यवाणी
  • अध्याय 35 जीवन के जल का स्रोत

अध्याय 1 सात गर्जनों का भेद खोलना

जैसा कि लिखा है:

प्रक 10:4, आईबीपी बाइबल 『जब गर्जन के सातों शब्द हो चुके तो मैं लिखने पर था, परन्तु मुझे आकाश से एक शब्द यह कहते सुनाई दिया, “जो बातें गर्जन के सातों शब्दों ने कही हैं उन पर मुहर लगा दे और उन्हें न लिख।”』

तब, क्या गर्जन के सात शब्दों पर हमेशा के लिए मुहर लगी रहेगी? या क्या वे फिर से खोले जाएंगे? बाइबल में लिखित वचनों में से निरर्थक शब्द हो ही नहीं सकता। और मुहर लगाने के अर्थ में यह शामिल होता है कि खोलने का भी समय है। गर्जन के सात शब्दों के बारे में जिन पर मुहर लगाने को कहा, इसी अध्याय की 7 आयत बताती है कि वे खोले जाएंगे। जैसा कि लिखा है:

प्रक 10:7 『“वरन् सातवें स्वर्गदूत के तुरही फूंकने पर होने वाले शब्द के दिनों में परमेश्वर का गुप्त मनोरथ उस सुसमाचार के अनुसार जो उसने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं को दिया, पूरा होगा।”』

यह रहस्य नई वाचा का सुसमाचार है जो प्रथम चर्च के प्रेरितों और नबियों को सौंपा गया था। प्रेरितों के युग के बाद, यह नई वाचा का सुसमाचार शैतान के द्वारा रौंदा गया और अंधकार के युग से लेकर आज के दिनों तक मुहरबंध रहा। परन्तु जैसे कहा गया है, “मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।” इन अंत के दिनों में परमेश्वर का रहस्य अवश्य ही पूरा किया जा रहा है। जैसा कि लिखा है:

प्रक 22:10 『फिर उसने मुझ से कहा, “इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातों को बन्द मत कर; क्योंकि समय निकट है।”』

यश 60:22 『“छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।”』

बाइबल में गर्जन का अभिलेख बहुत बार है। जो उस आवाज़ को नहीं सुन सका, उसके लिए आवाज़ गर्जन के रूप में सुनाई दी। जैसा कि लिखा है:

यूह 12:28-30 『“हे पिता, अपने नाम की महिमा कर।” तब यह आकाशवाणी हुई, “मैंने उसकी महिमा की है, और फिर भी करूंगा।” तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे उन्होंने कहा कि बादल गरजा। दूसरों ने कहा, “कोई स्वर्गदूत उससे बोला।” इस पर यीशु ने कहा, “यह शब्द मेरे लिये नहीं, परन्तु तुम्हारे लिये आया है।”』

खास कर प्रेरित यूहन्ना को परमेश्वर की आवाज़ सीधे सुनने को कान दिया गया था। इस यूहन्ना की पुस्तक लिखने वाला प्रेरित यूहन्ना है। जब लोगों ने सिर्फ गर्जन की आवाज़ सुनी, यूहन्ना ने इस आवाज़ को, “मैंने उसकी महिमा की है, और फिर भी करूंगा”, सीधे सुनकर यूहन्ना की इस पुस्तक में लिखा। उस समय, वह गर्जन के सात शब्दों को सीधे सुन कर लिखने को था, परन्तु परमेश्वर ने उन पर मुहर लगाने की आज्ञा दी। इसलिए वह नहीं लिख पाया, बल्कि सिर्फ लिखा कि गर्जन के सात शब्द हो चुके।

तब, गर्जन के सात शब्द किसको दर्शाते हैं? अभी तक, किसी ने भी सात गर्जनों के रहस्य को नहीं समझा, क्योंकि उसका उचित समय नहीं आया। परन्तु अब अंत का वह समय आ गया है जब सातवें स्वर्गदूत को आवाज़ करनी है और तुरही फूंकनी है। इसलिए जो कोई नीचे कथित व्याख्या को पढ़ेगा वह पूरी तरह से समझ जाएगा।

इसके लिए, पहले हमें नम्बर 7 के बारे में पढ़ना जरूरी है और उसके बाद गर्जन का अध्ययन करना है। नम्बर 7 पूर्ण नम्बर है। इसलिए यदि हम 7 को “पूर्ण” में बदलते हैं तो हम कह सकते हैं कि सात गर्जन पूर्ण गर्जन हैं।

तब पूर्ण गर्जन कहां बोले? पूर्ण गर्जन एक या दो लोगों के सामने नहीं, परन्तु इस्राएल की महासभा के सामने घोषित किए गए। यह ही पूर्ण गर्जन हो सकता है। लगभग 1498 ई.पू. में जब परमेश्वर ने अग्नि में होकर सीनै पर्वत पर दस आज्ञाएं और वाचा के वचन की घोषणा की थी, तब उन्होंने ऐसा गर्जन–ध्वनि से किया था। जैसा कि लिखा है:

निर्ग 20:18-19 『सब लोग गर्जन और बिजली और नरसिंगे के शब्द सुनते, और धूआं उठते हुए पर्वत को देखते रहे, और देख के, कांपकर दूर खड़े हो गए; और वे मूसा से कहने लगे, “तू ही हम से बातें कर, तब तो हम सुन सकेंगे; परन्तु परमेश्‍वर हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएं।”』

उस समय, मूसा गर्जन के समान परमेश्वर की आवाज़ सुन सका, परन्तु लोग इसे न समझ सके; उन्होंने सिर्फ गर्जन की आवाज सुनी। इसलिए मूसा ने गर्जन के सात शब्द सुनकर लोगों को बताया। जैसा कि लिखा है:

व्य 5:5 『उस आग के डर के मारे तुम पर्वत पर न चढ़े, इसलिये मैं यहोवा के और तुम्हारे बीच उसका वचन तुम्हें बताने को खड़ा रहा…』

और बाइबल के वचनों के पास निश्चय अपने जोड़े होते हैं। हम जोड़े को खोजकर बाइबल से बाइबल की व्याख्या कर सकते हैं।

यश 34:16 『यहोवा की पुस्तक से ढूंढ़कर पढ़ो : इनमें से एक भी बात बिना पूरा हुए न रहेगी; कोई बिना जोड़ा न रहेगा। क्योंकि मैंने अपने मुंह से यह आज्ञा दी है और उसी की आत्मा ने उन्हें इकट्ठा किया है।』

और मुहर लगाने के विषय में इस प्रकार कहा गया है:

यश 8:16 『चितौनी का पत्र बन्द कर दो, मेरे चेलों के बीच शिक्षा पर छाप लगा दो।』 आईबीपी बाइबल में ऐसा लिखा है, 『इस साक्षी को सुरक्षित रखो, और व्यवस्था पर मेरे शिष्यों के लिए छाप लगा दो।』

प्रकाशितवाक्य 10:4 में लिखा है, “सात गर्जनों पर मुहर लगा दे।” और यशायाह 8:16 में लिखा है, “इस साक्षी को सुरक्षित रखो, और व्यवस्था पर मेरे शिष्यों के लिए छाप लगा दो।” इसलिए निश्चित है कि सात गर्जन व्यवस्थाओं में से कुछ भाग हैं। व्यवस्थाओं में से, जो आज तक मुहरबंध था वह सिर्फ तीन बार में सात पर्व है। इस सात गर्जनों के रहस्य, तीन बार में सात पर्वों से हम स्वर्गीय पवित्रस्थान के रहस्य का पता लगा सकते हैं और शैतान के अड्डे को देख सकते हैं और चुने हुओं को देने के लिए युगों से गुप्त रखी अति मूल्यवान वस्तु को जान सकते हैं, यहां तक कि इनमें भविष्य में चर्च में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है।

पुराने समय में, जब तक राजा योशिय्याह और राजा हिजकिय्याह पर्वों को नहीं जानते थे, तब तक वे मूर्तिपूजा करते थे। परन्तु जब उन्होंने पर्वों को महसूस किया और उन्हें मनाया, तब उन्होंने मूर्तियों को पूर्णत: नष्ट कर दिया(2रा 23:21-25; 2इति 30:1-27; 2इति 31:1 संदर्भ)।

कोई पूछता है, “परमेश्वर ने उसे मुहरबंध करके जटिल क्यों बना दिया?” इसके बारे में, हम विविध तरीकों से सोच सकते हैं, पर जब हम बाइबल में लिखे वचनों को देखते हैं, तो इसका कारण है कि परमेश्वर वह, जो मुहरबंध है, केवल चुने हुओं को विशेष उपहार की तरह देना चाहते थे। यीशु ने कहा:

मत 13:10-11 『चेलों ने पास आकर उससे कहा, “तू लोगों से दृष्‍टान्तों में क्यों बातें करता है?” उस ने उत्तर दिया, “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उनको नहीं।”』

और मुहरबंध करने का परमेश्वर का यह उद्देश्य है कि अंतिम दिनों की आपात–स्थिति के समय वह उसे केवल अपने लोगों को देकर बचाए। जैसा कि लिखा है:

दान 12:4 『“परन्तु हे दानिय्येल, तू इस पुस्तक पर मुहर करके इन वचनों को अन्त समय तक के लिए बन्द रख। बहुत से लोग पूछ-पाछ और ढूंढ़-ढांढ़ करेंगे, और इस से ज्ञान भी बढ़ भी जाएगा।”』 आईबीपी बाइबल में लिखा है, “परन्तु हे दानिय्येल, तू इन वचनों को गुप्त रख और इस पुस्तक पर अन्त समय तक के लिए मुहर लगा; अनेक लोग यहां–वहां भाग दौड़ करेंगे और ज्ञान बहुत बढ़ जाएगा।”

दान 12:9-10 『उसने कहा, “हे दानिय्येल, चला जा; क्योंकि ये बातें अन्तसमय के लिये बन्द हैं और इन पर मुहर दी हुई है। बहुत से लोग तो अपने अपने को निर्मल और उजले करेंगे, और स्वच्छ हो जाएंगे; परन्तु दुष्‍ट लोग दुष्‍टता ही करते रहेंगे; और दुष्‍टों में से कोई ये बातें न समझेगा; परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे ही समझेंगे।”』

कहा गया है कि “दुष्‍टों में से कोई ये बातें न समझेगा।” हम बाइबल को ढूंढ़ते हुए निश्चय ही जवाब पा सकते हैं कि ये दुष्ट लोग कौन हैं। जैसा कि लिखा है:

नहे 13:17 『तब मैं ने यहूदा के रईसों को डांटकर कहा, “तुम लोग यह क्या बुराई करते हो, जो विश्रामदिन को अपवित्र करते हो?”』

बाइबल कहती है कि विश्रामदिन को अपवित्र करना ही बुराई करना है। और यशायाह नबी ने लिखा कि अगर मनुष्यों की शिक्षाओं का पालन करें, तो बुद्धिमानों की बुद्धि नष्ट हो जाएगी और समझदारों की समझ जाती रहेगी।

यश 29:13-14 『प्रभु ने कहा, “ये लोग जो मुंह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं; इस कारण सुन; मैं इनके साथ अद्भुत काम वरन् अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूंगा, तब इनके बुद्धिमानों की बुद्धि नष्‍ट होगी, और इनके प्रवीणों की प्रवीणता जाती रहेगी।”』 इसके विपरीत, बाइबल कहती है:

प्रक 14:12 『पवित्र लोगों का धीरज इसी में है, जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते और यीशु पर विश्‍वास रखते हैं।』

जिन्हें बुद्धि दी गई, उन लोगों के बारे में प्रेरित पौलुस ने इस प्रकार लिखा:

इफ 1:7-9 『हम को उसमें उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात् अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है, जिसे उसने सारे ज्ञान और समझ सहित हम पर बहुतायत से किया। क्योंकि उसने अपनी इच्छा का भेद उस भले अभिप्राय के अनुसार हमें बताया…』

दान 12:10 『… दुष्‍ट लोग दुष्‍टता ही करते रहेंगे; और दुष्‍टों में से कोई ये बातें न समझेगा; परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे ही समझेंगे।』 इस वचन के जैसा, नई वाचा के फसह के मेमने के लहू के द्वारा बचाए जाने वाले ज्ञान और समझ बहुतायत से पाकर परमेश्वर के सभी रहस्यों को जानेंगे।

परन्तु परमेश्वर पहले चुने गए नबी को जानने देता है, उसके बाद उस नबी के द्वारा आप लोगों को जानने देता है, जिन्होंने सच्चाई को ग्रहण किया है। जैसा कि लिखा है:

आम 3:7 『इसी प्रकार से प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्‍ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।』

परमेश्वर के प्रत्येक रहस्य का अपना निश्चित समय है। अंतिम रहस्य, सात गर्जन भी निश्चित समय पर और निश्चित व्यक्ति के द्वारा खुल जाएगा। यदि इसे मुहरबंध न किया जाता तो परमेश्वर के अंतिम कार्य में अड़चन होने का ख़तरा होता।

परमेश्वर ने गर्जन के सात शब्दों पर उसी कारण से मुहर लगा दी जिस कारण से उन्होंने पुराने समय में बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर को उसका स्वप्न भूला दिया था। यदि बेबीलोन का राजा स्वप्न न भूला होता, तो सब ज्योतिषियों, टोन्हों और कसदियों ने उसकी गलत व्याख्या की होती। राजा का स्वप्न उस महत्वपूर्ण विषय के बारे में था जो संसार के अंत में परमेश्वर की प्रजाओं के अनन्त राज्य प्राप्त करने के बारे में है। यदि स्वप्न की गलत व्याख्या की गई होती तो क्या हुआ होता? इस कारण से, परमेश्वर ने राजा को यह स्वप्न भूला दिया और सही व्याख्याकार दानिय्येल को यह बताने दिया।

दान 2:9 『“इसलिये यदि तुम मुझे स्वप्न न बताओ तो तुम्हारे लिये एक ही आज्ञा है। क्योंकि तुम ने गोष्ठी की होगी कि जब तक समय न बदले, तब तक हम राजा के सामने झूठी और गपशप की बातें कहा करेंगे। इसलिये तुम मुझे स्वप्न को बताओ, तब मैं जानूंगा कि तुम उसका फल भी समझा सकते हो।”』

यह महत्वपूर्ण विषय था कि उस स्वप्न की व्याख्या यदि कोई न कर पाता तो बेबीलोन के ज्योतिषी, टोन्हे और कसदी समेत परमेश्वर के लोग, दानिय्येल और उसके तीन मित्र भी मार डाले जाते। उस समय परमेश्वर ने उसे दूसरों पर प्रकट नहीं किया, पर सिर्फ दानिय्येल को स्वप्न जानने दिया जिससे कि लोग मान सकें कि दानिय्येल की व्याख्या ही सही है। इस तरह से, गर्जन के सात शब्द भी अति महत्वपूर्ण सच्चाई हैं जो चर्च के भाग्य को निश्चित करती है। इसलिए अगर सात गर्जन न खोले जाएं, तो इस दुनिया में बेबीलोन के सारे ज्योतिषी, यानी झूठे चर्चों के विद्वान और यहां तक कि परमेश्वर के लोगों की आत्माएं भी सब नष्ट की जाएंगी। जैसे राजा को स्वप्न भूला दिया था वैसे ही परमेश्वर ने सात गर्जनों पर मुहर लगाई, जिससे जब मुहर खोलने वाला उसकी गहरी सच्चाई की व्याख्या करता है, तब उस सच्चाई को महसूस करने वाले उस पर अटल विश्वास करेंगे। यदि परमेश्वर ने सात गर्जनों पर मुहर न लगायी होती, सभी झूठे शिक्षक गलत तरीके से उसकी व्याख्या करते और परमेश्वर की इच्छा को नष्ट कर देते। सात गर्जन अति महत्वपूर्ण सच्चाई हैं जिस पर अंतिम चर्च का भाग्य निर्भर है। इस कारण से उन पर मुहर लगाई गई है।

तब कौन सात गर्जनों को खोलेगा और उसकी मुहर को तोड़ेगा? प्रेरित यूहन्ना ने लिखा है:

प्रक 5:1-6 『जो सिंहासन पर बैठा था, मैं ने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी। फिर मैं ने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊंचे शब्द से यह प्रचार करता था, “इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?” परन्तु न स्वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य निकला। तब मैं फूट फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य कोई न मिला। इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझ से कहा, “मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है।” तब मैं ने उस सिंहासन और चारों प्राणियों और उन प्राचीनों के बीच में, मानो एक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा…』

जैसे कि लिखा है, “मानो एक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा।” अंतिम दिनों में दाऊद का नाम लेकर गुप्त रूप से आने वाला मेमना सात मुहरों को तोड़ेगा और सात गर्जनों को खोलेगा। सात गर्जनों के रहस्य को ऐसे चर्च में नहीं खोला जा सकता जो 100 वर्ष या 200 वर्ष पहले स्थापित किया गया, क्योंकि भविष्यवाणी की गई है कि सात गर्जनों को खोलने का कार्य अंतिम एक पीढ़ी के अन्दर हो जाएगा।

मत 24:31-34 『वह तुरही के बड़े शब्द के साथ, अपने दूतों को भेजेगा, और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशाओं से उसके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे। “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो: जब उसकी डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो कि ग्रीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो कि वह निकट है, वरन द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त नहीं होगा।”』

यदि किसी चर्च में एक विश्वासी सात गर्जनों का रहस्य समझकर साक्षी देता हो फिर भी वह चर्च उसको स्वीकार नहीं कर सकेगा। क्योंकि प्रत्येक चर्च अपनी परम्परा के अधीन चलता है।

अध्याय 2 तीन बार में सात पर्व

मूसा की व्यवस्था में वर्ष में तीन बार में सात पर्व थे; सात पर्वों का निर्माण तीन क्रमों में किया गया है। इसके बारे में निर्गमन में लिखा है: 『अख़मीरी रोटी का पर्व, पहले लवे हुए गेहूं का पर्व और बटोरन का पर्व』(निर्ग 23:14-17; 34:18-23), और व्यवस्थाविवरण में लिखा है: 『अख़मीरी रोटी का पर्व, सप्ताहों का पर्व और झोपड़ियों का पर्व』(व्य 16:16-17), और 2इतिहास में लिखा है: 『अख़मीरी रोटी का पर्व, सप्ताहों का पर्व और झोपड़ियों का पर्व』(2इत 8:13)।

तब, क्यों तीन बार के प्रत्येक पर्व के नाम हर बार अलग हैं? क्योंकि पर्व के अर्थ को ज़ाहिर करने के लिए एक पर्व के दो या तीन अलग नाम होते हैं। भले ही एक पर्व के नाम अलग होते हैं, वे अलग नहीं हैं। उदाहरण के लिए, पहले लवे हुए गेहूं का पर्व और सप्ताहों का पर्व एक ही पर्व हैं, और बटोरन का पर्व और झोपड़ियों का पर्व एक ही पर्व हैं जो सातवें महीने के हैं।

और वे तीन बार के पर्व कहलाते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ तीन पर्व हैं, पर तीन बार में सात पर्व हैं। इन सात पर्वों के नाम उपनाम समेत 15 से ज्य़ादा हैं, और पूरीम का पर्व और स्थापन पर्व भी हैं जो मूसा के नियम के नहीं हैं(एस 9:21, 31; यूह 10:22)।

सात पर्वों के मूल नाम ऐसे हैं; फसह का पर्व, अख़मीरी रोटी का पर्व, प्रथम फल का पर्व, पिन्तेकुस्त का दिन, नरसिंगों का पर्व, प्रायश्चित्त का दिन और झोपड़ियों का पर्व। ये सात पर्व तीन भागों में बंट गए हैं:

पहला भाग – फसह का पर्व और अख़मीरी रोटी का पर्व
दूसरा भाग – प्रथम फल का पर्व और पिन्तेकुस्त का दिन
तीसरा भाग – नरसिंगों का पर्व, प्रायश्चित्त का दिन और झोपड़ियों का पर्व

ये सात पर्व कभी–कभी दूसरे नामों से भी बुलाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, अख़मीरी रोटी का पर्व सात दिन का पर्व कहलाता है(यहेज 45:21), प्रथम फल का पर्व हिलाए जाने की भेंट का पर्व कहलाता है(लैव 23:11; निर्ग 23:15-16; निर्ग 34:22), मण्डपों का पर्व झोपड़ियों का पर्व कहलाता है(एज्रा 3:4-6 आईबीपी बाइबल; यूह 7:2)। इस तरह से, सात पर्व विविध नामों से बुलाए जाते हैं, उनके सभी नाम ऐसे हैं:

अख़मीरी रोटी का पर्व, फसह का पर्व, सात दिन का पर्व, पहले लवे हुए गेहूं का पर्व, प्रथम फल का पर्व, हिलाए जाने की भेंट का पर्व, सप्ताहों का पर्व, पिन्तेकुस्त का दिन,
बटोरन का पर्व, कटनी का पर्व, सातवें महीने का पर्व, मण्डपों का पर्व, झोपड़ियों का पर्व, नरसिंगों का पर्व, प्रायश्चित्त का दिन

इस तरह तीन बार में सात पर्व अपने मूल नामों के सहित विभिन्न नामों से बुलाए जाते हैं(नहे 8:2, 14; निर्ग 23:15-17; 34:18-22; लैव 23:10-16, 39-41; व्य 16:9-10 संदर्भ)।

पर्व और भविष्यवाणी

परमेश्वर ने तीन बार में सात पर्व मूसा के कार्यों के अनुसार स्थापित किए जो यीशु के क्रूस से लेकर उसके दूसरी बार आने तक पूरी होने वाली बातों को दर्शाते हैं। ये सात पर्व तीन भागों में विभाजित हुए हैं।

पहले भाग में, फसह का पर्व अख़मीरी रोटी के पर्व के साथ शुरू होता है; पवित्र वर्ष के अनुसार पहले महीने के 14वें दिन की शाम से लेकर 21वें दिन की शाम तक, लोग सात दिन तक अख़मीरी रोटी खाते हुए प्रत्येक वर्ष पर्व मनाते थे(निर्ग 12:18)। परमेश्वर ने इस्राएलियों को फसह का पर्व और अख़मीरी रोटी का पर्व पीढ़ी–दर–पीढ़ी मनाने की आज्ञा दी जिससे कि वे परमेश्वर की सामर्थ्य का स्मरण कर सकें और उन दुखों को याद कर सकें जिनका अनुभव उन्होंने फसह की शाम को यहोवा की सामर्थ्य से मिस्र से निकल कर लाल समुद्र पार करने तक किया था(निर्ग 13:7-8)। इस पर्व में दुखों का स्मरण करने के लिए वे कड़वे सागपात और अख़मीरी रोटी का प्रयोग करते थे। अख़मीरी रोटी दुख की रोटी कहलाई(व्य 16:3; निर्ग 12:17-18; गिन 9:11; लैव 23:5-6; 2इत 35:17; मर 14:12)।

इस पर्व की असलियत में यह यीशु मसीह के उस दुख को दर्शाता है जो यीशु ने अपने चेलों के साथ अन्तिम फसह का पर्व मनाकर उसी रात से लेकर क्रूस पर मृत्यु होने तक सहा। और इस्राएलियों का लाल समुद्र में प्रवेश करना यीशु मसीह के कब्र में प्रवेश करने को दर्शाता है, और उनका समुद्र से भूमि पर उतरना यीशु के पुनरुत्थान को दर्शाता है, जिसका अर्थ बपतिस्मा में दिखाया जाता है जिसे आज हम लेते हैं(1कुर 10:1-2; 1पत 3:21)।

दूसरे भाग में, पहले लवे हुए गेहूं के पर्व में इस्राएली अख़मीरी रोटी के पर्व के बाद पहले सब्त के अगले दिन(रविवार) गेहूं की उपज के पहले फलों का एक पूला हिलाई जाने वाली भेंट के रूप में याजक के पास लाते थे, और उसी दिन के पश्चात् सातवें सब्त के अगले दिन, यानी कुल पचासवें दिन को, जो पिन्तेकुस्त का दिन है, इस्राएली नये अन्न की बलि चढ़ाते थे(लैव 23:10-16; निर्ग 34:22; गिन 28:26; व्य 16:9-10; प्रे 2:1)। परमेश्वर ने यह पर्व इसके आधार पर नियुक्त किया कि जिस दिन इस्राएलियों ने मिस्र से निकल कर लाल समुद्र पार किया उस पहले महीने के बाईसवें दिन से लेकर तीसरे महीने के ग्यारहवें दिन तक, जब मूसा दस आज्ञाएं प्राप्त करने के लिए सीनै पर्वत पर चढ़ गया, कुल 50 दिन होते हैं(निर्ग 19:16-25; 24:1-18 संदर्भ), और परमेश्वर ने इस्राएलियों से कहा कि इन दिनों का स्मरण करें और पीढ़ी से पीढ़ी तक मनाएं(निर्ग 14:29-31; 19:1-2; 24:12-16 संदर्भ)। असलियत में इस पर्व की भविष्यवाणी ऐसी पूरी हुई कि यीशु के पुनरुत्थान के बाद स्वर्गीय परम पवित्रस्थान में प्रवेश करने के दिन यानी 50वें दिन को, जो पिन्तेकुस्त का दिन है, पवित्र आत्मा उण्डेला गया। मूसा का सीनै पर्वत पर चढ़ कर दस आज्ञाएं प्राप्त करना यह दर्शाता है कि भविष्य में यीशु स्वर्गीय पवित्रस्थान में प्रवेश करके पवित्र आत्मा प्राप्त करेगा और उसे प्रेरितों पर उण्डेलेगा(प्रे 2:1-4; इब्र 9:11-12)।

पवित्र वर्ष के अनुसार पहले महीने के उस बाईसवें दिन के बाद, जिस दिन मूसा लाल समुद्र से भूमि पर उतरा था, कुल चालीसवें दिन, यानी तीसरे महीने के पहले दिन को मूसा ने सीनै पर्वत के सामने डेरा खड़ा किया और वह परमेश्वर के पास ऊपर चढ़ गया। असलियत में यह दिखाता है कि यीशु पुनरुत्थान के बाद 40वें दिन स्वर्ग जाएगा(निर्ग 19:1-7; प्रे 1:3-9)। अंग्रेजी अनुवाद, ‘द गुड न्यूज़’ बाइबल, निर्गमन 19:1 में लिखा है, “तीसरे महीने का पहला दिन” इस तरह से, सीनै पर्वत पर मूसा के कार्य स्वर्गीय पवित्रस्थान में यीशु मसीह के कार्यों को दिखाते हैं।

तीसरे भाग में, कटनी का पर्व सातवें महीने का पर्व कहलाता है(नहे 8:13-14)। पवित्र वर्ष के अनुसार सातवें महीने के पहले दिन को, लोग ज़ोर से तुरही फूंककर प्रायश्चित्त के दिन की तैयारी करते थे। और सातवें महीने के दसवें दिन को महायाजक अपने पाप और अपने लोगों के पापों के लिए बछड़े और बकरे के लहू से पापबलि चढ़ाता था, और वर्ष में एक बार वह परम पवित्रस्थान में प्रवेश करके धूप जलाता था। और पवित्र वर्ष के अनुसार सातवें महीने के पंद्रहवें दिन से लेकर 7 दिनों तक लोग झोपड़ियों का पर्व मनाते थे; वे पहाड़ पर चढ़कर जैतून और खजूर वृक्षों की डालियां ले आए और झोपड़ियां बनाते हुए उन्हें अपने घर की छत पर अथवा परमेश्वर के भवन के आंगनों पर बिछाते थे, और झोपड़ियों के अन्दर रहते हुए मूसा के द्वारा निर्मित तम्बू का स्मरण करते थे, और एक दूसरे की मदद करते हुए आनन्द मनाते थे(व्य 16:11-15; लैव 23:39-43; नहे 8:9-18)।

यह पर्व मूसा के इस कार्य के अनुसार नियुक्त किया गया था: मूसा पहली बार दस आज्ञाओं को प्राप्त करने के लिए तीसरे महीने के ग्यारहवें दिन को सीनै पर्वत पर यहोवा के सामने गया(निर्ग 24:15-18)। जब मूसा वहां 40 दिन तक रहा, तब लोगों ने सोने के बछड़े की मूर्ति बनाई और उसको दण्डवत् किया। जब मूसा चौथे महीने के इक्कीसवें दिन को दस आज्ञाएं हाथों में लिए हुए नीचे उतरा, उसने लोगों को मूर्ति की पूजा करते देखा। तब उसने दस आज्ञाओं को अपने हाथों से पर्वत के नीचे पटक कर टुकड़े टुकड़े कर दिया। इस घटना के कारण इस्राएलियों के बीच आपस में लड़ाई हुई। इस बड़ी विपत्ति से तीन हज़ार लोग मर गए(निर्ग 32:1-28)। इसके बाद, लोगों ने सब कुछ व्यवस्थित किया और अपने मन को नियंत्रण में रखा और अपने गहने उतार लिए। और मूसा ने तम्बू को छावनी से बाहर, वरन् छावनी से दूर खड़ा किया, और छावनी के बाहर मिलापवाले तम्बू के पास जाकर यहोवा की उपासना की(निर्ग 33:1-11)। मूसा के सच्चे हृदय से यहोवा से विनती करने के द्वारा, यहोवा ने फिर से अपनी कृपा–दृष्टि इस्राएल पर की और मूसा को आज्ञा दी कि पहली पटियाओं के समान पत्थर की दो पटियाएं लेकर पर्वत पर आ जाए(निर्ग 33:12-17)।

दस आज्ञाएं पाने का दिन

छठे महीने के पहले दिन को पहली पटियाओं के समान, जो टूट गई थीं, दो पटियाएं लेकर मूसा सीनै पर्वत पर यहोवा के सामने चढ़ गया। 40 दिनों तक उपवास करते हुए वहां ठहरते समय, यहोवा ने उन पटियाओं पर दस आज्ञाएं लिख लीं। मूसा सातवें महीने के दसवें दिन को दस आज्ञाएं हाथों में लिए नीचे उतरा और उसने सारे लोगों को यहोवा की सभी आज्ञाएं व तम्बू–निर्माण के हर प्रकार के विषयों की घोषणा की। और उसी महीने की 15 तारीख से लोग जिनके मन ने उन्हें प्रोत्साहित किया, तम्बू बनाने के लिए पर्याप्त पदार्थ, सोना, चांदी, मलमल और खालें, लकड़ी आदि ले आए(निर्ग 34:4-35; 36:5-7)। लगभग 7 दिनों तक उन्होंने हर तरह से प्रयत्न किया। यहोवा ने मूसा के इस कार्य के अनुसार पर्व को नियुक्त किया, ताकि इन सब घटनाओं का स्मरण पीढ़ी–दर–पीढ़ी कर सकें। जिस दिन मूसा दस आज्ञाएं लिए सीनै पर्वत पर से नीचे उतरा उस दिन को प्रायश्चित्त के दिन के रूप में नियुक्त किया गया, और जिस दिन लोग तम्बू–निर्माण के लिए भेंट चढ़ाने लगे उस दिन को झोपड़ियों के पर्व के रूप में नियुक्त किया गया, और इस्राएली उसे 7 दिनों तक पवित्रता से मनाने के द्वारा तम्बू–निर्माण के कार्य का स्मरण करते थे।

प्रायश्चित्त के दिन की तैयारी के लिए सातवें महीने के पहले दिन को नरसिंगों का पर्व करके नियुक्त किया गया। जिस दिन मूसा पहली बार दस आज्ञाओं को प्राप्त करने के लिए सीनै पर्वत पर चढ़ गया उस दिन को पिन्तेकुस्त दिन के रूप में नियुक्त किया गया, क्योंकि मूसा के दस आज्ञाएं प्राप्त करने के लिए पर्वत पर चढ़ने से पहले, परमेश्वर ने स्वयं अपनी आवाज से दस आज्ञाओं की घोषणा की थी(निर्ग 20:1-19; 24:15-18)। इस कारण दस आज्ञाओं को पाने के लिए ऊपर चढ़ने के दिन को पिन्तेकुस्त का दिन करके नियुक्त किया गया।

और जिस दिन मूसा ने सीनै पर्वत पर 40 दिनों का उपवास करने के बाद दस आज्ञाएं पाईं उस दिन को लोगों के पापों की क्षमा पाने के लिए प्रायश्चित्त के दिन के रूप में नियुक्त किया गया।

झोपड़ियों का पर्व और भविष्यवाणी

ये सभी पर्व भविष्य के कार्यों की छाया हैं। मूसा ने सीनै पर्वत पर यहोवा से दस आज्ञाएं प्राप्त कीं और उन्हें लोगों को दिया, यह दर्शाता है कि भविष्य में यीशु स्वर्गीय परम पवित्रस्थान में प्रवेश करके पवित्र आत्मा पाकर प्रेरितों पर उण्डेलेगा(प्रे 2:32-33)।

परन्तु जिस प्रकार इस्राएलियों ने सोने के बछड़े की मूर्ति बना ली और उसको दण्डवत् करने का पाप किया, इसलिए मूसा ने पहली दस आज्ञाओं की दो पटियाओं को टुकड़े टुकड़े कर दिया, उसी प्रकार पवित्र आत्मा जिसे यीशु ने पिन्तेकुस्त के दिन पहली बार स्वर्गीय पवित्रस्थान में प्रवेश करके परमेश्वर से पाकर प्रेरितों पर उण्डेला था, वह पवित्र आत्मा चर्च के भ्रष्टाचारी होकर सूर्य–ईश्वर की उपासना करने के कारण वापस ले लिया गया, और मसीह के लिए सिर्फ प्रकाश की एक धारा शेष रही। जैसा कि लिखा है: 『मेरे दास दाऊद का दीपक मेरे सामने सदैव बना रहे।』(1रा 11:36) परमेश्वर ने यह बात उस समय बताई थी जब दाऊद के पुत्र, सुलैमान के पाप करने के द्वारा राज्य दो भागों में बांटा गया था(1रा 11:1-13 संदर्भ)।

वास्तव में, यह बात भविष्यवाणी थी जो प्रेरितों के युग के बाद पूरी हो गई। चर्च अत्यंत अत्याचार पाकर लम्बे समय तक शैतान के द्वारा रौंदा गया। और मूसा ने दूसरी बार सीनै पर्वत पर चढ़ कर दस आज्ञाएं प्राप्त कीं, यह दर्शाता है कि भविष्य में यीशु सुसमाचार के अंतिम कार्य के लिए 22 अक्टूबर, 1844 को, यानी पवित्र वर्ष के अनुसार सातवें महीने के दसवें दिन को प्रायश्चित्त के दिन में दूसरी बार स्वर्गीय परम पवित्रस्थान में प्रवेश करेगा।

तीन बार में सात पर्वों में असीम सच्चाइयां हैं जो मूसा के समय से लेकर संसार के अंत तक पूरी हो जाने वाली चीजों को दिखाती हैं। इसलिए तीन बार के पर्व पिता के युग, पुत्र के युग और पवित्र आत्मा के युग को दर्शाते हैं और उनकी सामर्थ्य का प्रदर्शन करते हैं।

पहला, अख़मीरी रोटी का पर्व है जो पिता के युग को दर्शाता है; यहोवा स्वयं मिस्र से शारीरिक इस्राएलियों को निकाल ले आया।

दूसरा, पहले लवे हुए गेहूं का पर्व है जो पुत्र के युग को दर्शाता है; यीशु गेहूं की उपजों का पहला फल बना और वह सोए हुए में से पहले फल के रूप में जिलाया गया(1कुर 15:20), और स्वर्ग जाकर स्वर्गीय पवित्रस्थान में प्रवेश करने के द्वारा पहली वर्षा का पवित्र आत्मा उण्डेला, इससे प्राथमिक चर्च में सारे गेहुंओं को इकट्ठा किया।

तीसरा, झोपड़ियों का पर्व है जो पवित्र आत्मा के युग को दर्शाता है; यह पर्व शरद् ऋतु की फसल की अंतिम कटनी को दर्शाता है। पूरे संसार में सभी गेहूं इकट्ठे होकर स्वर्गीय खलिहान में लाए जाएंगे।

अभी तक सभी पर्वों की भविष्यवाणी, एक पर्व को छोड़कर पूरी की गई है। एक पर्व जो आखिर में शेष है वह झोपड़ियों का पर्व है। यह पर्व दर्शाता है कि न्याय के लिए यीशु के आने के समय की घोषणा की जाने के बाद, यीशु के आगमन का आंदोलन होगा। झोपड़ियों का पर्व जो पुराने समय से मनाया जाता है उसकी अन्तिम पूर्ति यीशु के आगमन का अन्तिम आंदोलन है।

पर्व और क्रूस

इस समय, हमें विशेष रूप से यह जानना चाहिए कि यीशु स्वर्गीय पवित्रस्थान में क्या कर रहा है और अब कौन सा युग है? परमेश्वर ने इसे हमें समझाने के लिए पहले से तैयारी की। मूसा की व्यवस्था में सांसारिक पवित्रस्थान के विषय का अध्ययन करने के द्वारा हम स्वर्गीय पवित्रस्थान को देख सकते हैं। जब मूसा को आदेश मिला कि तम्बू खड़ा करे, परमेश्वर ने उसे स्वर्गीय पवित्रस्थान दिखाकर उसके अनुसार बनाने के लिए कहा, जहां बाद में यीशु कार्य करेगा। जैसा कि लिखा है:

इब्र 8:1-5 『अब जो बातें हम कह रहे हैं उनमें से सब से बड़ी बात यह है कि हमारा ऐसा महायाजक है, जो स्वर्ग पर महामहिमन् के सिंहासन के दाहिने जा बैठा है, और पवित्र स्थान और उस सच्चे तम्बू का सेवक हुआ जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, वरन् प्रभु ने खड़ा किया है। क्योंकि हर एक महायाजक भेंट और बलिदान चढ़ाने के लिये ठहराया जाता है, इस कारण अवश्य है कि इस याजक के पास भी कुछ चढ़ाने के लिये हो। यदि वह पृथ्वी पर होता तो कभी याजक न होता, इसलिये कि व्यवस्था के अनुसार भेंट चढ़ानेवाले तो हैं। वे स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब की सेवा करते हैं; जैसे जब मूसा तम्बू बनाने पर था, तो उसे यह चेतावनी मिली, “देख, जो नमूना तुझे पहाड़ पर दिखाया गया था, उसके अनुसार सब कुछ बनाना।”』

इसलिए जो स्वर्गीय पवित्रस्थान मूसा ने देखा वह उस समय का नहीं बल्कि नए नियम के समय का है जो यीशु स्थापित करेगा। सांसारिक पवित्रस्थान का अध्ययन करने के द्वारा, हम पढ़ सकते हैं कि स्वर्गीय पवित्रस्थान की महत्वपूर्ण सच्चाई क्या है और वह सेवा क्या है जिसकी यीशु उसमें मानव जाति के उद्धार के लिए कर रहा है। सांसारिक तम्बू एक नमूना है, जिससे मानव जाति स्वर्गीय पवित्रस्थान को देख सकती है जहां हमारा अग्रदूत, मसीह परमेश्वर के सम्मुख सेवा करता है। इसलिए जब तक कोई पवित्रस्थान का अध्ययन न करे, तब तक छुटकारे के प्रबन्ध को महसूस नहीं कर सकता, और यदि कोई छुटकारे के प्रबन्ध को महसूस न करे, तो उद्धार नहीं जान सकता। तीन बार में सात पर्वों के अनुसार किया गया अक्षरों का बलिदान क्रूस के द्वारा आत्मिक व सच्ची प्रार्थना की आराधना में बदल गया है(इब्र 7:12; 8:3; 1कुर 5:7-8; यूह 4:24)।

यीशु कितनी तरहों की बलि हो गया

क्रूस से एक ही बार में सभी पर्व पूरे किए गए। यीशु का बहुमूल्य लहू फसह के मेमने का लहू बना, और यह याजक के लिए पापबलि के बछड़े का लहू भी बना, और इस्राएलियों के लिए पापबलि के बकरे का लहू भी बना। इस तरह से, यीशु प्रायश्चित्त की अनन्त बलि बना है(इब्र 13:10-12; रो 3:25)। क्रूस पर यीशु का कष्ट और उसके शरीर की मृत्यु से, जिस दिन शारीरिक इस्राएली पापमय भूमि, मिस्र से निकले थे वह अख़मीरी रोटी का पर्व पूरा हुआ। और प्रथम फल के पर्व में यीशु के पुनरुत्थान के द्वारा गेहूं की उपजों का पहला फल बनने से हिलाई जाने वाली भेंट पूरी हुई। पुनरुत्थान के बाद यीशु ने पहली बार पिन्तेकुस्त के दिन स्वर्गीय परम पवित्रस्थान में प्रवेश करके पिता से पवित्र आत्मा पाया और प्रेरितों पर उण्डेला(इब्र 9:11-12, 24; 6:19-20; प्रे 2:33 तुलना)। और पवित्र वर्ष के अनुसार सातवें महीने के दसवें दिन, सन् 1844 में यीशु के दूसरी बार स्वर्गीय परम पवित्रस्थान में प्रवेश करने से प्रायश्चित्त का पर्व पूरा किया गया। इस तरह यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना उस नई वाचा का अनन्त चिह्न बना है जिसे संसार के अंत तक स्मृति–दिवस के रूप में हमें मनाना चाहिए(1कुर 11:26; यश 33:20; सपन 3:18)।

मूसा की व्यवस्था में परमेश्वर ने इन सभी नियमों के बारे में कहा, “ये जीवन भर स्मरण करने की सदा की विधि हैं”(निर्ग 12:14, 24; लैव 23:21; व्य 16:3), इसलिए जो कोई पर्व में शामिल होता है वही उस विधि की सच्चाई को महसूस करेगा; जो फसह के पर्व को पवित्रता से मनाता है वही फसह के पर्व की सच्चाई को समझेगा, और जो प्रथम फल के पर्व और पिन्तेकुस्त के दिन को पवित्रता से मनाता है वही उन पर्वों की सच्चाई को महसूस करेगा। मूसा की व्यवस्था के अनुसार तीन बार में सात पर्व क्रूस के द्वारा पूरे किए गए परमेश्वर के पराक्रमी दिनों में बदल गए हैं। इसलिए जैसे इन पर्वों को पवित्रता से मनाने के द्वारा प्राचीन इस्राएलियों को शारीरिक आशीष दी जाती थी(निर्ग 20:24; सपन 3:18-20; जक 6:19-22; मला 2:4-9 तुलना), वैसे ही अब हम क्रूस के द्वारा पूरे हुए परमेश्वर के पराक्रमी दिनों का स्मरण करने से आत्मिक आशीष पाते हैं।

जहां हम आराधना करते हैं वह स्वर्गीय पवित्रस्थान है। इसी पवित्रस्थान में, हमारे हृदयों पर लिखे नई वाचा के यीशु के लहू से हमारे शरीर परमेश्वर के पवित्र आत्मा के मंदिर बनते हैं(इब्र 12:18-24; 8:6-10; 2कुर 3:3 तुलना)। जहां कहीं भी वाचा है वहां परमेश्वर का मंदिर बनता है।

अध्याय 3 जीवन का वृक्ष और दस आज्ञाएं

परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि करने के पश्चात् अदन की वाटिका में जीवन का वृक्ष लगाया, और प्रथम पुरुष और स्त्री, आदम और हव्वा को इसे खाकर अनंत जीवन पाने की अनुमति दी, परन्तु आदम और हव्वा के पाप करने के बाद, परमेश्वर ने उन्हें अदन की वाटिका से निकाल दिया, तथा जीवन के वृक्ष के मार्ग की रक्षा के लिए दो करूबों को और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को नियुक्त कर दिया। जैसा कि लिखा है:

उत 3:22-24 『फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिये अब ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे।” इसलिये यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस में से वह बनाया गया था। इसलिये आदम को उसने निकाल दिया और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।』

अगर पापी अपना हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष को छुए, तो वह ज्वालामय तलवार से अवश्य मार डाला जाता। आदम ने पाप करने के कारण जीवन के वृक्ष का फल खाने का अधिकार खोया और इस पर विलाप किया, जैसे कि पौलुस ने कहा, “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?”(रो 7:24) तब परमेश्वर ने उसको जीवन के वृक्ष का फल फिर से खाने की सच्चाई दिखाई, यानी क्रूस पर बहे यीशु के लहू से जीवन के वृक्ष को पुन:प्राप्त करने का रास्ता दूर से दिखाया(इब्र 11:4, 13)।

परमेश्वर ने यह सच्चाई कैन और हाबिल को दिखाई, परन्तु कैन ने इस सच्चाई को अस्वीकार किया और अपने विचारों के अनुसार भूमि की उपज को चढ़ाया, और हाबिल ने आज्ञाकारी होकर सच्चाई को स्वीकार किया और मेमने की बलि लहू के साथ चढ़ाई जो यीशु के बहुमूल्य लहू को दर्शाता है(उत 4:1-4)। यह बलिदान मूसा के समय तक सौंपा गया(उत 8:20-22; 12:7; 15:9)। मूसा के समय से परमेश्वर ने सम्पूर्ण आज्ञाएं और विधियां बनाईं और उन्हें संहिताबद्ध किया, यानी तीन बार में सात पर्व मूसा के द्वारा अक्षर बनकर लिखे गए, जिसके द्वारा परमेश्वर ने बाद में आने वाले मसीह की साक्षी दी(इब्र 3:5)। जब मूसा ने सांसारिक पवित्रस्थान बनाया, तब उसने इसे स्वर्गीय पवित्रस्थान के नमूने के अनुसार बनाया जिसमें यीशु बाद में सेवा करेगा। जो परमेश्वर ने मूसा को दिखाया वह उन दिनों की चीज नहीं थी, परन्तु वह सच्चा तम्बू था जो यीशु क्रूस के द्वारा खड़ा करेगा। परमेश्वर ने मूसा को आदेश दिया कि जो नमूना प्रकाशन से उसे दिखाया गया उसी के अनुसार सांसारिक तम्बू बनाना(इब्र 8:2, 5; 9:11-12, 24; 10:1 तुलना)।

जीवन का वृक्ष और करूब

सांसारिक पवित्रस्थान में दूसरे परदे के पीछे परम पवित्रस्थान था जिसमें वाचा का सन्दूक रखा गया था, और सन्दूक के दोनों सिरों पर दो करूब थे। जैसा कि लिखा है:

निर्ग 25:18-21 『और सोना ढालकर दो करूब बनवाकर प्रायश्चित्त के ढकने के दोनों सिरों पर लगवाना। एक करूब एक सिरे पर और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर लगवाना; और करूबों को और प्रायश्चित्त के ढकने को एक ही टुकड़े से बनाकर उसके दोनों सिरों पर लगवाना। उन करूबों के पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए बनें कि प्रायश्चित्त का ढकना उनसे ढंपा रहे, और उनके मुख आमने-सामने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर रहें। और प्रायश्चित्त के ढकने को सन्दूक के ऊपर लगवाना; और जो साक्षीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे सन्दूक के भीतर रखना।』

तब क्यों परमेश्वर ने सन्दूक के ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने के दोनों सिरों पर दो करूब बनाए? यह इसलिए था क्योंकि वहां अनन्त जीवन में प्रवेश करने के लिए जीवन का वृक्ष था, यानी दस आज्ञाएं उस जीवन के वृक्ष के बदले दी गईं जिसे आदम और हव्वा ने खाया था। इसलिए यीशु ने कहा “यदि तू जीवन में प्रवेश करना चाहता है, तो आज्ञाओं को माना कर”(मत 19:16-17)। यदि कोई स्वर्ग के जीवन के वृक्ष का फल खाता है, वह अवश्य सदैव जीएगा। परन्तु मनुष्य पापों के कारण एक बार खोया हुआ जीवन के वृक्ष का फल तब तक नहीं खा सकता, जब तक उसकी नाश होने वाली देह अविनाशी देह में न बदल जाए। इस कारण से परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन के वृक्ष के बदले दस आज्ञाएं दीं, जो भी हो, दस आज्ञाएं भी पापी देह नहीं ले सकती। मनुष्य केवल पापबलि के बलिदान के लहू के द्वारा शुद्ध किए जाने के बाद ही दस आज्ञाओं को प्राप्त कर सकता है। जो कोई पापी देह से सन्दूक के पास जाता था और उसको अशुद्ध हाथ से स्पर्श करता था, वह मार डाला जाता था(लैव 10:1-2; गिन 18:3; 1शम 6:19; 2शम 6:6-7 तुलना)। क्योंकि जैसे दो करूब ज्वालामय तलवार से स्वर्ग में जीवन के वृक्ष की रक्षा करते थे, वैसे ही दो करूब ज्वालामय तलवार से वाचा के सन्दूक की भी रक्षा करते थे। अर्थात् स्वर्ग के जीवन के वृक्ष की रक्षा करना इसे दर्शाने के लिए था कि भविष्य में मसीह के लहू के द्वारा स्थापित होने वाले सच्चे तम्बू में वाचा के सन्दूक की रक्षा की जाएगी(उत 3:22-24; निर्ग 25:16-22, 40)। जैसा कि लिखा है:

प्रक 11:19 『तब परमेश्वर का जो मन्दिर स्वर्ग में है, वह खोला गया, और उसके मन्दिर में उसकी वाचा का सन्दूक दिखाई दिया…』

इसलिए महायाजक भी परम पवित्रस्थान के अन्दर प्रवेश करने के लिए पापबलि के पवित्र लहू से शुद्ध किया जाता था और उसके बाद परम पवित्रस्थान में प्रवेश करके धूप जलाता था(लैव 16:1-34; इब्र 9:18-28)।

परन्तु ये सब भावी वस्तुओं की छाया हैं। मूसा से सौंपी गई छाया की विधि यीशु के बहुमूल्य लहू को संकेत करती है। हम पशु के लहू से शुद्ध नहीं किए जाते, बल्कि मसीह यीशु के लहू से शुद्ध किए जाते हैं। चूंकि यीशु ने समस्त मनुष्य जातियों के पापों की मज़दूरी के लिए क्रूस पर अपने बहुमूल्य लहू को बहाया, इसलिए कोई भी उसके लहू के द्वारा परम पवित्रस्थान में प्रवेश करके दस आज्ञाओं(जीवन का वृक्ष) को पा सकता है और अनन्त जीवन में प्रवेश कर सकता है(इब्र 10:19-20; 6:19-20; रो 3:22-25; 8:3-4 तुलना)। चाहे इस संसार में लोग कितने भी धर्मी हों, मसीह के बहुमूल्य लहू से शुद्ध किए बिना अनन्त जीवन में कभी भी प्रवेश नहीं कर सकते(प्रे 4:12; यूह 6:48-57; इब्र 10:19-20 तुलना)।

इसलिए हमें विभिन्न प्रकारों के पर्वों को मनाने के द्वारा, जो मसीह के बहुमूल्य लहू को दर्शाते हैं, दस आज्ञाओं की धार्मिकता पूरी करनी चाहिए। पर्व के बिना हम मसीह के बहुमूल्य लहू से शुद्धता प्राप्त नहीं कर सकते। हमारी शुद्धता, पुराने नियम के समय भी और नए नियम के समय भी, पर्वों के द्वारा मसीह के बहुमूल्य लहू से प्राप्त की जाती है। अत: परमेश्वर ने कहा, “उनको मैं ने अपनी विधियां बताईं और अपने नियम भी बताए कि जो मनुष्य उनको माने, वह उनके कारण जीवित रहेगा”(यहेज 20:11; 18:9; लैव 18:4, 5)।

विधियां जिनका पालन सांसारिक पवित्रस्थान में किया गया वह मसीह के द्वारा स्वर्गीय पवित्रस्थान में की जाती हैं। सांसारिक पवित्रस्थान में जो कार्य छाया के रूप में किए जाते थे वे अवश्य ही स्वर्गीय पवित्रस्थान में किए जाएंगे। अगर पर्व मिटा दिए गए होते, तो यीशु महायाजक का कार्य न करते(इब्र 8:3; यश 33:20)।

कुछ कहते हैं कि पर्व और दस आज्ञाओं के बीच में कोई संबंध नहीं है। वे जो ऐसा कहते हैं, उद्धार के प्रबन्ध के बारे में नहीं जानते। वास्तव में दस आज्ञाओं के कारण पवित्रस्थान को बनाया गया, और पवित्रस्थान होने के कारण पर्व की आवश्यकता थी। मूसा के द्वारा दिए गए सभी पर्वों की विधियां और नियम परमेश्वर की पहली आज्ञा बनते हैं, जिन्हें परमेश्वर की प्रजाओं को जरूर मनाना चाहिए।

अगर हम यहोवा के पर्वों को न मनाएं, तो हम यह न जानते हुए कि संसार के अनेक देवताओं में से हम किसकी पूजा कर रहे हैं, अनजाने में दूसरे देवताओं की उपासना करेंगे। पुराने समय में, जब इस्राएल के राजा यारोबाम ने इस्राएलियों को यहोवा के पर्व मनाने से मना किया, उसने सोने के बछड़े की मूर्ति बनवाई(1रा 12:25-33)। इसके विपरीत जब राजा हिजकिय्याह और राजा योशिय्याह ने यहोवा के पर्व को महसूस किया और फिर से उन्हें मनाया, तब उन्होंने मूरतों, ऊंचे स्थानों और भूतसिद्धिवालों, उन सभों को नष्ट कर दिया(2इत 30:1-5; 31:1-2; 2रा 23:1-4, 21-24)। राजा योशिय्याह ने भी यहोवा के पर्वों को महसूस करने से पहले अपने पूर्वज मनश्शे की स्थापित हुई वेदी और मूर्ति की उपासना की थी। कोई भी परमेश्वर की सच्ची इच्छा को न पहचाने, तो वह स्वाभाविक रूप से मूर्ति की पूजा करने लगता है।

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