मूसा की व्यवस्था और मसीह की व्यवस्था

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सारांश

परमेश्वर ने पुराने नियम के समय में मूसा की व्यवस्था(पुरानी वाचा) को स्थापित किया और नए नियम के समय में मसीह की व्यवस्था(नई वाचा) को स्थापित किया। इस पुस्तक में, मसीह आन सांग होंग ने प्रकट किया कि दस आज्ञाओं में परमेश्वर की उपासना करने की पहली से चौथी आज्ञा को परमेश्वर के पर्वों के द्वारा पूरा किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि पर्वों को मसीह की व्यवस्था(नई वाचा) में बदल दिया गया था। उन्होंने गवाही दी कि चर्च ऑफ गॉड जो इस युग में नई वाचा के पर्वों का पालन करता है, प्रतिज्ञा की संतान है जिसने बाइबल की भविष्यवाणियों को पूरा किया और पिछली बरसात के पवित्र आत्मा की आशीष को प्राप्त किया है।

प्रस्तावना

पवित्र बाइबल का अध्ययन करने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य इसका एहसास करना है कि यीशु का बहुमूल्य लहू किस तरह से हमें अनन्त जीवन देगा। आज हम मूसा की व्यवस्था पढ़ते हैं, ताकि हम मसीह के प्रेम का अनुभव कर सकें और परमेश्वर के उद्धार की उस योजना को समझ सकें जो युगों से छिपी हुई है। हमारी मदद करने के लिए यह परमेश्वर की बुद्धि और योजना हैं कि हम अतीत के द्वारा वर्तमान जान सकें और वर्तमान के द्वारा भविष्य।

यह परमेश्वर की बुद्धि और प्रबन्ध है जो हमें अतीत के द्वारा वर्तमान को और वर्तमान के द्वारा भविष्य को समझने में मदद करता है। विश्वास के पूर्वज अब्राहम के परिवार के द्वारा, परमेश्वर ने बाद में प्रकट होने वाली दो वाचाओं को दिखाया: दासी हाजिरा से उत्पन्न हुआ इश्माएल पुरानी वाचा, अर्थात् मूसा की व्यवस्था को दर्शाता है जो सीनै पर्वत से है(यूह 7:19)। और स्वतन्त्र सारा से उत्पन्न हुआ इसहाक नई वाचा, अर्थात् मसीह की व्यवस्था को दर्शाता है जो सिय्योन से है। मूसा की व्यवस्था बाद में प्रकट होने वाली मसीह की व्यवस्था का वास्तविक स्वरूप नहीं, परन्तु छाया मात्र थी। इसलिए परमेश्वर ने एक मार्ग खोला है, जिसके द्वारा हमारा हृदय जो मूसा की व्यवस्था के अधीन अंधकारमय हो गया था, मसीह की व्यवस्था के अनुग्रह में चमक सकता है और निवास कर सकता है।

जब आप इस पुस्तक को पढ़ें, तब आप उस परमेश्वर की सच्ची आवाज सुनेंगे जो अंधकार में भटकी हुई आत्माओं का जीवन और हर्ष के मार्ग की ओर मार्गदर्शन करता है और उन्हें उस स्वर्ग के राज्य में ले जाता है जिसे उन्होंने पहले खो दिया है।

आन सांग होंग के द्वारा लिखी गई छोटी पुस्तकों का संग्रह करके यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। हम ईमानदारी से आशा करते हैं कि जब तक आपके हृदय में भोर का तारा उदय न हो, तब तक आप इस पुस्तक का पूरी लगन से अध्ययन करें और मसीह के अनुग्रह में अनन्त जीवन के महिमामय सिंहासन में सहभागी हो जाएं।

विषय सूची

  • अध्याय 1 दस आज्ञाएं और अक्षरों की व्यवस्था
  • अध्याय 2 नई वाचा और पुरानी वाचा
  • अध्याय 3 नई वाचा की रीति
  • अध्याय 4 जीवन का वृक्ष और दस आज्ञाएं
  • अध्याय 5 पुरानी वाचा नई वाचा में बदल गई है
  • अध्याय 6 स्वर्गीय यरूशलेम और सांसारिक यरूशलेम
  • अध्याय 7 हारून की रीति और मलिकिसिदक की रीति
  • अध्याय 8 प्रतिज्ञा की सन्तान
  • अध्याय 9 पिछली बरसात का पवित्र आत्मा
  • अध्याय 10 भोजन के बारे में बाइबल की शिक्षाएं

अध्याय 1 दस आज्ञाएं और अक्षरों की व्यवस्था

दस आज्ञाओं का उस व्यवस्था से क्या संबंध है जो नए नियम में अक्षरों की व्यवस्था या शिक्षक कहलाती है? जब मूसा ने सीनै पर्वत पर दस आज्ञाएं पाईं, परमेश्वर ने कहा:

निर्ग 24:12 『… “मैं तुझे पत्थर की पटियाएं, और अपनी लिखी हुई व्यवस्था और आज्ञा दूंगा…”』 और जब प्रेरित पौलुस ने रोमियों को पत्र लिखा, उसने जोर दिया:

रो 7:5-7 『क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषाएं जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं। परन्तु जिस के बन्धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन् आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं। तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है? कदापि नहीं! वरन् बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता : व्यवस्था यदि न कहती, कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता।』 जैसा कि ऊपर लिखा गया है, व्यवस्था, आज्ञाएं और लेख की पुरानी रीति(अक्षरों की व्यवस्था) एक ही शब्द हैं, और ऐसा लिखा गया है:

2कुर 3:6-7 『जिसने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन् आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। यदि मृत्यु की वह वाचा जिसके अक्षर पत्थरों पर खोदे गए थे…』

इफ 2:15 『और अपने शरीर में बैर अर्थात् वह व्यवस्था जिसकी आज्ञाएं विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया…』

इब्र 7:16 『जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं…』

इब्र 7:18-19 『इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल और निष्फल होने के कारण लोप हो गई (इसलिये कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की)…』 यह दिखाता है कि पत्थर पर अंकित की गई दस आज्ञाओं में से कुछ भाग अक्षरों की व्यवस्था का है।

यदि उपर्युक्त आयतों को ध्यानपूर्वक पढ़ा जाए, तो यह स्पष्ट है कि अक्षरों की व्यवस्था में दस आज्ञाएं शामिल की गई हैं। निष्कर्ष में अक्षरों की व्यवस्था दस आज्ञाओं को सम्मिलित करती है। और दस आज्ञाओं समेत पुरानी वाचा नई वाचा में पूरी तरह बदल गई है(इब्र 7:12 संदर्भ)।

दस आज्ञाएं और पर्व

मूसा की व्यवस्था में दस आज्ञाओं को वाचा कहा गया, और पर्वों को भी वाचा कहा गया। जब परमेश्वर ने मूसा को जो दूसरी बार दस आज्ञाएं लेने के लिए 40 दिनों तक सीनै पर्वत पर रहा, सभी व्यवस्थाओं की घोषणा की, परमेश्वर ने तीन बार में सात पर्वों को बताया और पर्वों के अर्थों के अनुसार वाचा को स्थापित किया और मूसा को वाचा की पत्थर की तख़्तियां दीं(निर्ग 34:18-28 संदर्भ)।

निर्ग 34:27-28 『तब यहोवा ने मूसा से कहा, “ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार(तीन बार में सात पर्वों के अनुसार) मैं ने तेरे और इस्राएल के साथ वाचा बांधी है।” मूसा वहां यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उसने रोटी खाई और न पानी पिया। और उसने उन तख़्तियों पर वाचा के वचन अर्थात् दस आज्ञाएं लिख दीं।』

व्य 4:13-14 『और उसने तुम को अपनी वाचा के दसों वचन बताकर उनके मानने की आज्ञा दी; और उन्हें पत्थर की दो पटियाओं पर लिख दिया। और मुझ को यहोवा ने उसी समय तुम्हें विधि और नियम सिखाने की आज्ञा दी, इसलिये कि जिस देश के अधिकारी होने को तुम पार जाने पर हो उसमें तुम उनको माना करो।』

व्य 5:2-3 『हमारे परमेश्वर यहोवा ने होरेब पर हम से वाचा बांधी। इस वाचा को यहोवा ने हमारे पितरों से नहीं, हम ही से बांधा, जो यहां आज के दिन जीवित हैं।』 और 2राजाओं की पुस्तक में यह लिखा है कि इस्राएलियों ने वाचा के वचन के अनुसार फसह का पर्व मनाया(2रा 23:1-3, 21-23 संदर्भ) और प्रेरित पौलुस ने इब्रानियों को लिखा:

इब्र 9:1-7 『उस पहली वाचा में भी सेवा के नियम थे, और ऐसा पवित्रस्थान था जो इस जगत का था…』

जब प्रेरित पौलुस ने प्रायश्चित्त के दिन के पर्व के बारे में बताया, उसने कहा, “पहली वाचा में भी सेवा के नियम थे।” इसलिए दस आज्ञाएं वाचा के वचन हैं। पहली से चौथी तक की आज्ञाएं सिर्फ परमेश्वर की आराधना करने के लिए वाचा हैं। परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य बने रहने का रास्ता सिर्फ पर्व है। ठीक-ठीक कहें, तो दस आज्ञाएं, पर्व और पवित्रस्थान एक प्रणाली के हैं, इसलिए उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। जैसा कि लिखा है:

यश 33:20 『हमारे पर्व के नगर सिय्योन पर दृष्टि कर…』

इब्र 9:1 『उस पहली वाचा में भी सेवा के नियम थे, और ऐसा पवित्रस्थान था जो इस जगत का था।』

इब्र 9:18-20 『इसी लिये पहली वाचा भी बिना लहू के नहीं बांधी गई। क्योंकि जब मूसा सब लोगों को व्यवस्था की हर एक आज्ञा सुना चुका तो उसने बछड़ों और बकरों का लहू लेकर, पानी और लाल ऊन और जूफा के साथ, उस पुस्तक पर और सब लोगों पर छिड़क दिया और कहा, “यह उस वाचा का लहू है, जिसकी आज्ञा परमेश्वर ने तुम्हारे लिये दी है।”』 चूंकि दस आज्ञाएं थीं, इसलिए पवित्रस्थान स्थापित किया गया, और चूंकि पवित्रस्थान था, इसलिए पर्व स्थापित किए गए।

यहोवा के मुख्य दिन का मतलब पर्व है(लैव 16:29-31; यूह 7:37; 19:31 तुलना)। जब प्राचीन इस्राएलियों ने वाचा का उल्लंघन किया, वे शापित हुए(यश 24:1-5 संदर्भ)। और जब उन्होंने पर्वों पर फिर ध्यान दिया और उन्हें मनाया, वे आशीषित किए गए।

पांचवीं से दसवीं तक की आज्ञाएं मनुष्यों के बीच के संबंध के बारे में हैं, इसलिए केवल इन आज्ञाओं का पालन करने के द्वारा हम परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य नहीं बन सकते। वे सिर्फ मनुष्यों के बीच अच्छा संबंध बनाए रखने के लिए हैं, और उनसे परमेश्वर को कोई लाभ नहीं होता(अय 35:6-8 संदर्भ)। जो सोचते हैं कि दस आज्ञाएं पर्वों से अलग हैं, वे ऐसे लोग हैं जो पुरानी वाचा और नई वाचा के बीच अंतर नहीं कर पाते।

कुछ कहते हैं कि दस आज्ञाएं जो वाचा के सन्दूक के अन्दर रखी गई थीं, सदा स्थिर रहेंगी(व्य 31:24-26), जबकि वाचा के सन्दूक के पास रखी गई व्यवस्था की पुस्तक क्रूस के द्वारा मिटा दी गई।

तब, हमें दस आज्ञाओं और व्यवस्था की पुस्तक के संबंध के बारे में अध्ययन करना चाहिए। व्यवस्था की पुस्तक, जिसे वाचा के सन्दूक के पास रखने के लिए कहा गया था, निर्गमन, लैव्यव्यवस्था और गिनती की पुस्तक समेत व्यवस्थाविवरण की पुस्तक है। इस्राएलियों के मिस्र से निकलने के बाद चालीसवें वर्ष के ग्यारहवें महीने के पहले दिन, कनान देश में प्रवेश करने से ठीक पहले, व्यवस्थाविवरण की पुस्तक के वचन मोआब देश में इस्राएल की महासभा के सामने विस्तार से समझाए गए और लिखे गए(व्य 1:1-5; 27:11; 31:22-26 तुलना)।

इस व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में दस आज्ञाएं और उनका विस्तृत विवरण(व्य 4:12-14; 5:1-21; 29:1 तुलना), भोजन की व्यवस्था और दशमांश की व्यवस्था थी(व्य 14:3-21, 22-23)। इसलिए यदि कोई कहता है कि व्यवस्था की पुस्तक जिसमें दस आज्ञाएं शामिल थीं, मिटा दी गई है, तो वह यह दावा करने वाला होता है कि भोजन की व्यवस्था और दशमांश की व्यवस्था के साथ-साथ दस आज्ञाएं मिटा दी गई हैं, क्योंकि व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में दस आज्ञाएं, दशमांश की व्यवस्था और भोजन की व्यवस्था थीं। इसलिए व्यवस्थाविवरण की पुस्तक के मिटाए जाने का मतलब यह होता है कि वे सभी व्यवस्थाएं मिटाई गई हैं। व्यवस्था की पुस्तक वाचा के सन्दूक के पास इसलिए रखी गई, क्योंकि उस पुस्तक में दस आज्ञाओं का विस्तृत विवरण लिखा गया था। दस आज्ञाओं और उनके विवरण का कुछ हिस्सा निम्नलिखित हैं:

मनुष्य के लिए आज्ञाएं

निर्ग 20:12 『“तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना…”』 इस आज्ञा के बारे में व्यवस्था की पुस्तक ने विस्तार से इस प्रकार विवरण दिया:

निर्ग 21:15 『“जो अपने पिता या माता को मारे-पीटे वह निश्चय मार डाला जाए।”』

निर्ग 21:17 『“जो अपने पिता या माता को श्राप दे वह भी निश्चय मार डाला जाए।”』

व्य 21:18-21 『“यदि किसी के हठीला और दंगैत बेटा हो, जो अपने माता-पिता की बात न माने, किन्तु ताड़ना देने पर भी उनकी न सुने, तो उसके माता-पिता उसे पकड़कर अपने नगर से बाहर फाटक के निकट नगर के पुरनियों के पास ले जाएं, और वे नगर के पुरनियों से कहें, ‘हमारा यह बेटा हठीला और दंगैत है, यह हमारी नहीं सुनता; यह उड़ाऊ और पियक्कड़ है।’ तब उस नगर के सब पुरुष उसे पथराव करके मार डालें, यों तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना…』

व्य 27:16 『‘शापित हो वह जो अपने पिता या माता को तुच्छ जाने।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’』

व्य 5:17 『‘तू हत्या न करना।’』 इस आज्ञा के बारे में यह लिखा है:

निर्ग 21:12-14 『“जो किसी मनुष्य को ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए। यदि वह उसकी घात में न बैठा हो, और परमेश्वर की इच्छा ही से वह उसके हाथ में पड़ गया हो, तो ऐसे मारनेवाले के भागने के लिए मैं एक स्थान ठहराऊंगा जहां वह भाग जाए। परन्तु यदि कोई ढिठाई से किसी पर चढ़ाई करके उसे छल से घात करे, तो उसको मार डालने के लिये मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना।”』

निर्ग 22:2-3 『यदि चोर सेंध लगाते हुए पकड़ा जाए, और उस पर ऐसी मार पड़े कि वह मर जाए, तो उसके खून का दोष न लगे; यदि सूर्य निकल चुके, तो उसके खून का दोष लगे…』

व्य 19:4-6 『और जो खूनी वहां भागकर अपने प्राण को बचाए, वह इस प्रकार का हो; अर्थात् वह किसी से बिना पहले बैर रखे या उसको बिना जाने बूझे मार डाला हो…』

व्य 5:18 『‘तू व्यभिचार न करना।’』 इस आज्ञा के बारे में यह लिखा है:

लैव 20:10-22 『“फिर यदि कोई पराई स्त्री के साथ व्यभिचार करे, तो जिसने किसी दूसरे की स्त्री के साथ व्यभिचार किया हो तो वह व्यभिचारी और वह व्यभिचारिणी दोनों निश्चय मार डाले जाएं। यदि कोई अपनी सौतेली माता के साथ सोए, वह अपने पिता ही का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा; इसलिये वे दोनों निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पड़ेगा। यदि कोई अपनी पतोहू के साथ सोए, तो वे दोनों निश्चय मार डाले जाएं; क्योंकि वे उलटा काम करनेवाले ठहरेंगे…』

व्य 22:23-30 『“यदि किसी कुंवारी कन्या के विवाह की बात लगी हो, और कोई दूसरा पुरुष उसे नगर में पाकर उससे कुकर्म करे, तो तुम उन दोनों को उस नगर के फाटक के बाहर ले जाकर उन पर पथराव करके मार डालना…”』 इन वचनों के अतिरिक्त व्यभिचार के बारे में और भी विवरण हैं।

व्य 5:19 『‘तू चोरी न करना।’』 इस आज्ञा के बारे में यह लिखा है:

निर्ग 22:1-9 『“यदि कोई मनुष्य बैल, या भेड़, या बकरी चुराकर उसका घात करे या बेच डाले, तो वह बैल के बदले पांच बैल… भर दे… अवश्य है कि वह हानि को भर दे, और यदि उसके पास कुछ न हो, तो वह चोरी के कारण बेच दिया जाए…”』

व्य 24:7 『“यदि कोई अपने किसी इस्राएली भाई को दास बनाने या बेच डालने के विचार से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो ऐसा चोर मार डाला जाए; ऐसी बुराई को अपने मध्य में से दूर करना।”』

इसके अतिरिक्त, चोरी के बारे में बहुत ज्यादा विस्तृत विवरण मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखे गए हैं(व्य 24:10-22; 28:1-68 संदर्भ)।

पहली आज्ञा और उसका विवरण

जिस प्रकार मनुष्य के लिए आज्ञाओं का विस्तृत विवरण व्यवस्था की पुस्तक में लिखा गया, उसी प्रकार उसमें परमेश्वर के लिए आज्ञाओं का विस्तृत विवरण भी लिखा गया। मूसा को दी गई दस आज्ञाएं पत्थर की दो पटियाओं पर लिखी गई थीं(निर्ग 32:15-16; 34:28-29)। एक पटिया पर पहली से चौथी तक की आज्ञाएं परमेश्वर की आराधना करने के लिए लिखी गईं, और दूसरी पटिया पर पांचवीं से दसवीं तक की आज्ञाएं मनुष्य के लिए लिखी गईं। पहली से चौथी तक की आज्ञाओं को परमेश्वर के लिए आज्ञाएं इसलिए कहा जाता है, क्योंकि सब्त के दिन समेत सभी पर्व ऐसी आज्ञाएं हैं जो रीतियों के अनुसार पवित्रस्थान में एकमात्र परमेश्वर की आराधना करने के लिए दी गईं।

तब, पहली आज्ञा का पालन करने का वास्तविक तरीका क्या है?

बाइबल कहती है, “तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना”(निर्ग 20:3)। इसमें दो आज्ञाएं शामिल हैं: “दूसरे ईश्वरों की उपासना न करना” और “केवल परमेश्वर की उपासना करना।”

बिना किसी दूसरे ईश्वर की उपासना न करके केवल परमेश्वर की उपासना करने का एकमात्र तरीका फसह के पर्व में बलिदान चढ़ाना है क्योंकि उस दिन परमेश्वर ने अपने लोगों को मिस्र देश, यानी मृत्यु और दासत्व के घर से छुटकारा दिया था।

पहली आज्ञा, “तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना,” परमेश्वर के हम पर अपना निरंकुश अधिकार जताने के लिए नहीं है। यह आज्ञा हमें देने का एक निश्चित कारण है। परमेश्वर फसह के पर्व के दिन अपने लोगों को मिस्र, यानी दासत्व के घर से निकाल लाया था(निर्ग 13:3-10; 12:17 तुलना), इसलिए परमेश्वर ने उन्हें आज्ञा दी कि वे उस छुटकारे के दिन को स्मरण करें और उसे यहोवा के लिए सदा की विधि जानकर पर्व करके मानें।

इस कारण, पहली आज्ञा और फसह का पर्व दोनों एक समान कथन के साथ शुरू होते हैं। जब परमेश्वर ने पहली आज्ञा की घोषणा की, उसने इन शब्दों के साथ शुरू किया, “तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात् मिस्र देश में से निकाल लाया है, वह मैं हूं। मुझे छोड़ दूसरों को परमेश्वर करके न मानना”(व्य 5:6-7; निर्ग 20:2-3)। और जब उसने फसह के बारे में बताया, उसने एक जैसे शब्दों के साथ शुरू किया, “इस दिन को स्मरण रखो, जिसमें तुम लोग दासत्व के घर, अर्थात् मिस्र से निकल आए हो”(निर्ग 13:3-10; 12:17; व्य 16:1-17 तुलना)। इन दो आज्ञाओं में इस प्रकार परमेश्वर की इच्छा शामिल है: ‘मैं(परमेश्वर) तुझे अपने बलिदान के लहू के द्वारा दासत्व के घर, यानी मिस्र देश से निकाल ले आया। क्या मैं तेरा उद्धारकर्ता नहीं हूं? इसलिए जिस दिन मैं तुझे निकाल ले आया उस दिन को स्मरण रखते हुए, मुझे छोड़ दूसरे ईश्वर की उपासना न कर।’

ऐसे लोग ज्यादा नहीं हैं जो पहली आज्ञा को ठीक-ठीक समझते हैं। परमेश्वर का सबसे बड़ा रहस्य पहली आज्ञा में शामिल होता है। अधिकतर लोग शायद जानते हैं कि पहली आज्ञा क्या है, लेकिन असल में वे इसके मूल सिद्धांत को महसूस नहीं करते। इसी कारण, जब एक व्यवस्थापक ने यीशु को यह प्रश्न पूछ कर परखा, ‘यदि आप सच में भविष्यद्वक्ता हैं, तो क्या आप जानते हैं कि व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?’ जैसा कि लिखा है:

मत 22:35-40 『… “हे गुरु, व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?” उसने उससे कहा, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है…”』

जब हम सब नबियों के लेखों का अध्ययन करें, तो हम देख सकते हैं कि वह जिसने “अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ” परमेश्वर से प्रेम करने के द्वारा पहली आज्ञा को पूरा किया, केवल राजा योशिय्याह के अलावा कोई नहीं था।

2रा 23:25 『उसके(योशिय्याह) तुल्य न तो उस से पहले कोई ऐसा राजा हुआ और न उसके बाद ऐसा कोई राजा उठा, जो मूसा की पूरी व्यवस्था के अनुसार अपने पूर्ण मन और पूर्ण प्राण और पूर्ण शक्ति से यहोवा की ओर फिरा हो।』

योशिय्याह वह राजा कहलाया जिसने मूसा की सारी व्यवस्था पूरी की। यह दर्शाता है कि उसने अपने पूर्ण मन और पूर्ण प्राण और पूर्ण शक्ति से पहली आज्ञा, फसह का पर्व मनाया। यह उसके लिए बड़ी सफलता थी। जैसा कि लिखा है:

2रा 23:21-25 『राजा ने सारी प्रजा के लोगों को आज्ञा दी, “इस वाचा की पुस्तक में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा के लिये फसह का पर्व मानो।” निश्चय ऐसा फसह न तो न्यायियों के दिनों में माना गया था जो इस्राएल का न्याय करते थे, और न इस्राएल या यहूदा के राजाओं के दिनों में माना गया था। राजा योशिय्याह के अठारहवें वर्ष में यहोवा के लिए यरूशलेम में यह फसह माना गया…』

जैसे कि आप राजा योशिय्याह के कार्य में देखते हैं, फसह का पर्व परमेश्वर की पहली आज्ञा है। यीशु ने यह कहकर इस तथ्य को प्रमाणित किया, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख”(मत 22:37-38; 2रा 23:21-25 तुलना)। ये शब्द फसह के पर्व को संकेत करते हैं।

मूसा ने भी एक जैसी बातें कहीं जब उसने इस्राएल की महासभा के सामने फसह के पर्व के बारे में इस प्रकार बताया:

व्य 6:4-9 『“हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना। और ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना। और इन्हें अपने हाथ पर चिह्न के रूप में बांधना, और ये तेरी आंखों के बीच टीके का काम दें। और इन्हें अपने अपने घर के चौखट की बाजुओं और अपने फाटकों पर लिखना।”』

“इन्हें अपने हाथ पर चिह्न के रूप में बांधना, और ये तेरी आंखों के बीच टीके का काम दें।” इसी प्रकार फसह के पर्व को एक चिह्न के रूप में बांधने के लिए बताया गया।

निर्ग 13:9-10 『फिर यह(फसह का पर्व) तुम्हारे लिये तुम्हारे हाथ में एक चिह्न होगा, और तुम्हारी आंखों के सामने स्मरण करानेवाली वस्तु ठहरे; जिससे यहोवा की व्यवस्था तुम्हारे मुंह पर रहे : क्योंकि यहोवा ने तुम्हें अपने बलवन्त हाथों से मिस्र से निकाला है। इस कारण तुम इस विधि को प्रति वर्ष नियत समय पर माना करना।』

इसलिए यह वचन “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।” फसह के पर्व को दर्शाता है।

फसह का पर्व सभी अन्य देवताओं के विरुद्ध न्याय करने का दिन है

जब हम “तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना,” इस वचन को ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं, तब हम समझेंगे कि पहली आज्ञा ही फसह का पर्व मनाना है। फसह का पर्व मनाने से, हम दूसरे देवताओं की उपासना न करते हुए सिर्फ उस परमेश्वर की उपासना कर सकते हैं जो अपने लोगों को दासत्व के घर, यानी मिस्र से निकाल ले आया। जब हम परमेश्वर का फसह का पर्व मनाते हैं, सारे दूसरे देवता नष्ट हो जाते हैं, और जब तक हम फसह का पर्व नहीं मनाते, तब तक अनजाने में हम में दूसरे देवताओं की घुसपैठ होती है। जैसा कि लिखा है:

निर्ग 12:12; गिन 33:4 『क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में होकर जाऊंगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठों को मारूंगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा; मैं यहोवा हूं।』

परमेश्वर ने कहा, “सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा।” कुछ लोग सोचते हैं कि इस वचन का प्रभाव सिर्फ उस समय में ही बरकरार था जब इस्राएली मिस्र से निकल गए। लेकिन जब कभी इस्राएलियों ने फसह का पर्व नहीं मनाया, उन्होंने दूसरे ईश्वरों को अन्दर घुसने दिया; उन्होंने ऊंचे स्थान बनाए, अशेरा नामक मूर्त बनाई और बाल की उपासना की। इसके परिणामस्वरूप ओझे और भूतसिद्धिवाले बढ़ गए। परन्तु, जब उन्होंने परमेश्वर से भेजे गए नबी के द्वारा फिर से फसह का पर्व मनाया, उन्होंने दूसरे सब देवताओं और मूर्तियों को पूरी तरह से हटा दिया, और ओझाओं और भूतसिद्धिवालों को भी नष्ट किया।

राजा हिजकिय्याह और योशिय्याह के दिनों में, पर्व लंबे समय तक नहीं मनाया गया था, और सारा राज्य मूर्तियों से भर गया था। लेकिन जब उन्होंने फिर से फसह का पर्व मनाया, तब उनकी आत्मिक आंखें खुल गईं, और उन्होंने ओझे, भूतसिद्धिवाले, गृहदेवता, मूरतें और जितनी घिनौनी वस्तुएं यहूदा देश और यरूशलेम में जहां कहीं दिखाई पड़ीं, उन सभों को नष्ट किया(2रा 23:21-24; 2इत 30:1-5; 31:1)। और फसह का पर्व मनाने के बाद, जब याजकों ने लोगों के लिए प्रार्थना की, तब उनकी प्रार्थना स्वर्ग तक पहुंची।

2इत 30:27 『अन्त में लेवीय याजकों ने खड़े होकर प्रजा को आशीर्वाद दिया, और उनकी सुनी गई, और उनकी प्रार्थना उसके पवित्र धाम तक अर्थात् स्वर्ग तक पहुंची।』

राजा हिजकिय्याह और योशिय्याह ने भी फसह का पर्व मनाने से पहले, मूर्तियों को दण्डवत् किया था। लेकिन फसह का पर्व मनाने के बाद, वे यह महसूस करने लगे कि उन्होंने उस समय तक मूर्तिपूजा की थी, और उन्होंने दूसरे सब देवताओं का नाश किया। क्योंकि इस्राएलियों के मिस्र से निकलते समय, परमेश्वर ने फसह के पर्व के दिन को सभी अन्य देवताओं के विरुद्ध न्याय करने के दिन के रूप में नियुक्त किया। जब परमेश्वर के लोग फसह का पर्व मनाते हैं, सभी दूसरे देवताओं का न्याय किया जाता है और वे नष्ट किए जाते हैं। परन्तु यदि वे इसे नहीं मनाते, वे अनजाने में दूसरे देवताओं की उपासना करते हैं।

बहुत पहले जब इस्राएल के राजा, यारोबाम ने लोगों को परमेश्वर के पर्व मनाने से मना किया, उसने सोने के दो बछड़े बना कर एक को बेतेल, और दूसरे को दान में स्थापित किया और लोगों से कहा, “यरूशलेम को जाना तुम्हारी शक्ति से बाहर है इसलिये हे इस्राएल अपने देवताओं को देखो, जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाए हैं”(1रा 12:25-33)।

वे सोने के बछड़े, मूर्तियां और ऊंचे स्थान, जो राजा यारोबाम ने लगभग 975 ई.पू. में लोगों को परमेश्वर के पर्व मनाने से रोकने के लिए बनाए थे, उनकी उपासना राजा योशिय्याह के समय तक, लगभग 300 सालों तक की गई थी। जब राजा योशिय्याह ने व्यवस्था की पुस्तक को पढ़ा जो पवित्रस्थान में संयोग से पाई गई थी, तब उसने फसह के पर्व को महसूस किया और सब मूर्तियों, वेदियों और ऊंचे स्थानों को नष्ट कर दिया(2रा 22:1-20; 23:15-20 संदर्भ), और फसह का पर्व मनाने के बाद, उसने सभी शेष मूरतों और भूतसिद्धिवालों को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया(2रा 23:21-24)।

आज भी लोग उस दिन को हटा देते हैं जिसे यीशु ने नई वाचा के रूप में स्थापित किया था, और किसी अन्य दिन को नियुक्त करते हुए मनाते हैं। वे राजा यारोबाम के जैसे हैं जिसने मूर्तियों को खड़ा किया था और किसी अन्य दिन को पर्व के रूप में नियुक्त किया था। यहेजकेल नबी ने इसके बारे में इस प्रकार लिखा:

यहेज 11:12 『“तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूं; तुम तो मेरी विधियों पर नहीं चले, और मेरे नियमों को तुम ने नहीं माना; परन्तु अपने चारों ओर की जातियों की रीतियों पर चले हो।”』

प्राचीन और वर्तमान समय में, जब लोग परमेश्वर की विधियों को नहीं मानते, तब वे अंत में अन्य नियम, यानी अन्यजातियों की रीतियों पर चलने लगते हैं। इसलिए यदि हम परमेश्वर के नियत समय पर फसह का पर्व नहीं मनाते, तब हम दूसरे देवताओं की उपासना करने लगते हैं।

कुछ लोग कहते हैं कि फसह का पर्व सिर्फ शारीरिक इस्राएलियों के लिए है और यह पहले से क्रूस के द्वारा मिटाया गया। पुराने नियम के समय में भी, कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने सोचा कि फसह का पर्व सिर्फ उस समय जरूरी था जब इस्राएली मिस्र से निकले थे; उन्होंने परमेश्वर की आराधना करने के लिए दूसरा मार्ग ढूंढ़ने का दावा किया, और मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा की। इन दिनों में भी, यदि हम परमेश्वर के छुटकारे के सिद्धांत को समझने में विफल हो जाते हैं, तो हमें भी ऐसा विचार मन से आता है। वास्तव में फसह का पर्व सिर्फ शारीरिक इस्राएलियों के लिए नहीं, पर सारे संसार में आत्मिक इस्राएलियों के लिए भी छुटकारे का दिन है।c

पुराने नियम के समय में, फसह का पर्व जिसके माध्यम से शारीरिक इस्राएली मिस्र देश से निकल गए और कनान देश में प्रवेश किया, वास्तव में, नश्वर शारीरिक इस्राएलियों के लिए नहीं, परन्तु आत्मिक इस्राएलियों के लिए स्थापित किया गया है। फसह की रात को “यहोवा की रात” कहा जाता था(निर्ग 12:42)।

मिस्र देश में मनाया गया फसह का पर्व एक छाया है, और इसकी असलियत वह फसह का पर्व है जिसे यीशु ने अपने चेलों के साथ नई आज्ञा, यानी नई वाचा के रूप में मनाया(लूक 22:20; इब्र 9:15 तुलना)। यह वह दिन है जब यीशु ने अपने लोगों को पापों के दासत्व से छुड़ा लिया। इस दिन को मनाने के द्वारा, हम अपने छुड़ानेवाले यीशु को छोड़ किसी दूसरे देवता की उपासना नहीं करते। क्रूस के द्वारा फसह का पर्व मिटाया नहीं गया, बल्कि उस दिन को और भी अधिक प्रकाशित किया गया।

कुछ लोग बोलते हैं कि पुराने नियम के समय में पर्व महत्वपूर्ण समझे जाते थे, इसलिए फसह का पर्व उस समय पहली आज्ञा के रूप में माना जा सकता था, और वे दावा करते हैं कि नए नियम के समय में फसह का पर्व क्रूस के द्वारा मिटा दिया गया। परन्तु नए नियम में भी फसह के पर्व को पहली आज्ञा होना चाहिए जैसे वह पुराने नियम में पहली आज्ञा था। क्योंकि पुराना नियम एक छाया है और उसकी वास्तविकता नया नियम है।

दूसरी आज्ञा और उसका विवरण

दूसरी आज्ञा कहती है, “तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना”(व्य 5:8-10)।

व्य 4:15-19 『“इसलिये तुम अपने विषय में बहुत सावधान रहना। क्योंकि जब यहोवा ने तुम से होरेब पर्वत पर आग के बीच में से बातें कीं तब तुम को कोई रूप न दिखाई पड़ा, कहीं ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर… कोई मूर्ति खोदकर बना लो…”』

निर्ग 20:22-24 『तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इस्राएलियों को मेरे ये वचन सुना : तुम लोगों ने आप ही देखा है कि मैं ने तुम्हारे साथ आकाश से बातें की हैं। तुम मेरे साथ किसी को सम्मिलित न करना, अर्थात् अपने लिये चांदी या सोने से देवताओं को न गढ़ लेना। मेरे लिये मिट्टी की एक वेदी बनाना, और अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के होमबलि और मेलबलि को उस पर चढ़ाना; जहां जहां मैं अपने नाम का स्मरण कराऊं वहां वहां मैं आकर तुम्हें आशीष दूंगा।』 ये सभी वचन सन्दूक के पास रखी गई व्यवस्था की पुस्तक में लिखे गए हैं।

“तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना,” इस दूसरी आज्ञा का न केवल मूर्तियां बनाने से उल्लंघन किया जाता, परन्तु पहली आज्ञा का उल्लंघन करते समय दूसरी आज्ञा का भी उल्लंघन किया जाता है। इसे यारोबाम के मामले में भी देखा जा सकता है जिसने पहली आज्ञा का उल्लंघन करते समय, मूर्तियां बनाकर उनकी उपासना की।

इसलिए सिर्फ कोई प्रतिमा बनाकर उसकी उपासना करना मूर्तिपूजा नहीं है, बल्कि परमेश्वर की सच्ची व्यवस्था के विरुद्ध अन्य व्यवस्था बनाकर उसका पालन करना भी मूर्तिपूजा है; परमेश्वर ने सब्त का दिन नियुक्त किया, इसलिए रविवार को सब्त के दिन के रूप में नियुक्त करके उसे मनाना सब्त के दिन के विरुद्ध मूर्ति बनाना है।

तीसरी आज्ञा और उसका विवरण

“तू अपने परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्थ न लेना”(व्य 5:11), इस तीसरी आज्ञा का पालन सिर्फ परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेने से नहीं किया जा सकता। इस आज्ञा का यह मतलब निकलता है कि हमें परमेश्वर का नाम व्यर्थ नहीं, पर पवित्र लेना चाहिए। आइए हम इसका अध्ययन करें कि यहोवा का नाम कैसे व्यर्थ लिया जाता और कैसे पवित्र लिया जाता है। जैसा कि लिखा है:

2इत 2:4 『देख, मैं अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाने पर हूं कि उसे उसके लिये पवित्र करूं…』

1रा 8:30, 34-36 『और तू अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान(मंदिर) की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरन् स्वर्ग में से जो तेरा निवासस्थान है सुन लेना, और सुनकर क्षमा करना… तू स्वर्ग में से सुनकर…』

1रा 9:3 『… यह जो भवन तू ने बनाया है, उसमें मैं ने अपना नाम सदा के लिये रखकर उसे पवित्र किया है…』

निर्ग 20:24 『… जहां जहां मैं अपने नाम का स्मरण कराऊं वहां वहां मैं आकर तुम्हें आशीष दूंगा।』

वह जगह जहां यहोवा ने अपना नाम रखा, मंदिर है। केवल मंदिर में, परमेश्वर निर्धारित विधियों के अनुसार लोग यहोवा का नाम पुकार सकते थे और उसका आदर कर सकते थे। यदि कोई परमेश्वर के नियम नहीं, परन्तु मनुष्य के नियम का पालन करते हुए कहे, “यह एक साल तक किए गए पापों की क्षमा के लिए प्रार्थना का सप्ताह है” या “यह दिन सब्त का दिन है,” और यदि कोई फसह के पर्व की विधि को अपने खुदके तरीके से संचालित करते हुए कहे, “यह रोटी और दाखमधु यीशु का मांस और लहू है,” तो वह परमेश्वर का नाम व्यर्थ लेने वाला है और परमेश्वर को अपवित्र करने वाला है। क्योंकि यह लिखा है:

व्य 16:1-6 『… जो स्थान तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने के लिये चुन ले केवल वहीं, वर्ष के उसी समय जिस में तू मिस्र से निकला था, अर्थात् सूरज डूबने पर संध्याकाल को, फसह का पशु बलि करना।』 यदि हम पवित्र भोज उसी दिन मनाते हुए जिस दिन यीशु ने नई वाचा को स्थापित किया, परमेश्वर के नाम को पवित्र करें, तो परमेश्वर को कितनी अधिक प्रसन्नता होगी!

जब पहली आज्ञा का उल्लंघन होता है, तब अवश्य ही तीसरी आज्ञा का भी उल्लंघन होता है। दूसरे शब्दों में, यदि कोई जोर से प्रार्थना करते हुए कि “यह दिन यहोवा का पवित्र सब्त है,” सब्त के दिन के बदले रविवार को आराधना करे, तो वह मूर्ति बनाने वाला और साथ ही परमेश्वर का नाम व्यर्थ लेने वाला होगा। लेकिन सब्त का दिन मनाने वालों के लिए रविवार को आराधना करना कोई समस्या नहीं है।

इस तरह, यदि कोई पवित्र भोज को उसी दिन मनाता है जिस दिन यीशु ने नई वाचा को स्थापित किया, वह साधारण दिन भी पवित्र भोज मना सकता है। इस मामले में, वह न तो मूर्ति बनाने वाला और न ही परमेश्वर के नाम का अनादर करने वाला है। तीसरी आज्ञा का विस्तृत विवरण भी सन्दूक के पास रखी गई व्यवस्था की पुस्तक में है।

चौथी आज्ञा और उसका विवरण

बाइबल कहती है, “तू विश्रामदिन को मानकर पवित्र रखना, जैसे तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी”(व्य 5:12-14)। इसका अर्थ है कि सब्त सृष्टिकर्ता का यादगार दिन है, क्योंकि यह लिखा है: “क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश, और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उनमें हैं, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रामदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया”(निर्ग 20:11)।

पुराने समय में सब्त का दिन मनाने की विधियां इस प्रकार थीं:

गिन 28:9-10 『“फिर विश्रामदिन को दो निर्दोष भेड़ के एक साल के नर बच्चे, और अन्नबलि के लिये तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अर्घ समेत चढ़ाना। नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा प्रत्येक विश्रामदिन का यही होमबलि ठहरा है।”』 और यह भी लिखा है, “प्रति विश्रामदिन को वह उसे नित्य यहोवा के सम्मुख क्रम से रखा करे, यह सदा की वाचा की रीति इस्राएलियों की ओर से हुआ करे”(लैव 24:5-8; 1इत 9:32; 23:31; 2इत 2:4; यहेज 46:4 तुलना)।

मूसा की व्यवस्था के अनुसार सब्त का दिन पर्व कहलाया, क्योंकि सब्त के दिन कुछ विधियां संचालित की जाती थीं।

लैव 23:2-3 『“इस्राएलियों से कह कि यहोवा के पर्व जिनका तुम को पवित्र सभा एकत्रित करने के लिये नियत समय पर प्रचार करना होगा, मेरे वे पर्व ये हैं। छ: दिन कामकाज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्राम का और पवित्र सभा का दिन है; उसमें किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए; वह तुम्हारे सब घरों में यहोवा का विश्राम दिन ठहरे।”』

चौथी आज्ञा के सब्त के दिन को पर्व कहे जाने का कारण यह था कि पवित्रस्थान में सब्त के दिन की विधियों के अनुसार यहोवा के सम्मुख सबेरे और सांझ को होमबलि और भेंट की रोटी और अन्नबलि को चढ़ाया जाता था। और सब्त के दिन का उल्लंघन करने के विषय में यह लिखा है:

निर्ग 35:2-3 『… वरन् विश्राम के दिन तुम अपने अपने घरों में आग तक न जलाना।』

निर्ग 31:15 『… जो कोई विश्राम के दिन में कुछ काम काज करे वह निश्चय मार डाला जाए।』

गिन 15:32-36 『जब इस्राएली जंगल में रहते थे, उन दिनों एक मनुष्य विश्राम के दिन लकड़ी बीनता हुआ मिला… “वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए…”』 ये सभी बातें और सब्त के दिन का विस्तृत विवरण सन्दूक के पास रखी गई व्यवस्था की पुस्तक में हैं।

अध्याय 2 नई वाचा और पुरानी वाचा

पवित्र बाइबल पुराने नियम और नए नियम दोनों से मिलकर बनी हुई है। पुराने नियम का अर्थ पुरानी वाचा है, और नए नियम का अर्थ नई वाचा है। यह ईसाइयों में एक सामान्य राय है कि पुराना नियम, यानी पुरानी वाचा क्रूस के द्वारा मिटा दी गई, लेकिन नए नियम, यानी नई वाचा का पालन किया जाना चाहिए। पुराने नियम में जैसी शिक्षाएं हैं, वैसा ही यदि हम ग्रहण करें और पालन करें, तो हम यीशु के अनुग्रह से वंचित होंगे। इसलिए हमें उस शिक्षा को ढूंढ़ना चाहिए, जिसका हमें नई वाचा, यानी नए नियम में पालन करना चाहिए।

सारे सिद्धांतों का न्याय करने का मानक यीशु है। वह हमारा शिक्षक और हमारा उद्धारकर्ता है, और सब कुछ जो उसने सिखाया और कार्य में लाया, उनका पालन किया जाना चाहिए। हमें उन प्रेरितों के उदाहरणों का भी पालन करना चाहिए जो सीधे यीशु के द्वारा सिखाए गए थे। यदि कोई उनकी शिक्षाओं को अनदेखा करेगा और घमण्ड के साथ अपना विचार उनमें बढ़ाएगा, तो वह विधर्मी शिक्षा बनाने वाला होगा। क्योंकि यह लिखा है:

गल 1:6-9 『… परन्तु यदि हम, या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो शापित हो… वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो शापित हो।』

लेकिन समय बीतने पर, सत्य एक के बाद एक बदला जाने लगा। जैसे यीशु ने पहले भविष्यवाणी की थी कि उसके अच्छा बीज, यानी स्वर्ग का सुसमाचार बोने के बाद, शत्रु शैतान जंगली बीज बोएगा(मत 13:24-30 संदर्भ)। जीवन का सत्य प्रेरितों के युग के बाद धुंधला होने लगा। 167 ई. में फसह का पर्व दूसरे दिन में बदल दिया गया। वैटिकन जिसे चर्च पर प्रभुता करने का अधिकार था, और डॉक्टर किड ने पवित्र वर्ष के अनुसार पहले महीने(नीसान) के चौदहवें दिन पवित्र भोज मनाने वालों पर विधर्म का आरोप लगाया[“A History of the Early Church to A.D. 500” पृष्ठ 83]।

उसके बाद, शैतान ने और अधिक तीव्रता के साथ अपना दूषित कार्य करना शुरू किया। आखिरकार, उसने 167 ई. में फसह के पर्व को और 321 ई. में सब्त के दिन को बदल दिया। लेकिन परमेश्वर का सत्य शैतान के द्वारा हमेशा के लिए नहीं रौंदा जा सकता। भविष्यवाणी के अनुसार सत्य की ज्योति फिर से प्रकट होने लगी। लूथर ने विश्वास की आजादी को, बैपटिस्ट चर्च ने बपतिस्मा को, सेवेंथ-डे एडवेंटिस्ट चर्च ने सब्त के दिन को पुन:स्थापित किया। अब आखिर में एक सत्य बचा है। वह फसह का पवित्र भोज है जो जीवन की ओर ले जाता है। हमें फसह के पर्व को सम्पूर्ण रूप से प्रकट करना चाहिए और जीवन का सत्य ढूंढ़ने वाले सभी लोगों को इस अन्तिम सत्य का प्रचार करना चाहिए, ताकि हम यीशु के आगमन के मार्ग की तैयारी कर सकें और फसह के मेमने के लहू के द्वारा शुद्ध किए जा सकें और अनन्त जीवन में प्रवेश कर सकें।

समाचार जिसे मैं अब सुना रहा हूं, यह एक नया समाचार नहीं है। यह वह सुसमाचार है जिसे यीशु ने सिखाया और जिसका चेलों ने प्रचार किया। जैसा कि लिखा है:

फिलि 4:9 『जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण कीं, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।』

1कुर 11:23-26 『क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया, रोटी ली, और धन्यवाद करके उसे तोड़ी और कहा, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है : मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” इसी रीति से उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया और कहा, “यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है : जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।』(लूक 22:7-20 तुलना)

फसह का पर्व नई वाचा का मुख्य तत्व है। यीशु और प्रेरित पौलुस ने फसह के पर्व को नई वाचा कहा।

अध्याय 3 नई वाचा की रीति

नई वाचा पुरानी वाचा को पूरी करती है, इसलिए अक्षरों की पुरानी विधियां आत्मा की विधियों में बदल गई हैं। जैसा कि लिखा है:

1कुर 5:7-8, आईबीपी बाइबल 『… क्योंकि हमारे फसह का मेमना मसीह भी बलिदान हुआ है। इसलिए हम… फसह मनाएं।』

इब्र 7:12 『क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है, तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है।』

अक्षरों के याजक का पद आत्मा के याजक के पद में बदल गया है। इस पापमय संसार(मिस्र) से हमारे मुक्त होने के दिन को याद कराने के लिए, यीशु ने फसह के पर्व को चुना जो मिस्र से निकलते समय मनाया गया था, और उसने अपने चेलों के साथ फसह के अन्तिम भोज के द्वारा नई वाचा स्थापित की(लूक 22:7-13, 19-20; निर्ग 13:8-10 तुलना)।

यीशु ने हमें नई वाचा की विधियां सौंपीं, जिनके द्वारा हमारा शरीर शुद्ध होकर “पवित्र आत्मा का मंदिर” बनता है जिसमें पवित्र आत्मा निवास करता है; हमें फसह का पर्व इस प्रकार मनाना चाहिए – हमें मेमने के मांस को खाने के बजाय वह रोटी खानी चाहिए जो यीशु के शरीर को दर्शाती है, और हमें मेमने के लहू को वेदी पर और लोगों पर छिड़कने के बजाय दाखमधु पीना चाहिए जो यीशु के लहू को दर्शाता है। हमें इस दिन को याद रखना चाहिए और इस दिन की घोषणा करनी चाहिए(1कुर 11:23-26; लूक 22:15-20; यूह 6:53-55 तुलना)।

यदि फसह का पर्व नियुक्त किए गए समय पर न मनाना होता, तो यीशु ने किसी भी दिन उसे मनाने का उदाहरण दिया होता। जो भी हो, यीशु ने हमें उदाहरण देने के लिए फसह के पर्व का इंतजार किया और कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी कि यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं,”(लूक 22:15) क्योंकि यीशु फसह के पर्व के बिना अपने कार्य को पूरा नहीं कर सकता था, इसलिए उसने उस दिन का इंतजार किया और बहुत चाहा कि अपने चेलों के साथ फसह खाए। इसलिए इसकी विधि को फसह खाने का एक त्योहार कहा गया है(लूक 22:8-15; मत 26:17; मर 14:12-14 संदर्भ)।

फसह का मेमना 1,500 वर्ष की लंबी अवधि तक, यहूदी कैलेंडर के अनुसार पहले महीने के चौदहवें दिन बलिदान किया जाता था। और उसी महीने के उसी दिन यीशु ने अपने चेलों के साथ फसह खाया, और इस पर्व को एक यादगार दिन के रूप में नियुक्त किया जिस दिन हम यीशु की मृत्यु को परमेश्वर के उस मेमने के रूप में स्मरण कर सकते हैं, जो जगत का पाप उठा ले जाता है। यीशु मसीह ने फसह के पवित्र भोज के समय नई वाचा पर प्रायश्चित्त के महान बलिदान के साथ मुहर लगाई।

फसह के पर्व की रोटी यीशु का शरीर बनती है जो क्रूस पर चढ़ाया गया, और फसह के पर्व का दाखमधु यीशु का बहुमूल्य लहू बनता है जो क्रूस पर बहाया गया। फसह का पर्व एक विधि है जो हमारे लिए यीशु के प्रायश्चित्त करने का महान प्रेम स्पष्ट रूप से दिखाती है। फसह के पर्व के पवित्र भोज के बारे में, यीशु ने इस प्रकार अहम बातें बताईं:

लूक 22:19-20 『फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिये दी जाती है : मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।”』

यूह 6:53-56 『यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा। क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है, और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उस में।”』

ऊपर के वचन दिखाते हैं कि यीशु ने, जो फसह का मेमना है, फसह के पवित्र भोज के ऊपर, क्रूस पर चढ़ाए गए अपने मांस और क्रूस पर बहे अपने लहू के साथ मुहर लगाई। इस फसह की विधि के द्वारा, हम यीशु में बने रहते हैं, अनन्त जीवन पाते हैं, और अन्तिम दिन जिला उठाए जाने का वादा ग्रहण करते हैं।

यीशु ने प्याला लेकर यह कहा, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है”(लूक 22:20)। और यीशु ने इस दाखमधु के बारे में विस्तृत जानकारी दी:

यूह 15:5 『मैं दाखलता हूं : तुम डालियां हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।』

यीशु ने यह वचन अन्तिम भोज में अपने चेलों को दाखमधु देते हुए कहा। प्रायश्चित्त के महान कार्य के द्वारा, यीशु ने फसह के पवित्र भोज में नई वाचा स्थापित की और कहा:

यूह 13:34 『मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं कि एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।』

यूह 15:12 『“मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।”』

यूह 13:13-15 『तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो, और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूं। यदि मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पांव धोए, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पांव धोना चाहिए। क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।』

यूहन्ना 13:34 का यह वचन, “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं”, लूका 22:20 का यह वचन, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है”, दोनों एक जैसा है। मत्ती, मरकुस और लूका की पुस्तक में “नई आज्ञा” के बजाय “नई वाचा” या “वाचा” लिखा है, और यूहन्ना की पुस्तक में “नई वाचा” के बजाय “नई आज्ञा” लिखा है(यूह 13:34; 15:10-12)। यह नई वाचा, यानी नई आज्ञा हमारे छुड़ाने वाले का यादगार दिन है। यह फसह का पर्व है जिसके द्वारा हम यीशु से प्रेम करते हैं और उसमें एक दूसरे से भी प्रेम करते हैं, जैसा यीशु ने हमसे प्रेम किया है।

1कुर 10:16-17 『वह धन्यवाद का कटोरा, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं; क्या मसीह के लहू की सहभागिता नहीं? वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या वह मसीह की देह की सहभागिता नहीं? इसलिये कि एक ही रोटी है तो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं : क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं।』 फसह की विधि के द्वारा, हम सब एक दूसरे से प्रेम कर सकते हैं और यीशु में एक देह बन सकते हैं।

ऐसा कोई नहीं है जो अपनी देह से घृणा करता है। यदि हम सब यीशु में एक देह बनते हैं, तो जैसे हम स्वयं से प्रेम करते हैं, वैसे ही हम अपने भाइयों से प्रेम करेंगे।

फसह का पर्व और अंतिम भोज

कुछ लोग आग्रह करते हैं कि जिस दिन यीशु ने अन्तिम भोज मनाया, वह दिन फसह का पर्व नहीं था, परन्तु यीशु ने फसह के पर्व से एक दिन पहले, यानी पहले महीने के तेरहवें दिन गोधूलि के समय अन्तिम भोज मनाया। परन्तु तीन सुसमाचार की पुस्तकें, मत्ती, मरकुस और लूका में यीशु ने चेलों से साफ-साफ कहा, “फसह खाने की तैयारी करो” या “मुझे बड़ी लालसा थी कि यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं”(मत 26:17; मर 14:12; लूक 22:7-8, 13-15 तुलना)। कौन इतनी हिम्मत कर सकता है कि खुद यीशु के द्वारा कहे गए वचनों से इनकार करे?

कुछ लोग यह भी आग्रह करते हैं कि जिस दिन यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया, वह दिन फसह का पर्व था, क्योंकि यीशु फसह का मेमना था, इसलिए उसे उस दिन क्रूस पर चढ़ाया जाना था जिस दिन फसह के मेमने का बलिदान किया जाता था। इस प्रकार का कहना यह दिखाता है कि वे न तो यीशु के छुटकारे से संबंधित पर्वों को जानते हैं और न ही यीशु, जो सब बलियों की असलियत है, के कार्य के द्वारा पूरी हुई भविष्यवाणियों को जानते हैं। भविष्यवाणी की दृष्टि से, प्रायश्चित्त की पाप-बलि फसह के मेमने से कहीं बढ़कर महान है। प्रायश्चित्त-बलि को पवित्र वर्ष के अनुसार सातवें महीने के दसवें दिन चढ़ाया जाना था(इब्र 13:11-12; लैव 16:27-34 तुलना)। जबकि यीशु प्रायश्चित्त-बलि भी बना, उसे सातवें महीने के दसवें दिन, यानी प्रायश्चित्त के दिन भी क्रूस पर चढ़ाया जाना चाहिए था, है न?

वास्तव में, यीशु सब पर्वों की बलि बना; वह प्रतिदिन चढ़ाई जाने वाली होमबलि भी बना(निर्ग 29:38-39), सब्त के दिन बलि चढ़ाया जाने वाला मेमना भी बना(गिन 28:9-10), फसह के पर्व का मेमना भी बना(1कुर 5:7-8 आईबीपी बाइबल) और प्रायश्चित्त-बलि भी बना। परन्तु भविष्यवाणी ठीक तरह से पूरी होने के लिए, पवित्र वर्ष के अनुसार पहले महीने के पंद्रहवें दिन यीशु को बलि चढ़ाया जाना चाहिए था।

यहूदियों के लिए फसह का पर्व सबसे बड़ा पर्व था, इसलिए यहूदी अपराधियों को फसह के पर्व के दिन क्रूस पर नहीं चढ़ाते थे। प्रेरितों के युग में भी, जब प्रेरित पतरस जेल में था, और फसह का पर्व आया, तब उसने फसह के बीतने का इन्तजार किया। वह फसह की रात थी जब प्रभु के एक स्वर्गदूत ने पतरस को जेल से छुड़ाया(प्रे 12:1-10 संदर्भ)। लेकिन पवित्र वर्ष के अनुसार पहले महीने का पंद्रहवां दिन, अखमीरी रोटी का पर्व वह दिन था जब इस्राएली मिस्र से बाहर निकले थे(गिन 33:3) और मिस्रियों ने अपने पहलौठों को, जो मार दिए गए थे, दफ़नाया था(गिन 33:4), इसी कारण यहूदियों के लिए इस दिन अपराधियों को क्रूस पर चढ़ाने की प्रथा थी। यीशु हम पापियों के लिए क्रूस पर लटकाए जाने के द्वारा, शापित बना और उसने व्यवस्था के शाप से हमें मूल्य चुका कर छुड़ाया। जैसा कि लिखा है:

गल 3:13 『मसीह ने जो हमारे लिये शापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के शाप से छुड़ाया, क्योंकि लिखा है, “जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह शापित है।”』(व्य 21:22-23 तुलना)

यदि हम बाइबल में बहुत सी आयतों का अध्ययन करें, तो हम जान सकते हैं कि यीशु फसह के पर्व के अगले दिन, यानी अख़मीरी रोटी के पर्व के दिन क्रूस पर चढ़ाया गया। इसलिए यीशु ने पहले महीने के चौदहवें दिन गोधूलि के समय, जब फसह का मेमना बलि किया जाता था, फसह के पर्व का अंतिम भोज खाया। जैसा कि लिखा है:

मर 14:12 『अखमीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, जिसमें वे फसह का बलिदान करते थे, उसके चेलों ने उससे पूछा, “तू कहां चाहता है कि हम जाकर तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें?”』

पुराने नियम का फसह नए नियम के फसह की छाया है

आइए पुराने नियम में इस्राएलियों के द्वारा मनाए गए फसह के पर्व का इतिहास फिर से खोजें। उन्होंने मिस्र में पहली बार फसह का पर्व मनाया और वहां से वे बाहर निकल आए(निर्ग 12:12-42), और मिस्र से निकलने के बाद, दूसरे वर्ष में उन्होंने झोपड़ियां स्थापित कीं और जंगल में फसह का पर्व मनाया(निर्ग 40:1-25; गिन 9:1-14 तुलना)। और जब उन्होंने जंगल में चालीस वर्ष का पूरा जीवन व्यतीत किया, उन्होंने कनान देश में प्रवेश करने से ठीक पहले, यरीहो मैदान में फसह का पर्व मनाया(यहो 5:10-15)। जो भी हो, कनान देश में प्रवेश करने के बाद, वे परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते थे और फसह का पर्व नहीं मनाते थे, और वे मूर्तियों को परमेश्वर मानते हुए उसकी पूजा करते थे। राजा हिजकिय्याह और योशिय्याह के दिनों में वे नबियों से सलाह पाकर फसह के पर्व पर फिर से ध्यान देने लगे, और उन्होंने उसे मनाया और सब मूर्तियों को नष्ट कर दिया(2रा 23:1-25; 2इत 30:1-27; 31:1 तुलना)। और उन्होंने बेबीलोन से जहां वे बन्दी बने थे, लौटने के बाद मन्दिर बनाया और फसह का पर्व पवित्रता से मनाया(एज्रा 6:14-22)। यीशु ने नई वाचा का फसह का पर्व अपने चेलों के साथ मनाया(लूक 22:7-20; 1कुर 11:23-26 तुलना)। इसलिए जब कभी परमेश्वर का महान कार्य पूरा होता था, तब फसह के पर्व के द्वारा परमेश्वर की इच्छा प्रकट होती थी।

पुराने नियम का फसह का पर्व एक छाया है, और उसकी असलियत का सार्थक तत्व सुसमाचार के युग में होता है। यदि हम छाया और उसकी असलियत के बीच गहरे संबंध को पूरी तरह समझते हैं, तब हम खोज सकते हैं कि यीशु का छुटकारे का कार्य क्या है। संक्षिप्त रूप में कहे, तो मिस्र से निकलने के बाद इस्राएलियों के जंगल में बिताए 40 वर्षों का इतिहास यह दिखाता है कि सुसमाचार के युग के 2,000 वर्षों में क्या घटना घटित होगी। जंगल में 40 वर्ष के विस्तृत इतिहास को छोड़कर, आइए हम सिर्फ फसह के पर्व के विषय पर ध्यान दें।

वह फसह का पर्व जो मिस्र से निकलते समय मनाया गया था, छाया है, और उसकी असलियत फसह के पर्व का वह अंतिम भोज है जो यीशु ने अपने चेलों के साथ मनाया; फसह का पर्व जो दूसरे वर्ष में सीनै जंगल में मनाया गया था, छाया है(गिन 9:1-14), और उसकी असलियत नई वाचा का फसह का वह पर्व है जो प्रेरितों ने यीशु के स्वर्गारोहण के बाद मनाया; फसह का पर्व जो इस्राएलियों ने जंगल में 40 वर्ष के अंत में कनान देश में प्रवेश करने से ठीक पहले, यरीहो के सामने गिलगाल में मनाया था, छाया है, और उसकी असलियत फसह का वह पर्व है जो शेष लोगों को सुसमाचार के युग के अंत में स्वर्गीय कनान में प्रवेश करने की तैयारी में मनाना चाहिए।

मूसा ने मिस्र में मनाए गए फसह के पर्व के द्वारा, मिस्र से सांसारिक इस्राएलियों को जंगल की ओर मार्गदर्शित किया था। यह आने वाली बातों की छाया थी; यीशु ने अपने चेलों के साथ फसह के पर्व का अंतिम भोज मनाने के बाद क्रूस उठाने के द्वारा, आत्मिक इस्राएलियों को विश्वास के जंगल की ओर मार्गदर्शित किया।

फसह का पर्व दुष्टात्माओं के निवास को प्रकाशित करता है

प्रेरित यूहन्ना ने उस सच्चाई के प्रकट होने के बारे में लिखा जिसके द्वारा दुष्टात्माओं का निवास और सब प्रकार की अशुद्ध आत्माओं का अड्डा प्रकट होता है। जैसा कि लिखा है:

प्रक 18:1-3 『इसके बाद मैं ने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा, जिसे बड़ा अधिकार प्राप्‍त था; और पृथ्वी उसके तेज से चमक उठी। उसने ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा, “गिर गया, बड़ा बेबीलोन गिर गया है! वह दुष्‍टात्माओं का निवास, और हर एक अशुद्ध आत्मा का अड्डा, और हर एक अशुद्ध और घृणित पक्षी का अड्डा हो गया…”』

लिखा गया: 『पृथ्वी उसके तेज से चमक उठी।』 यहां तेज का मतलब वह ज्योति है जिसके द्वारा दुष्टात्माओं का निवास और सब प्रकार की अशुद्ध और घृणित आत्माओं का अड्डा प्रकट किया जाता है।

राजा योशिय्याह ने यह न जानते हुए कि परमेश्वर का मन्दिर दुष्टात्माओं का निवास और अशुद्ध व घृणित आत्माओं का अड्डा बन गया है, 18 वर्ष तक सभी अन्य दुष्टात्माओं की और बाअल देवता की पूजा की। परन्तु जब उसने फसह का पर्व मनाने का निर्णय किया, वह अपनी आंखों से देख सका कि परमेश्वर का मन्दिर दुष्टात्माओं के निवास में बदल गया और उसने तुरन्त सभी मूर्तियों को नष्ट किया(2रा 23:1-7), और फसह का पर्व मनाने के बाद, उसने प्रत्येक नगर में सब मूरतों, ओझाओं, भूतसिद्धिवालों और सब घिनौनी वस्तुओं को नष्ट कर दिया(2रा 23:21-25)।

प्रकाशितवाक्य 18:1-3 में यह तेज यीशु के क्रूस पर बहाए गए बहुमूल्य लहू के द्वारा फसह के सत्य की ज्योति है। अगर हम इस सत्य को पहचानेंगे, तो हम दुष्टात्माओं के निवास को ऐसे देखेंगे, जैसे हम उसे अपनी आंखों से देखते हों। सभी युगों में, जब लोग फसह का पर्व मनाते हैं, सभी दूसरे देवता नष्ट किए जाते हैं और वे सिर्फ परमेश्वर की आराधना करते हैं, जिसके द्वारा वे पहली आज्ञा का पालन कर सकते हैं। आज, यदि आप फसह के सत्य को महसूस करते हैं और उसे मनाते हैं, तो आपकी आत्मिक आंखें खोली जाएंगी, और न केवल आप उन मूर्तियों को पहचानेंगे जिनकी पूजा आपने बिना जाने की है, बल्कि आप चर्च के अंदर मूर्तियों को भी पहचान कर उनसे घृणा करेंगे। इसी कारण शैतान सबसे अधिक फसह के पर्व से नफरत करता है।

शैतान हमेशा फसह के पर्व को मिटाने की अनेक युद्ध-योजनाएं बनाता रहता है, क्योंकि इस्राएलियों के मिस्र से निकलने के समय, परमेश्वर ने फसह के पर्व के दिन को सभी अन्य देवताओं के विरुद्ध न्याय करने के दिन के रूप में नियुक्त किया। यदि हम हर वर्ष फसह का पर्व मनाते हैं, कोई अन्य देवता हमारे अंदर नहीं घुस सकता।

यीशु ने फसह के पर्व का अंतिम भोज मनाया और अपने चेलों को क्रूस पर लटकाया जाने वाला अपना मांस और बहाया जाने वाला अपना लहू देते हुए नई वाचा प्रदान की, जिसके द्वारा शैतान की शक्ति छीन ली गई। इसलिए यदि हम नई वाचा की विधियों का पालन करेंगे, तो शैतान नष्ट हो जाएगा। लेकिन यदि हम ऐसा न करें, तो शैतान चर्चों पर प्रभुता करेगा और हमें, परमेश्वर के लोगों को कुचल डालेगा, ताकि हम अपने उद्धारकर्ता के दिन को याद न कर सकें और बचाए न जा सकें।

मूसा ने इस्राएल की महासभा के सामने चेतावनी दी कि उसकी मृत्यु के बाद झूठे नबी प्रकट होंगे। जैसा कि लिखा है:

व्य 13:5 『और ऐसा भविष्यद्वक्‍ता या स्वप्न देखनेवाला जो तुम को तुम्हारे उस परमेश्‍वर यहोवा से फेर के, जिसने तुम को मिस्र देश से निकाला और दासत्व के घर से छुड़ाया है, तेरे उसी परमेश्‍वर यहोवा के मार्ग से बहकाने की बात कहनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मार डाला जाए। इस रीति से तू अपने बीच में से ऐसी बुराई को दूर कर देना।』

ऐसा “भविष्यद्वक्‍ता या स्वप्न देखनेवाला” उस यहोवा परमेश्वर का विरोध करने वाले हैं जिसने फसह के पर्व के दिन अपने लोगों को मिस्र देश की गुलामी से छुड़ाया था। दूसरे शब्दों में ऐसे विद्रोही भविष्यद्वक्‍ता या स्वप्न देखनेवाला उनको संकेत करते हैं जो लोगों को फसह का पर्व मनाने से रोकते हैं।

सुसमाचार के युग में, प्रेरित पतरस ने झूठे नबियों के विरुद्ध इस प्रकार चेतावनी दी जो बाद में प्रकट होंगे:

2पत 2:1 『जिस प्रकार उन लोगों में झूठे भविष्यद्वक्‍ता थे, उसी प्रकार तुम में भी झूठे उपदेशक होंगे, जो नाश करनेवाले पाखण्ड का उद्घाटन छिप छिपकर करेंगे, और उस स्वामी का जिसने उन्हें मोल लिया है इन्कार करेंगे, और अपने आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे।』

『झूठे भविष्यद्वक्‍ता जो अपने स्वामी का इन्कार करते हैं जिसने उन्हें मोल लिया है』 उनको संकेत करते हैं जो उस फसह के पर्व की पवित्र विधि को त्याग देते हैं जो यीशु के प्रायश्चित्त के महान कार्य के द्वारा स्थापित की गई थी। इसके संबंध में प्रेरित पौलुस ने लिखा है, “तो सोच लो कि वह कितने और भी भारी दण्ड के योग्य ठहरेगा, जिसने परमेश्‍वर के पुत्र को पांवों से रौंदा और वाचा के लहू को, जिसके द्वारा वह पवित्र ठहराया गया था, अपवित्र जाना है, और अनुग्रह के आत्मा का अपमान किया”(इब्र 10:29)।

『जिसने वाचा के लहू को, जिसके द्वारा वह पवित्र ठहराया गया था, अपवित्र जाना है』 वह व्यक्ति उसे संकेत करता है जो फसह के पर्व की पवित्र विधि को अपवित्र समझता है। आज भी, शैतान परमेश्वर के लोगों को अपने उस छुड़ाने वाले के दिन को याद करने से रोकने के लिए जो नई वाचा के लहू से उन्हें पवित्र करता है, हर प्रकार की योजना बना रहा है, ताकि वह अपने अधिकार को फिर से पकड़ सके जो क्रूस के द्वारा छीना गया था। शैतान का ऐसा करने का अभिप्राय यह है कि परमेश्वर के लोग स्वर्गीय पवित्रस्थान में महायाजक यीशु की मध्यस्थता की सेवा को न समझें और यीशु से संपर्क न करें।

शैतान हमारे मन को अमहत्वपूर्ण चीजों से भरने के लिए लगातार सभी प्रकार की धूर्त और बुरी युक्ति बनाता है, ताकि हम यह न सोच पाएं कि हमें सबसे अधिक क्या जानना चाहिए और किस पर ध्यान देना चाहिए। धोखा देने वालों का मुखिया, शैतान प्रायश्चित्त के बलिदान और पराक्रमी मध्यस्थ को स्पष्ट प्रकट करने की बड़ी सच्चाई को पसंद नहीं करता।

सांसारिक पवित्रस्थान स्वर्गीय पवित्रस्थान की छाया है। यीशु उन दिनों में जब उसने तीन बार में सात पर्वों के अनुसार अपने कार्यों को पूरा किया, पृथ्वी पर अपने लोगों के लिए प्रार्थना करता है(इब्र 7:25; रो 8:26-27, 34; यश 53:12 संदर्भ); लोग जो इस सच्चाई को समझते हैं और इसे कार्य में लाते हैं, वे उस यीशु से संपर्क कर सकते हैं जो पृथ्वी पर संतान के मन को उनके स्वर्गीय पिता की ओर फेरता है और उन्हें स्वर्गीय पिता के मन को समझने में मदद करता है।

निश्चय ही, फसह का पर्व जीवन की अद्भुत और आश्चर्यजनक सच्चाई है। जब हम नई वाचा का फसह का पर्व मनाते हैं, हम यीशु के लहू के द्वारा इस पापमय संसार से छुड़ाए जाते हैं, और हम केवल परमेश्वर की पूजा करने के द्वारा पहली आज्ञा का पालन कर सकते हैं, क्योंकि सब दूसरे अन्य देवता नष्ट किए जाते हैं, और हम फसह के मेमने के लहू के द्वारा जीवन के वृक्ष और पवित्र नगरी में प्रवेश करने का अधिकार पाते हैं, और आखिर में यह एक चिह्न बनता है जिसके साथ हम अंतिम सात विपत्तियों से बच सकेंगे(इब्र 10:19-20; निर्ग 12:13-14; यहेज 9:4-7; प्रक 7:14; प्रक 22:14 संदर्भ)।

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